जो केजरीवाल कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसते थे वे ही दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन के लिए रिरियाते रहे। ताकि किसी भी तरह से सत्ता पाई जा सके। जो भाजपा महबूबा मुफ्ती को गद्दार कहती रही उसी ने सत्ता के लिए महबूबा मुफ्ती से गठबंधन करके सरकार बनाई। जिन नीतीश कुमार ने मोदी के प्रति घृणा के कारण बाढ़ सहायतार्थ भेजा गया गुजरात सरकार का चैक लौटा दिया वही आज भाजपा के साथ हैं। जिस लालू यादव को बिहार का दुर्भाग्य कहते फिरते थे उसी के साथ मिलकर नीतीश बाबू ने बिहार में सरकार चलाई। जो मायावती "तिलक, तराजू और तलवार" का नारा देकर राष्ट्रवादियों को कोसती रही, वे ही राष्ट्रवादियों से गठबंधन कर के मुख्यमंत्री बनीं। जो समाजवादी मायावती के लिए अपशब्दों की वर्षा करते थे वे ही आज मायावती के साथ मिलकर मोदी को हराने निकले हैं। जो शिवसेना मोदी सरकार के चरित्र को छद्म हिंदुत्व की पाठशाला कहते थे, वे ही मोदी सरकार से मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। जो प्रियंका चतुर्वेदी कांग्रेस के गुण गाती रही वे ही कांग्रेस को गुंडों की पार्टी घोषित करके शिवसेना जैसी शांत प्रवृत्ति की पार्टी में चली गईं। जो सिद्धू मोदी जी नू देवता बताते रहे वे ही आज सोनिया जी की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। इसी वर्चस्व की लड़ाई में शिवपाल-अखिकेश, तेजस्वी-तेजप्रताप जानी दुश्मन हो गए हैं। अमरसिंह, जयप्रदा, सुखराम, शत्रुघ्न सिन्हा, रामविलास पासवान, किरण बेदी और शाजिया इल्मी जैसे लीडरों को देख कर समझ आता है कि विचारधारा, नैतिकता, देशहित, देश सेवा और निष्ठा जैसे शब्द केवल वह आटे की गोली है जिसके दम पर कार्यकर्ता नामक मछली फँसाई जाती है। राजनीति शुद्ध धंधा बन चुकी है। इसमें कोई स्थायी मित्र नहीं है, कोई स्थायी शत्रु नहीं है। 23 मई को परिणाम घोषित होने के बाद ये सब देशभक्त रेटलिस्ट लगा लगाकर अपनी निष्ठा का सौदा करेंगे और मंत्रीपद, मुख्यमंत्री पद, घोटाले दबाने की मंज़ूरी, कुछ करोड़ रुपये तथा अन्य राजनैतिक लाभों की कीमत फेंककर लोकतंत्र की इज़्ज़त उतार दी जाएगी। इन बेशर्म धंधेबाज़ों के लिए सामाजिक सद्भाव को होम न कीजिये। देश में राजनीति ही सब कुछ नहीं है। जब ये हमें धर्म, जाति के जुमलों से उकसाएं और हम लड़ने को तैयार न हों तो इनके वैभत्स्य का मनोबल टूटेगा। जो ऊर्जा हम कांग्रेस-भाजपा की बहस में नष्ट कर रहे हैं उसको यदि अपने काम को ईमानदारी से करने में निवेश करें तो सचमुच देश का विकास हो जाएगा। मतदान के समय अपने विवेक से इन सब दुकानदारों में से किसी एक को वोट दे आएं या नोटा दबाकर राजनैतिक हताशा प्रकट करें... इससे अधिक इस लोकतंत्र में वोटर की कोई भूमिका नहीं है। जिसे जो काम मिला है उसे वह काम बेहतर ढंग से करने का प्रयास करना चाहिए। रिक्शा वाला यदि ट्रैफिक के रूल्स मानते हुए सवारी को ठगे या लूटे बिना मंज़िल तक पहुंचता है तो वह भी अपनी क्षमताओं के अनुरूप देश की सेवा ही कर रहा है। हर आम नागरिक की यह चेतना जागृत रही तो यहीं से देश के विकास का मार्ग खुल जाएगा।
© चिराग़ जैन