Saturday, August 25, 2018

आसान नहीं है कविता लिखना

माली ने 
माला बनानी चाही 
झखझोरी गईं डालियाँ .
बेन्धे गए फूल 
लदता रहा धागा। 

शिल्पी ने मूर्ति गढ़नी चाही 
टूटते रहे पत्थर 
घिसती रही छैनी 
चीखती रही हथौड़ी। 

माँ ने रोटी सेंकनी चाही 
पीसा गया गेहूँ 
गूंदा गया आटा 
जलता रहा तवा। 

कवि ने कविता लिखनी चाही 
तो शब्द अपने अर्थों में सिमट गए 
भाषा, व्याकरण की ओट में दुबक गई 
और कवि झेलता रहा 
यादों की चुभन 
भावों का वेग 
संबंधों की टूटन 
अभिव्यक्ति की चीख़ 
पिघलता रहा उसका मन 

आसान नहीं है कविता लिखना 
खौलते तेल में 
जलेबी छोड़ने का अनुभव चाहिए हुज़ूर 
गति और यति 
एकदम सही 

ज़रा सी भी कम ज़्यादा हुई .
तो थप्पा सा तल जाएगा ख़मीर का 
फिर इन बारीक़ नखरीली चकरियों को 
चाशनी में पगाना 
क्या मज़ाल कि एक भी जलेबी टूट जाए! 

कारीगरी है साहब 
तभी तो कानों में 
करारी मिठास सी घोल जाती हैं 
....ग़ालिब की ग़ज़लें 
....तुलसी की चौपाइयां! 

© चिराग़ जैन

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