Thursday, October 20, 2016

बस यही दीवाली होती है

कुछ नन्हे दीपक लड़ते हैं, मावस के गहन अंधेरे से 
कुछ किरणें लोहा लेती हैं, तम के इक अनहद घेरे से 
काले अम्बर पर होती है, आशाओं की आतिशबाज़ी 
उत्सव में परिणत होती है, हर सन्नाटे की लफ़्फ़ाज़ी 
उजियारे के मस्तक पर जब, सिन्दूरी लाली होती है 
उस घड़ी ज़माना कहता है, बस यही दीवाली होती है 

घर की लक्ष्मी इक थाली में, उजियारा लेकर चलती है 
हर कोने, देहरी, चौखट को, इक दीपक देकर चलती है 
दीवारें नए वसन धारें, तोरण पर वंदनवार सजें 
आंगन में रंगोली उभरे, और सरस डाल से द्वार सजें 
कच्ची पाली के जिम्मे आँखो की रखवाली होती है 
उस घड़ी ज़माना कहता है, बस यही दीवाली होती है 

© चिराग़ जैन

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