Thursday, May 21, 2020

सरकार का साक्षात्कार

‘हुज़ूर पैदल चलते मजदूरों के लिए सरकारें क्या कर रही हैं?’
‘सरकारें मजदूरों की सहायता के लिए योजना बना रही हैं।’

‘लेकिन जब तक योजना बनेगी तब तक मजदूर कई योजन चल चुके होंगे।’
‘यह सब जनहित में किया जा रहा है। सरकारें जानती हैं कि मजदूरों का स्वस्थ रहना आवश्यक है। स्वस्थ रहने के लिए उचित पोषण की आवश्यकता होती है। मजदूर ड्राईफ्रूट खाएँ, दूध पीयें, फल-फ्रूट खाएँ, देसी घी के पराठें खाएँ ताकि उन्हें पोषण मिले। डॉक्टर कहते हैं कि इतना सब खाने के बाद उसे पचाने के लिए पैदल चलना चाहिए। इसलिए मजदूरों का पैदल चलना उनके हित में है।’

‘लेकिन हुजूर, मजदूरों को तो दो वक़्त की सूखी रोटी भी नसीब नहीं हो रही!’
‘ओफ्फो! यही समस्या है इस देश की। सब कुछ सरकार से चाहते हैं। अरे भाई, भोजन जुटाना जनता का काम है और उसे पचाना सरकारों का। सरकारें सिर्फ पचाना जानती हैं। जिसका जो काम है, उसे वही करने दो।’

‘हुज़ूर, लोग कह रहे हैं कि सरकार ने मजदूरों की सहायतार्थ बसें भेजने की प्रक्रिया में अड़ंगा लगाया है।’
‘यह सरासर ग़लत है। विपक्ष राजनीति करना चाहता है। वह ऑटो को बस बताकर जनता की आँखों में धूल झोंकना चाहता है। जब देश में एक चुनी हुई सरकार है, तो इस काम के लिए विपक्ष को मेहनत करने की क्या ज़रूरत है।’

‘लेकिन इन बसों से पैदल चलते मजदूरों को कुछ सहायता मिल सकती थी।’
‘देखो साहब! हमारा धर्म है कि सौ अपराधी छूट जाएँ लेकिन एक निर्दाेष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। इसी प्रकार हज़ार बसें खड़ी रह जाएँ तो स्वीकार कर सकते हैं लेकिन बसों के नाम पर ऑटो रिक्शा भेजकर भोले-भाले मजदूरों को छलने के विपक्षी मनसूबों को हम कभी सफल नहीं होने देंगे।’

‘लेकिन हुज़ूर...’
‘अब बस करो यार, सवाल पर सवाल ही पूछे जा रहे हो। सवाल न हुए कोरोना हो गया, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। जिन मजदूरों को कोई नहीं पूछता था, आज वे टीवी पर दिख रहे हैं, यह विकास दिखता ही नहीं आपको। और फिर लोग घर बैठकर बोर हो रहे हैं, ऐसे में इन मजदूरों को खुले आसमान के नीचे साँस लेने का अवसर मिल रहा है... और क्या चाहिए। जाइये, चुपचाप इंटरव्यू छापिए, और हाँ छपवाने से पहले हमें दिखा लेना, कहीं अपनी मर्ज़ी से कुछ सच वगैरा लिखकर जनता को गुमराह न कर दो।’

© चिराग़ जैन

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