Wednesday, October 5, 2016

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला कर

षड्यंत्र जब शौर्य को लज्जित करने का कुचक्र रचता है तो उसकी ऊर्जा के सम्मुख अनर्गल प्रश्न खड़े कर देता है। सामान्यतया ऐसे कुचक्रों में उलझ कर शौर्य की साधना भंग भी हो जाती है किन्तु यदि शौर्य इन प्रश्नों की मंशा को भांप ले तो एक ही वार में लक्ष्य के साथ षड्यंत्र को भी खण्ड-खण्ड कर डालता है। ये प्रश्न ऐसे ही अनर्गल होते हैं जैसे रंगभूमि में कर्ण से उसका परिचय पूछ लिया जाए। ये ऐसे ही अन्यायी होते हैं ज्यों किसी एकलव्य से गुरुदक्षिणा का अंगूठा कटवा लिया जाए। ये इतने ही बेमानी होते हैं ज्यों हनुमान की उड़ान के मध्य कोई सुरसा मुँह फाड़ने लगे या किसी गौतम ऋषि को पारिवारिक क्लेशों में उलझा कर लोकनिंदा का पात्र बना दिया जाए। इन प्रश्नों के रचयिताओं की समाज में उतनी ही भूमिका होती है जो रामकथा के आदि में मंथरा और रामकथा के अंत में धोबी की थी। लेकिन यह सत्य है कि ये मंथरा और धोबी रामकथा की दिशा निर्धारित करने में सक्षम होते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगने की घटना भी इन्हीं अनर्गल प्रश्नों की श्रृंखला में समाहित है। किन्तु शौर्य के पक्ष में राष्ट्रकवि दिनकर का यह काव्यांश उद्धरणीय है:-  

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला कर 

पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला कर  

© चिराग़ जैन

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