एक फिल्मी सितारे ने अपने घर में फाँसी लगा ली। ख़बर सुनकर देश सन्न रह गया, लेकिन एक विशेष वर्ग ने उसके फिल्मी क़िरदार को लेकर उसे अपने धर्म का विरोधी घोषित किया और उसकी मृत्यु पर शोक न करने के संदेश सोशल मीडिया पर लिखे।
बाद में दो दलों के राजनैतिक हित टकराए और उस आत्महत्या को हत्या कहकर मुद्दे को हवा दी गई। कोरोना को ढाल बनाकर दूसरी स्टेट के पुलिस अधिकारी को क्वेरेन्टीन कर दिया गया। फिर सीबीआई, फिर नारकोटिक्स, फिर रिया की गिरफ़्तारी, फिर कंगना राणावत, फिर पूरे बॉलीवुड का ड्रग्स एंगल, फिर बॉलीवुड को उत्तर प्रदेश लाने की बात! पोस्टमार्टम रपट पर संदेह करके पोस्टमार्टम रपट का पोस्टमार्टम कराया गया। जिन्होंने सुशांत को अपने धर्म का विरोधी बताया था, उन्होंने ही बिहार में सुशांत राजपूत के चित्र दिखाकर वोट मांगे। और इतने सब ड्रामे के बाद सीबीआई को आत्महत्या के एंगल से जाँच करने के लिए नियुक्त किया गया।
कहीं कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटती है तो राजनीति की आँखों में आँसू नहीं, चमक आती है। उत्तर प्रदेश में बलात्कार हो तो भाजपा विरोधी राजनीतिज्ञ ख़ुश हो गए कि योगी सरकार को घेरने का मौक़ा मिल गया। अलवर में बलात्कार हो गया तो भाजपा ने राहत की साँस ली कि अब जब कोई हाथरस की बीन बजाएगा तो हम अलवर का नगाड़ा पीट कर उसकी आवाज़ को दबा देंगे।
विश्वास कीजिये, ये सब घटनाएँ राजनीति के लिये ‘अवसर’ से अधिक कुछ नहीं हैं। आज पाँच पुलिसवाले सस्पेंड कर दिए गए, ताकि हम सरकार की वाहवाही कर सकें। हम यह कभी नहीं समझेंगे कि जब तक राजनीति के रिमोट पर उंगली नहीं लगती, तब तक न तो पुलिस हिलती है न ही प्रशासन! डीएम का निलंबन भी हो जाए तो रिमोट पर उंगलियाँ तो वही रहेंगी।
इस हंगामे के बीच हम पुलिस के रवैये पर इतने फोकस्ड हो गए हैं कि अपराधियों पर किसी का ध्यान ही नहीं है। और यह वही पुलिस है जिसकी गाड़ी पलटने पर हुए एनकाउंटर की घटना पर उसके गुण गाए जा रहे थे। उन्नाव हो या जयपुर; दिल्ली हो या मुम्बई; राजनीति, मुद्दों की खरपतवार में सत्ता का फल ढूंढ ही लेती है।
हमारा दुर्भाग्य यह है कि जब ये सब राजनैतिक दल खरपतवार में घुसकर सत्ता का फल ढूंढ रहे होते हैं तब हम यह भ्रम पाल लेते हैं कि ये खेत को खरपतवार से मुक्त करने के लिए मेहनत कर रहे हैं। यह इनकी आपसी खेल भावना है कि हारनेवाला भी कभी यह भेद नहीं खोलता कि खेत में दरअस्ल हुआ क्या था।
जनता, इस राजनैतिक खिलवाड़ के लिए आपस में दुश्मनी पालने की बजाय, यदि केवल मौन रहना भी शुरू कर दे तो राजनीति के हाथों देश का छला जाना बंद हो जाएगा। क्योंकि जब जनता आपस में लड़ने लगती है, तो राजनीति के पासों की आवाज़ सुनाई नहीं देती।
© चिराग़ जैन
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