Monday, September 28, 2020

जिस दिन साँस पराई होगी

मन की बेचैनी ने आज फिर गीत की देह धारण की है :

देह बचेगी स्पर्श न होगा
आँखें होंगीं दर्श न होगा
सब अपनों के आने का भी
मुझको किंचित हर्ष न होगा
उस दिन अधरों पर भी कोई याद नहीं मुस्काई होगी
जिस दिन साँस पराई होगी

जिन होंठों की मुस्कानों से मुझको प्राण मिला करते हैं
जिन चेहरों के खिल जाने पर मन के तार हिला करते हैं
उन चेहरों पर पीर दिखेगी
पीड़ा की तस्वीर दिखेगी
मेरी यादों में गुमसुम-सी
ख़ुशियों की जागीर दिखेगी
शायद उस दिन मेरे कारण वे आँखें भर आई होंगी
जिस दिन साँस पराई होगी

जिस देहरी पर मेरे होने से सुख सारा हो जाता है
जिस आंगन में मेरी आहट से उजियारा हो जाता है
उस आंगन में क्रंदन होगा
कण-कण में निस्पंदन होगा
मेरी माटी की काया के
चरणों का अभिनन्दन होगा
शायद उस दिन इस आंगन की फुलवारी मुरझाई होगी
जिस दिन साँस पराई होगी

मन में रखने वाले मुझको, कंधों पर लेकर जाएंगे
मेरे संगी-साथी मुझको, सन्नाटे में धर आएंगे
पानी से रिश्ते धोऊंगा
उस दिन कड़वा सच ढोऊंगा
उस दिन मेरा मौन रहेगा
उस दिन मैं माटी होऊंगा
उस दिन मेरे पास समूचे जीवन की तन्हाई होगी
जिस दिन साँस पराई होगी

© चिराग़ जैन

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