हो रहा ओझल किनारा
साँस डर कर ले रहे हैं
विष घुला है हर नज़ारा
किन्तु हम ख़ुद को पुनः सुकरात कर लेंगे
फिर नई शुरुआत कर लेंगे
मानते हैं, आदमी से भूल भारी हो रही थी
एक अंधी दौड़ की सब पर ख़ुमारी हो रही थी
इस हवस का अंत होगा, होड़ का अवसान होगा
फिर नई दुनिया बसेगी, फिर सृजन का गान होगा
खेत, वन सबका सही अनुपात कर लेंगे
फिर नई शुरुआत कर लेंगे
देख लेना इस नए जग की सुरीली तान होगी
श्वास में विश्वास होगा, आँख में मुस्कान होगी
प्रेम का व्यवहार होगा, प्रीत का सत्कार होगा
फिर नए बिरवे उगेंगे, फिर नया संसार होगा
हर तरफ़ उल्लास को तैनात कर लेंगे
फिर नई शुरुआत कर लेंगे
लोभ का प्रतिकार करना जानता हो, वो बचेगा
सत्य को स्वीकार करना जानता हो, वो बचेगा
जो बचेगा, वो मनुजता के लिए वरदान होगा
जो बचेगा, वो नए युग का नवल उत्थान होगा
साथ मिलकर फिर वही हालात कर लेंगे
फिर नई शुरुआत कर लेंगे
धड़कनें इस बात की पहचान है, जीवन अमर है
ज़िन्दगी क्या है, शिराओं में लहू का वेग भर है
श्वास में संगीत होगा
धड़कनों में ताल होगी
तन समूचा स्वस्थ होगा
ज़िन्दगी ख़ुशहाल होगी
देह को उपचार में निष्णात कर लेंगे
फिर नई शुरुआत कर लेंगे
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