Thursday, April 11, 2019

कमी

मरने की चाह, ज़िन्दगी जीने से कम रही
लहरों की चाल मेरे सफ़ीने से कम रही

दौलत की चमक सबसे ज़ियादा रही मग़र
मजदूर के माथे के पसीने से कम रही

सेहरा की तेज़ धूप में भी तिश्नगी तो थी
पर हिज्र में सावन के महीने से कम रही

ताउम्र मैं ख़ुशी की शक्ल भूल न पाया
आफ़त भी मेरे पास क़रीने से कम रही

✍️ चिराग़ जैन

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