झाँक सको तो मन में झाँको
घटनाओं की परतें खोलो
किस्सों को खूंटी पर टाँको
आँखें क्यों छोटी कर दी हैं, होठों के उल्लास ने
आँसू की नदियाँ ढक ली हैं मुस्कानों के व्यास ने
कैकई मैया का राजा के महलों बीच ठिकाना था
नौकर, चाकर, दास, दासियाँ सबका आना-जाना था
होने को तो उसके आगे सुविधाओं का मेला था
लेकिन मन के भीतर केवल मरघट का वीराना था
पानी तक पहुँची तो बदला रंग पुरानी प्यास ने
आँसू की नदिया ढक ली है मुस्कानों के व्यास ने
अपमानित शकुनी इक ज़िद पर पूरा जीवन वार गया
अपमानित चाणक्य उसी ज़िद पर हर बाज़ी मार गया
विष्णुगुप्त नायक है युग का और शकुनी खलनायक है
इसका मोहरा जीत गया है, उसका मोहरा हार गया
जो भी जीता उसे सिकंदर मान लिया इतिहास ने
आँसू की नदिया ढक ली है मुस्कानों के व्यास ने
क़िस्सा क्या है, आधे सच को ढकता एक झरोखा है
कथा, विजेता की सहमति से होने वाला धोखा है
आँखों देखी को भी बाँचो, किसकी आँखों से देखी
सच जो पर्दे के पीछे है, उसका रूप अनोखा है
वैभव की झोली खाली है, सुख पाया संन्यास ने
आँसू की नदिया ढक ली है मुस्कानों के व्यास ने
© चिराग़ जैन
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