Saturday, July 2, 2016

अविनय

जो अकारण ही किसी अपमान के भागी बने हैं
हो न हो उनसे किसी सम्मान की अविनय हुई है
जो बिना चाहे पतन-पथ पर चले आए अचानक
उन अभागों से किसी उत्थान की अविनय हुई है

थी अतुल क्षमता विजय की, पर पराजय का रहा डर
सामने गांडीवधारी थे, तभी रथचक्र जर्जर
यदि अचानक मार्ग बदले लक्ष्य को बढ़ता हुआ शर
स्पष्ट इंगित है कहीं संधान की अविनय हुई है

भाग्य से हारे हुए, मस्तक पकड़ जो रो रहे हैं
सम्पदा से रिक्त होकर खंडहर में सो रहे हैं
जो विवशता के किसी अभिशाप को ढोता रहा हो
उस तपस्वी से किसी वरदान की अविनय हुई है

न्याय का पलड़ा कुतर्कों से प्रभावित हो गया हो
तंत्र सारा चाटुकारों को समर्पित हो गया हो
सत्य जिनका मूढ़ताओं से पराजित हो गया हो
वो समझ जाएँ किसी विद्वान की अविनय हुई है

जो ज़रूरत पर सभी के अजनबी दृग्कोण देखे
चीख जिसकी व्यर्थ जाए, सृष्टि सारी मौन देखे
जो स्वयं निष्ठुर रहा हो, पीर उसकी कौन देखे
स्पष्ट है उससे स्वयं भगवान की अविनय हुई है

© चिराग़ जैन

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