जिनकी कविताएँ पढ़कर मन प्रसन्न हो जाता है, उन सब युवाओं की पिछले दो-तीन दिन की क़वायद ने बुझती हुई आँखों में नयी रौशनी भर दी है। दिन-रात लगकर ये सब अनजान लोगों की मदद के लिये सबके आगे हाथ फैला रहे हैं।
न खाने का होश है न पीने की चिंता। बस यहाँ ऑक्सीजन, वहाँ इंजेक्शन, वहाँ डोनर, वहाँ प्लाज़्मा और यहाँ तक कि किसी के घर खाना कैसे पहुँचे इसकी भी ज़िम्मेदारी उठा ली है इन मासूम कंधों ने।
इनसे कोई पूछ ही नहीं रहा कि तुम्हारी अपनी तबीयत तो ठीक है ना! जब किसी तक मदद पहुँचाने में सफल हो जाते हैं तो इनके स्टेटस में लिखे शब्द बल्लियों उछलने लगते हैं और जब कहीं निराशा हाथ लग जाती है तो निढाल हो जाते हैं।
कोई छल-कपट नहीं है इनमें। इनके ये प्रयास किसी मन्दिर की आरती और मस्जिद की अज़ान से ज़्यादा पवित्र जान पड़ते हैं। जिसकी मदद की गुहार सुनते हैं, उसका धर्म-जाति, भाषा वगैरा कुछ भी सोचे बिना बस उसके शहर का नाम पढ़ते हैं और धड़ाधड़ सम्पर्क साधने में जुट जाते हैं। ये इस देश का असली जज़्बा है। इन्हें जिसकी सहायता करनी है, मतलब करनी है। उसके लिए डीएम से लेकर सीएम तक जिसका नम्बर मिल जाए, ये धड़ल्ले से उसे फोन खटका देते हैं। ऐसा ही देश सोचा होगा हमारे पुरखों ने।
क़ीमत बहुत बड़ी चुकानी पड़ी है लेकिन इस बीमारी के कारण मेरे देश की फुलवारी ने वटवृक्षों को सहारा देना सीख लिया है। इनके हौसले को बनाए रखने में जो मदद हो सके, ज़रूर कीजिये।
इन्हें ध्यान से देखो, हर बालक में एक कन्हैया दिखाई देगा जिसने अपने गोकुल की रक्षा के लिये अपनी नन्हीं उंगली पर गौवर्द्धन उठा लिया है।
इति शिवहरे, ललित तिवारी, रुचि चतुर्वेदी, प्रिंस जैन, दीपाली जैन, पार्थ नवीन, सृष्टि सिंह, प्रियांशु गजेंद्र, भूमिका जैन, सुनील साहिल, अजय अंजाम, अवनीश त्रिपाठी, स्वयं श्रीवास्तव, सुदीप भोला, रामायण धर द्विवेदी, रश्मि शाक्या, कमलेश शर्मा, अनुज त्यागी, नंदिनी श्रीवास्तव, दीपक पारीक, नीर गोरखपुरी, विनोद पाल, दुर्गेश तिवारी, कुमार सागर, पूजा यक्ष, सरगम अग्रवाल, शालिनी सरगम, गौरव चौहान, संदीप शजर, रूपा राजपूत, भावना राठौर, पल्लवी त्रिपाठी, एकता भारती, गोपाल पाण्डे, हिमांशु भावसार और न जाने कितने सारे ऊर्जावान युवा लगातार लोगों के आँसू पोंछने के लिए अपनी नन्हीं हथेलियाँ लिए उपलब्ध हैं।
इन्हें नाम की कोई चाह नहीं है। जिस तक मदद पहुँच जाए, उसके लिए की गयी मदद की गुहार वाली पोस्ट भी ये अपनी वॉल से डिलीट कर देते हैं। कई ऐसे भी हैं जो व्हाट्सएप समूहों में लगातार जुटकर लोगों की मदद कर रहे हैं लेकिन उनका नम्बर मेरे पास दर्ज नहीं है इसलिए उनका नाम तक मैं नहीं जानता।
सचमुच, ये ऐसे मदद कर रहे हैं जैसे मदद की जानी चाहिये। ईश्वर मेरे जीवन के सारे पुण्य इन सब पर बरसा दे!
-चिराग़ जैन
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