स्वास्थ्य बढ़े, वैभव बढ़े, बढ़े सम्पदा सर्व।
सब सुख दे, सब हर्ष दे, धनतेरस का पर्व।।
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, October 28, 2016
Thursday, October 27, 2016
पटेल
पाँच सौ छियासठ स्वच्छंद रजवाड़े थे जो
कैसे डली उनमें नकेल ज़रा सोचिए
जोधपुर-जूनागढ़ लालच के मोहरे थे
जिन्ना की बिसात पे था खेल ज़रा सोचिए
जो निज़ाम सुब्ह-शाम डसता था उसका भी
कैसे हुआ भारत में मेल ज़रा सोचिए
ओस के कणों को जोड़ के बना दिया ये राष्ट्र
कितने महान थे पटेल ज़रा सोचिए
✍️ चिराग़ जैन
कैसे डली उनमें नकेल ज़रा सोचिए
जोधपुर-जूनागढ़ लालच के मोहरे थे
जिन्ना की बिसात पे था खेल ज़रा सोचिए
जो निज़ाम सुब्ह-शाम डसता था उसका भी
कैसे हुआ भारत में मेल ज़रा सोचिए
ओस के कणों को जोड़ के बना दिया ये राष्ट्र
कितने महान थे पटेल ज़रा सोचिए
✍️ चिराग़ जैन
Monday, October 24, 2016
गड्ड-मड्ड
सारी कहानियाँ आपस में गड्ड-मड्ड हो गई हैं। कुरुक्षेत्र में सेनाएँ घुमड़ आई हैं और अर्जुन, कौरव दल से युद्ध करने की बजाय पांडवों को कुहनी मारकर गिराना चाह रहे हैं। अभिमन्यु द्रोण द्वारा रचे गए चक्रव्यूह में प्रवेश करने को उद्धृत थे तभी भीम और युधिष्ठिर ने उसे अड़ंगी देकर धराशायी कर दिया। मंथरा ने केकैयी के कान भरने की बजाय सीधे दशरथ के कान में घर किया है। धृतराष्ट्र पाण्डु के कंधे पर हाथ रखकर दुर्योधन को धमका रहे हैं कि हम पाण्डु को नहीं छोड़ सकते। कुम्भकर्ण नींद से उठते ही मेघनाद से मिलने गए और रावण के खिलाफ पार्टी बनाने का प्रस्ताव रखा। सीता अशोक वाटिका में बैठी रावण और मेघनाद युद्ध का हाल त्रिजटा से सुन रही है। अश्वत्थामा विदुर के घर पर खाट बिछाए सरसों के साग में पतंजलि का घी डाल कर सुपड़ रहे हैं। कृष्ण अपनी गीता लिए कर्ण के रथ पर बैठे हैं कि अर्जुन, अपने चारों भाइयों से लड़ कर लौटे तो उसे भगवद्गीता की सीडी भेंट कर अपने घर लौटें। द्रौपदी ने उत्तर को पतंजलि केश कांति तेल लाने भेज दिया है क्योंकि उसे पता है कि भीम दुःशासन की छाती का लहू नहीं ला पाएगा।कृपाचार्य मंथरा के गले में हाथ डालकर रामपुर के थियेटर में बैठे संजय से पांडव संग्राम का आँखों देखा हाल सुन रहे हैं। शकुनि आँखों पर काला चश्मा लगाए केकैयी के साथ दशरथ और धृतराष्ट्र पर हँस रहे हैं। गांधारी कृष्ण से पूछ रही हैं कि पाण्डवों के अंत के बाद वे उनके साथ मिलकर इंद्रप्रस्थ को बाँट खाने को राजी हैं या नहीं। और यक्ष युधिष्ठिर के गाल पर चपत लगाकर पूछरहे हैं- "क्यों बे, आपस में ही लड़ना था तो कुरुक्षेत्र का मैदान क्यों बुक कराया था?
© चिराग़ जैन
Thursday, October 20, 2016
बस यही दीवाली होती है
कुछ नन्हे दीपक लड़ते हैं, मावस के गहन अंधेरे से
कुछ किरणें लोहा लेती हैं, तम के इक अनहद घेरे से
काले अम्बर पर होती है, आशाओं की आतिशबाज़ी
उत्सव में परिणत होती है, हर सन्नाटे की लफ़्फ़ाज़ी
उजियारे के मस्तक पर जब, सिन्दूरी लाली होती है
उस घड़ी ज़माना कहता है, बस यही दीवाली होती है
घर की लक्ष्मी इक थाली में, उजियारा लेकर चलती है
हर कोने, देहरी, चौखट को, इक दीपक देकर चलती है
दीवारें नए वसन धारें, तोरण पर वंदनवार सजें
आंगन में रंगोली उभरे, और सरस डाल से द्वार सजें
कच्ची पाली के जिम्मे आँखो की रखवाली होती है
उस घड़ी ज़माना कहता है, बस यही दीवाली होती है
© चिराग़ जैन
Wednesday, October 12, 2016
साँवरिया सेठ जी का धाम
पूजन की थाली में सँवरने की होड़ हो तो
गुलमोहरों से दूब घास जीत जाती है
मन की उमंग का हो सामना अभाव से तो
भीतर संजो के मधुमास, जीत जाती है
मीरा की दीवानगी पे धन पानी भरता है
साँवरे के दर्शनों की प्यास जीत जाती है
साँवरिया सेठ जी का धाम बनने लगे तो
जमुना के तीर से बनास जीत जाती है
© चिराग़ जैन
Wednesday, October 5, 2016
सबूत पेश करो!
मुल्ला नसीरुद्दीन ने पूरे कॉमिक जगत का सुकून छीन रखा था। वह जब-तब उनके घर में घुसकर दंगा करता और पूरी दुनिया की नज़र में शरीफ बनकर अपनी कोठरी में जा छुपता। एक रात, अँधेरे में कोई आया और मुल्ला नसीरुद्दीन के कान पर ज़ोरदार झापड़ चिपका गया। मुल्ला सारी रात गाल सहलाता हुआ सोचता रहा कि हमलावर उस तक पहुँचा कैसे!
सुबह लोगों ने मुल्ला से पूछा - "क्यों मुल्ला गाल कैसे सूज गया?"
मुल्ला खिसिया कर बोला - "क क कुछ नहीं, मच्छर काट गया।"
सुनकर पास खड़े चाचा चौधरी की हँसी छूट गई। वे शरारती लहजे में मुल्ला से बोले - "मच्छर को क्यों इल्ज़ाम दे रहे हो, साफ़-साफ़ बताओ शेर ने पंजा मारा है।"
मुल्ला समझ गया कि रात के अँधेरे में जो शेर आया था उसके नाख़ून चाचा चौधरी ने ही तराशे थे। झेंप मिटाते हुए मुल्ला बोला - "ऐसा कक.. कुछ नहीं है। ये चौधरी झूठ बोल रिया है, शेर ने पंजा मारा है तो शेर ये बात साबित करे।"
मुल्ला की खिसियाई हालत पर चाचा चौधरी भीतर ही भीतर हँसते रहे। शेर तो सबूत लेकर नहीं आया लेकिन मुल्ला पूरे गाँव में बताता फिर रहा है कि शेर ने पंजा मारा होता तो सबूत लेकर ज़रूर आता।
उधर बिल्लू, मोटू-पतलू, पिंकी, घसीटाराम ये सोच कर हैरान हैं कि हमारे बिना मतलब के सवालों से चाचा चौधरी को इतना वक़्त कैसे मिल गया कि वे मुल्ला को उसके घर में जाकर धुन आए। हाल ही में घसीटाराम ने चाचा को नीचा दिखाने के लिए मुल्ला के सुर में सुर मिलाया है - "यदि शेर ने पंजा मारा है तो चाचा चौधरी उससे आक्रमण के सबूत पेश करने को क्यों नहीं बोलते!"
* इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं। इनका किसी भी सर्जीकल स्ट्राइक से कोई सम्बन्ध नहीं है।
© चिराग़ जैन
Saturday, October 1, 2016
दीवारों की आपबीती
आज पिताजी लड़कर निकले
दिन भर घर में मौन समाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
माँ से कुछ नाराज़ी होगी
उनको सूझी चिल्लाने की
मुझे देखा तो कोशिश की
उनने थोड़ा मुस्काने की
होंठ हिले, त्यौरी भी पिघली
आँखों में आंसू भर आए
झट से अंतर्धान हुए फिर
गुस्से में हर कष्ट छुपाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
कहने-सुनने की जल्दी में
कौन सुने बचपन के मन की
सहम गए सब फूल अचानक
मौसम में ज्वाला-सी भभकी
माँ पहले रूठी फिर रोई
गुस्से में रोटी भी पोई
छोड़ टिफिन को निकले घर से
कुछ भी बिन बोले, बिन खाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
धीरे-धीरे ठण्डा होगा
संबंधों का ताप पता है
वरदानों से धुल जाएगा
जीवन का अभिशाप पता है
ऐसा ना हो इस घटना की
बचपन को आदत पड़ जाए
ऐसा ना हो ऐसी घटना
बचपन के मन पर छप जाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
© चिराग़ जैन
दिन भर घर में मौन समाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
माँ से कुछ नाराज़ी होगी
उनको सूझी चिल्लाने की
मुझे देखा तो कोशिश की
उनने थोड़ा मुस्काने की
होंठ हिले, त्यौरी भी पिघली
आँखों में आंसू भर आए
झट से अंतर्धान हुए फिर
गुस्से में हर कष्ट छुपाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
कहने-सुनने की जल्दी में
कौन सुने बचपन के मन की
सहम गए सब फूल अचानक
मौसम में ज्वाला-सी भभकी
माँ पहले रूठी फिर रोई
गुस्से में रोटी भी पोई
छोड़ टिफिन को निकले घर से
कुछ भी बिन बोले, बिन खाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
धीरे-धीरे ठण्डा होगा
संबंधों का ताप पता है
वरदानों से धुल जाएगा
जीवन का अभिशाप पता है
ऐसा ना हो इस घटना की
बचपन को आदत पड़ जाए
ऐसा ना हो ऐसी घटना
बचपन के मन पर छप जाए
दीवारों पर क्या बीती है
छत को जाकर कौन बताए
© चिराग़ जैन
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Katihar, Bihar, India
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