कहाँ तक झूठ का पर्दा करोगे
कभी तो झील में चेहरा करोगे
बिछाकर जाल दाना डालता है
तो क्या सय्याद का सजदा करोगे?
कराहों को दबाया जा रहा है
कहीं चीखें उठीं तो क्या करोगे
सुना है भूख शर्मिंदा हुई है
हवस को कब तलक पूरा करोगे
अगर ज़िल्लत की आदत पड़ गई तो
फिर ऐसी ज़िन्दगी का क्या करोगे
उजालों को मिटा कर देख लेना
अंधेरे में तुम्हीं रोया करोगे
© चिराग़ जैन
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