Sunday, August 5, 2018

हारने का डर

फूल, ख़ुश्बू, रंग तो मौसम चुरा ले जाएगा
कौन लेकिन बाग़बां का हौंसला ले जाएगा

हो गए बर्बाद तो फिर जश्न होना चाहिए
देखते हैं वक़्त हमसे और क्या ले जाएगा

जीतने की चाह छोड़ी, अब निभाकर दुश्मनी
हारने का डर मेरा दुश्मन लिवा ले जाएगा

दस्तख़त बेटे की ज़िद पे कर के बूढ़े ने कहा-
“क्या लुटा सकता था मैं, तू क्या लिखा ले जाएगा“

इल्म वाले बस तकल्लुफ़ में फँसे रह जाएंगे
ज़िन्दगी की मौज कोई सिरफिरा ले जाएगा

© चिराग़ जैन

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