स्वयं को भगवान मानने की महत्वाकांक्षा में हिरण्यकश्यप ने होलिका के वरदान का दुरुपयोग किया। चिता ने चीख-चीख कर कहा कि, ‘मूर्ख हिरण्यकश्यप, जनता पर इतना अत्याचार न कर कि तेरे ही महल के खंभे तेरे विनाश का उद्गम बन जाएँ!’
मदान्ध राजा ने चिता की बात अनसुनी कर दी। फिर एक दिन पत्थर की भी छाती फट गयी। फिर एक दिन सारे वरदान उसके विरुद्ध खड़े हो गये। फिर एक दिन नियति के नाख़ून, अत्याचारी के पाप से अधिक बड़े हो गये।
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