जब पत्ते पुराने हो जाते हैं तो वे स्वतः ही झर जाते हैं। उन्हें तोड़ना नहीं पड़ता। अपने समय से झरे हुए पत्ते पगडंडियों का सिंगार करते हैं। बाग की ख़ूबसूरती बढ़ाते हैं। बाद में यही पत्ते खाद बनकर वृक्ष की जड़ों को आशीष देते हैं। झरे हुए पत्तों की जगह नई कोंपलें ले लेती हैं और वृक्ष सदैव हरियाले सौंदर्य से परिपूर्ण रहता है। लेकिन यदि माली किसी पुराने पत्ते को नोच कर पेड़ से अलग करता है तो उस जगह एक बदनुमा निशान बन जाता है। आंधी किसी डाल को झखझोर कर तोड़ डालती है तो उस जगह से वृक्ष ठूठ बनना शुरू कर देता है। ये टूटी हुई डाल या नोच दिए गए पत्ते कभी वृक्ष को आशीष नहीं दे पाते और वृक्ष आशीषों के अभाव में निष्प्राण हो जाता है।
नोट : इस पोस्ट का किसी राजनैतिक दल से कोई सम्बन्ध नहीं है।
© चिराग़ जैन
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