Friday, April 9, 2021

चरित्रहीन अभिनेता

एक प्रश्न देश के लगभग प्रत्येक मस्तिष्क को परेशान किये हुए है कि चुनावी रैलियों में कोरोना क्यों नहीं फैल रहा। और जैसा कि हमारे समाज का चलन हो गया है, इस प्रश्न में भी प्रश्न से पहले मोदी विरोधी या मोदी समर्थक की तलाश की जाने लगी है। जबकि हक़ीक़त यह है कि आमूल-चूल राजनीति इस विषय पर एक साथ है। जनता मरती है तो मरे, हमें रैलियों में भीड़ जुटाकर न्यूट्रल वोट डायवर्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़नी है।
लोककल्याणकारी गणराज्य के इस भौंडे नाटक में चरित्रहीन अभिनेता की भूमिका निभानेवाला चुनाव आयोग भी चुनावी रैलियों के लिये बनाए गए कोविड नियमों को बिसराकर देश के गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तक के हठयोग का लुत्फ़ उठा रहा है।
न्यायपालिका ने अपने लिए कॉमेडियन की भूमिका चयन की है। वह ऐसे-ऐसे नियम बना रही है कि उनमें लॉजिक तलाशने की गरज से निकलो तो अपने सिर के बाल नोचने से पहले हाथ नहीं रुकेंगे।
बहरहाल, राजनीति और व्यवस्था के इस आचरण ने जनता का केवल एक नुकसान किया है कि जनता कोविड की गम्भीरता को लेकर संशय में आ गयी है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि यदि कोविड इतना ख़तरनाक है तो राजनेता जैसी डरपोक स्पीशीज़ को इससे डर क्यों नहीं लग रहा।
संशय जायज़ है, किन्तु चुनाव एक ऐसा नशा है जिसमें जनहित तो क्या आत्महित की भी बलि चढ़ाने से राजनेता नहीं चूक सकते। इसलिए राजनीति के आचरण को देखकर कोविड के इस काल में अपने आप को ख़तरे में न डाले।
कोरोना वायरस एक बार शरीर को जकड़ ले तो पोर-पोर दुःखता है। जीवन का संघर्ष उत्पन्न हो जाता है। घर-परिवार में अजीब सी दहशत व्याप्त हो जाती है। इसलिए अपनी प्रतिरोधक क्षमता का ध्यान रखिये और अपने आप को कोविड तथा राजनीति दोनों से बचाए रखें।
स्थितियाँ इतनी विकट हैं कि रैलियाँ लिखो तो भी ‘रंगरलियाँ’ टाइप हो रहा है।

~चिराग़ जैन

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