सारी कहानियाँ आपस में गड्ड-मड्ड हो गई हैं। कुरुक्षेत्र में सेनाएँ घुमड़ आई हैं और अर्जुन, कौरव दल से युद्ध करने की बजाय पांडवों को कुहनी मारकर गिराना चाह रहे हैं। अभिमन्यु द्रोण द्वारा रचे गए चक्रव्यूह में प्रवेश करने को उद्धृत थे तभी भीम और युधिष्ठिर ने उसे अड़ंगी देकर धराशायी कर दिया। मंथरा ने केकैयी के कान भरने की बजाय सीधे दशरथ के कान में घर किया है। धृतराष्ट्र पाण्डु के कंधे पर हाथ रखकर दुर्योधन को धमका रहे हैं कि हम पाण्डु को नहीं छोड़ सकते। कुम्भकर्ण नींद से उठते ही मेघनाद से मिलने गए और रावण के खिलाफ पार्टी बनाने का प्रस्ताव रखा। सीता अशोक वाटिका में बैठी रावण और मेघनाद युद्ध का हाल त्रिजटा से सुन रही है। अश्वत्थामा विदुर के घर पर खाट बिछाए सरसों के साग में पतंजलि का घी डाल कर सुपड़ रहे हैं। कृष्ण अपनी गीता लिए कर्ण के रथ पर बैठे हैं कि अर्जुन, अपने चारों भाइयों से लड़ कर लौटे तो उसे भगवद्गीता की सीडी भेंट कर अपने घर लौटें। द्रौपदी ने उत्तर को पतंजलि केश कांति तेल लाने भेज दिया है क्योंकि उसे पता है कि भीम दुःशासन की छाती का लहू नहीं ला पाएगा।कृपाचार्य मंथरा के गले में हाथ डालकर रामपुर के थियेटर में बैठे संजय से पांडव संग्राम का आँखों देखा हाल सुन रहे हैं। शकुनि आँखों पर काला चश्मा लगाए केकैयी के साथ दशरथ और धृतराष्ट्र पर हँस रहे हैं। गांधारी कृष्ण से पूछ रही हैं कि पाण्डवों के अंत के बाद वे उनके साथ मिलकर इंद्रप्रस्थ को बाँट खाने को राजी हैं या नहीं। और यक्ष युधिष्ठिर के गाल पर चपत लगाकर पूछरहे हैं- "क्यों बे, आपस में ही लड़ना था तो कुरुक्षेत्र का मैदान क्यों बुक कराया था?
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment