आइये, मिलकर बढ़ायें नफ़रतें
चप्पे-चप्पे पर उगायें नफ़रतें
धर्म अपना यूँ निभायें नफ़रतें
एक दिन हमको ही खायें नफ़रतें
प्यार, माफ़ी,अम्न और इंसानियत
इन सभी को काट आयें नफ़रतें
गर मुहब्बत की कोई बातें करे
तो उसे ज़िन्दा जलायें नफ़रतें
जिसने ये दुनिया बनाई प्यार से
आओ, उसको भी सिखायें नफ़रतें
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment