Tuesday, April 7, 2020

कविग्राम की कार्यशाला में

कविग्राम की कार्यशाला में प्रवेश करने के बाद दिन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कवि-सम्मेलन के पुराने वीडियो सुबह से ही मेरी कम्प्यूटर स्क्रीन पर बहार ले आते हैं। एक-एक वीडियो की लॉग शीट बनाना, फिर उसमें पढ़ी गई कविताओं को लिपिबद्ध करना, फिर उन्हें वीडियो एडिटर में संपादित करना, उनके लिए थम्बनेल डिज़ाइन करना, थम्बनेल के लिए फ़ोटो तलाशना, लिप्यन्तरण में कोई शब्द समझ न आए तो किसी वरिष्ठ कवि से पूछना... पूरा दिन मेहनत करके तीन या चार वीडियो ही तैयार कर पाता हूँ।
समय की क़ैद से अभी-अभी बाहर निकली इस सामग्री में कहीं ऑडियो क्वालिटी बहुत ख़राब है तो कहीं वीडियो क्वालिटी... जितनी मुझे तकनीक की जानकारी है, उसके मुताबिक़ उसे हर सीमा तक बेहतर बनाता चल रहा हूँ। मुझे तकनीक की जानकारी कम है, लेकिन अपने वरिष्ठ कवियों के प्रति श्रद्धा भरपूर है।
एक वीडियो में देवराज दिनेश जी कविता पढ़ रहे हैं, वीडियो और साउंड दोनों की ही क्वालिटी बहुत ख़राब है, लेकिन मैंने एक शब्द कविता भी व्यर्थ नहीं होने दी। एक-एक शब्द लिख लिया और अन्य श्रोताओं को समझने में दिक्कत न हो, इसके लिए एक-एक पंक्ति को वीडियो के साथ लिखकर नत्थी कर दिया। इस वीडियो को तैयार करते समय मुझे उस ऑडियो रिकॉर्ड की याद आ गई, जिसमें गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की आवाज़ में जन-गण-मन गीत सहेजा गया है। उसकी क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं है, किंतु वह टैगोर की एकमात्र उपलब्ध ऑडियो क्लिप है। ऐसे ही कुछ दीवाने लोगों ने विवेकानन्द, महात्मा गांधी, सर सैयद अहमद खां, जवाहरलाल नेहरू आदि की ऑडियो भी सहेज लीं थीं; वही क्लिप्स आज तक इन आवाज़ों के दरदरे दुलार की अनुभूति करवा देती हैं।
शुरुआती फिल्मों की क्वालिटी भी बहुत अच्छी नहीं मिलती, लेकिन जिन्हें रस लेना आता है, उनके लिए ये ख़राब तकनीकों की मारी हुई सामग्री अनमोल है।
ताड़पत्रों की जटिल देखरेख आज की प्रकाशन तकनीकों के आगे अनावश्यक जान पड़ती है, किन्तु जिनके पास ताड़पत्रों पर लिखे ये ग्रन्थ सुरक्षित हैं वे जानते हैं कि इन पत्रों की लाख प्रतियाँ ऑफसेट पर छप सकती हैं लेकिन फिर भी वे उन जर्जर ताड़पत्रों से कमतर ही रहेंगी।
कवि सम्मेलन की इस धरोहर को व्यवस्थित करते हुए मुझे लगातार इस बात की संतोषानुभूति हो रही है कि जैसे हम निराला, पंत, महादेवी, प्रसाद, स्नेही, हरिऔध, दिनकर, गुप्त आदि महानुभावों की आवाज़ सुनने से वंचित हैं वैसे हमारी आनेवाली पीढ़ियाँ शंभूनाथ सिंह, बरसानेलाल चतुर्वेदी, गोपालदास नीरज, किशन सरोज, भारत भूषण, रमानाथ अवस्थी, बेकल उत्साही, शिशुपाल सिंह निर्धन, बृजेन्द्र अवस्थी, शैल चतुर्वेदी, उर्मिलेश शंखधर, मधुर शास्त्री, माणिक वर्मा, निर्भय हाथरसी, राधेश्याम प्रगल्भ, वीरेंद्र मिश्र, ओमप्रकाश आदित्य जैसे कवियों की आवाज़ तलाशने चलेंगी, तो निराश नहीं होंगी।
इस कार्य को करते हुए मुझे इस बात की कतई परवाह नहीं है कि इसकी क्वालिटी के कारण ‘यूट्यूब और फेसबुक की लाइक्स और शेयर की अंधी होड़’ में मैं पिछड़ सकता हूँ।
मैं बस इतना जानता हूँ कि इस कार्य को करते हुए मुझे थकान नहीं हो रही, क्योंकि मुझे संतुष्टि है कि आज से दस-बीस साल बाद भी जब कोई काव्य प्रेमी इनमें से किसी कवि को तलाशने चलेगा तो मेरा आज का श्रम उस समय उसकी आँखों में चमक उठेगा!

- चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment