Sunday, July 10, 2016

ट्रैफिक सेंस

हमें पुलिसवाला न दिखे तो हम रेडलाइट जम्प करते हुए नहीं हिचकते। रॉंग साइड ड्राइव करते हुए हमें शर्म नहीं आती। सड़क किनारे गाड़ी लगाते हुए हम दूसरों की परेशानी की चिंता नहीं करते। हमें लालबत्ती पर दाएँ मुड़ना होगा तो भी हम सबसे बाईं लेन में सबका रास्ता रोककर खड़े होंगे। हम मोबाइल पर बात करते हुए सड़क पार करते हैं। बिना हेलमेट लगाए कान और कंधे के बीच मोबाइल फँसाए टेढ़ी गर्दन किये टेढ़ी-टेढ़ी बाइक चलाते हैं। कार ड्राइविंग के दौरान तो मोबाइल पर बात करना हमारा धर्म बन चुका है। हम ऑटो चलाते हैं, तो सारे नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं। हम बस चलाते हैं तो ब्रेक और इंडिकेटर को अछूत समझने लगते हैं। नो एंट्री और टो-अवे जैसे शब्द तो हमने पढ़े ही नहीं हैं। हम रेडलाइट पर खड़ी गाड़ी को भी हॉर्न दे देते हैं। हम स्पीड लिमिट की परवाह नहीं करते।
हम पैदल चलते हैं, तो गाड़ीवालों को दुश्मन समझते हैं। हम गाड़ी चलाते हैं तो पैदलों को मूर्ख समझते हैं। हम फुटओवर ब्रिज के नीचे भी भागकर सड़क पार करते हैं। हम ज़ेबरा क्रॉसिंग को सडकों के सौंदर्य का प्रसाधन मात्र समझते हैं। हम स्टॉप लाइन को सड़कों के अंग्रेजीकरण का कारण मानकर उसे रौंद डालते हैं।
हमारे पुलिसवाले चालान काटने को ही धर्म समझते हैं। हमारे पुलिसवाले ऑफिस टाइम पर भारी ट्रैफिक के बीच बेरियर लगाकर चाय पीने चले जाते हैं। हमारे पुलिसवाले खुद रेड लाइट जम्प करते हैं। हमारे पुलिसवाले रॉंग साइड, रॉंग लेन, बिना हेलमेट, ओवरटेकिंग, रैश ड्राइव को ड्यूटी समझकर निभाते हैं।
मिलिट्री के ट्रक, शहरों के ट्रैफिक को कीड़े, और शहरों की जनता को चींटी समझकर चलते हैं। सेना या पुलिस की वर्दी पहननेवाला शख़्स कहीं भी, कैसे भी गाडी घुसेड़ सकता है। गाड़ी पर लॉयर लिखा हो, तो उसे क़ानून से खेलने का अधिकार मिल जाता है। गाड़ी पर प्रेस लिखा हो तो उसे पुलिस को छेड़ने का अधिकार मिल जाता है। गाडी पर विधायक या सांसद प्रतिनिधि लिखा हो तो उसे जनता से खेलने का अधिकार मिल जाता है।
अतिक्रमण के कैंसर से बची खुची सड़कें बरसात की फुंसियों से त्रस्त हैं। पैदल चलने के लिए बने फुटपाथ झुग्गियों, रेहड़ियों, खोखों, स्मैकियों और मूत्रदान के लिए समर्पित हो चुके हैं। पार्किंगवाला भैया आधी सड़क घेरकर बदमाशी के स्तर तक उतरकर वसूली करता है। रिक्शावाला भैया अकेले ही पूरे ट्रैफिक का बंटाधार करने में समर्थ है। फुटपाथ का कोई पत्थर अगर सड़क पर गिर जाए तो उसे हटाने की ज़रूरत कोई नहीं समझता। डिवाइडर की रेलिंग घातक होकर सड़क तक मुड़ जाए तो उसे ठीक करने का जिम्मा किसी विभाग का नहीं है।
...हम विकास के पथ पर अग्रसर हैं।

© चिराग़ जैन

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