सुना है कि चिरैया के नुचे हुए पंखों को उसके घोंसले की मिट्टी नसीब न हो सकी। रात के अंधेरे में घरवालों को घर में बन्द करके पुलिस ने बिटिया की चिता जला दी। उसकी मिट्टी से लिपटकर रो लेने का भी अधिकार न मिल सका लाचार परिवार को।
सुनते हैं, इस देश में कोई असुरक्षित महसूस करे तो पुलिस उसे सुरक्षा देती है। लेकिन अपने आंगन की निरपराध चिरैया का दाह संस्कार करने का अधिकार मांगनेवाले परिवार से पुलिस को न जाने कौन-सी असुरक्षा महसूस हुई होगी। जेल में बन्द दुर्दांत अपराधी के परिवार में कोई मौत हो जाए तो उसे भी अंतिम संस्कार में शामिल होने की छूट मिल जाती है, लेकिन यह क्या था कि परिवार में मौत होने पर निरपराध परिवार को घर में क़ैद करके अंतिम संस्कार किया गया। हो सकता है कि अव्यवस्था को रोकने के लिये प्रशासन को यह आवश्यक जान पड़ा हो, किन्तु मनुष्यता के लिए यह कृत्य उस अपराध से कम नहीं था, जिसके कारण उस आंगन की चहक मातम में बदल गई।
इंद्रजीत की मृत्यु के बाद श्रीराम ने पुत्र के अंतिम संस्कार तक युद्ध विराम की घोषणा करके शोकग्रस्त शत्रु को जो अभय दिया था, कल रात हाथरस में उस परम्परा की चिता जल गई।
इस देश का तंत्र एक आमूल-चूल परिवर्तन की बाट जोह रहा है। स्पष्ट शब्दों में सुन लीजिए, क़ानून की आँखों में धूल झोंकने पर आप जिसकी पीठ थपथपाएंगे, वह एक दिन आपकी आँखों में धूल ज़रूर झोंकेगा। इसलिए, अच्छा अथवा बुरा, सशक्त अथवा कमज़ोर; जो भी लिखित संविधान हमारे पास है; उसका मखौल बनाने की इजाज़त किसी को नहीं मिलनी चाहिए; फिर चाहे वह पुलिस हो या अपराधी!
एक बेटी कल रात मिट्टी हो गई। जाओ चिरैया, तुम्हारे पोर-पोर पर हुए घाव किसी पोस्टमार्टम रपट में कम या ज़्यादा दर्ज हो जाएंगे; लेकिन तुम्हारी आत्मा पर जो खरोंचें पड़ी हैं उनकी सिसकी लिखने के लिए कोई पोथी पूरी न पड़ेगी। अब हम तुम्हारी जाति पर चर्चा करके तुम्हारे मनुष्य होने के अधिकार का हनन करेंगे; अब हमारा तंत्र तुम्हारे बयान बदलने की कहानियाँ गढ़कर तुम्हारे प्रति उपजी संवेदनाओं पर आरी चलाएगा। अच्छा हुआ बिटिया, तुमने आँखें मूंद लीं, वरना इस देश में न्याय की तलाश में तुम्हें यह तंत्र बार-बार वह हादसा दोहराता हुआ दिखता।
© चिराग़ जैन
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