पाँच सौ छियासठ स्वच्छंद रजवाड़े थे जो
कैसे डली उनमें नकेल ज़रा सोचिए
जोधपुर-जूनागढ़ लालच के मोहरे थे
जिन्ना की बिसात पे था खेल ज़रा सोचिए
जो निज़ाम सुब्ह-शाम डसता था उसका भी
कैसे हुआ भारत में मेल ज़रा सोचिए
ओस के कणों को जोड़ के बना दिया ये राष्ट्र
कितने महान थे पटेल ज़रा सोचिए
✍️ चिराग़ जैन
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