Saturday, August 25, 2018

फूल का क़त्ल

 हार का ख़ौफ़ गुनहगार बना देता है 

जीत की चाह कभी वार नहीं कर सकती 

 

हाथ वहशत की ग़ुलामी पे अड़े थे, वरना 

फूल का क़त्ल तो तलवार नहीं कर सकती 

 

बेच दी होगी चकाचौंध में ग़ैरत उसने 

भूख इंसान को ग़द्दार नहीं कर सकती

  

रौशनी नूर तो आलम पे लुटा सकती है 

पर अंधेरे को गिरफ़्तार नहीं कर सकती 

 

अश्क़ अशआर के लहज़े में बयां होते हैं 

आशिक़ी दर्द को अख़बार नहीं कर सकती  

© चिराग़ जैन


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