Thursday, August 16, 2018

अटल बिहारी वाजपेयी जी के महाप्रयाण पर

भारत का योग्य सपूत गया 
मानवता का अवधूत गया 
नैतिकता का क़िरदार गया 
हिम्मत का लम्बरदार गया 
संसद का उन्नत भाल गया 
भारत माता का लाल गया 
इक अद्भुत इच्छाशक्ति गई 
सद्भावों की अनुरक्ति गई 
जनहित का अथक प्रयत्न गया 
भारत का अनुपम रत्न गया 
दुनिया से बाज़ी मार गया 
युग "अटल सत्य" से हार गया 
धरती रोई, अम्बर रोया 
हर इक आँगन, हर घर रोया 
भीगी हैं करगिल की पलकें 
संस्कृति के भी आँसू छलके 
है मौन पोखरण की धरती 
कविताओं की आँखें झरती 
वक्तव्य कला का ताज गया 
चुटकी का एक रिवाज़ गया 
रसपूरित वाणी मौन हुई 
तर्कों की भाषा गौण हुई 
दिल्ली सूनी, संसद सूनी 
जन-जन की पीर हुई दूनी 
वह अनुशासन का पालक था 
भीतर से निश्छल बालक था 
जय-विजय खूंटियों पर टांगी 
गरिमा की लीक नहीं लांघी 
अन्तस् में नहीं दुभात चला 
वह सबको लेकर साथ चला 
कुछ पक्ष-विपक्ष नहीं जाना 
मानव को बस मानव माना 
वह राजधर्म का साधक था 
भारत भू का आराधक था 
जीवन जीकर भरपूर गया 
वह शून्य क्षितिज पर पूर गया 
लग गया श्वास लय पर विराम 
हे दिव्य तुम्हें शत-शत प्रणाम 

-चिराग़ जैन

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