Wednesday, August 29, 2018

उम्मीदों की राह चला हूँ

हर सन्नाटा मुखरित होगा, जब मैं स्वर लेकर पहुँचूँगा
उम्मीदों की राह चला हूँ, मैं ख़ुशियों के घर पहुँचूँगा

थक कर टूट नहीं सकता हूँ, मुझको श्रम का अर्थ पता है
बढ़ने की इच्छा कर देगी, हर मुश्क़िल को व्यर्थ पता है
मेरे हाथों की रेखाओं में इतनी कठिनाई क्यों है
निश्चित मानो, भाग्य विधाता को मेरा सामर्थ पता है
पीड़ा को उत्सव कर लूँगा, आँसू को गाकर पहुँचूँगा
उम्मीदों की राह चला हूँ, मैं ख़ुशियों के घर पहुँचूँगा

मेरे मग में संघर्षों के ठौर न आएँ; नामुम्किन है
अपना बनकर ठगने वाले और न आएँ; नामुम्किन है
फिर भी हर पतझर को पानी देता हूँ, विश्वास मुझे है
फाग उड़े और अमराई पर बौर न आए; नामुम्किन है
हर आँधी से जूझ रहा हूँ, हर सावन जीकर पहुँचूँगा
उम्मीदों की राह चला हूँ, मैं ख़ुशियों के घर पहुँचूँगा

जो औरों पर लद जाता हो, मैं ऐसा क़िरदार नहीं हूँ
अपमानित होकर मुस्काऊँ, इतना भी लाचार नहीं हूँ
जितने डग नापूंगा, उतनी धरती मेरे नाम रहेगी
अपने पैरों पर चलता हूँ, बैसाखी पर भार नहीं हूँ
जितना पहुँचूँगा अपने ही पैरों पर चलकर पहुँचूँगा
उम्मीदों की राह चला हूँ, मैं ख़ुशियों के घर पहुँचूँगा

© चिराग़ जैन

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