Monday, December 17, 2012

पूजा के हक़दार

जिस डाली का काटा जाना आज अखर जाता है तुमको 
उस डाली के कटने से ही कल को तुम फलदार बनोगे 
जिस छैनी के छूने भर से चीख़ निकलती है पत्थर की 
उस छैनी की चोटों से तुम पूजा के हक़दार बनोगे 

अनुभव के दो हाथ समूचे माटी-माटी सन जाएंगे 
तब जाकर मिट्टी के ढेले को किंचित आकार मिलेगा 
मिट्टी से पहले हाथों की भाग्य लकीरें घिस जाएंगी 
तब बर्तन कहला पाने का मिट्टी को अधिकार मिलेगा 
जिन जलते शोलों से तन-मन सब कुछ झुलसेगा भीतर तक 
उनके कारण ही तुम प्यासे ओंठों पर बौछार बनोगे 

गंगा बनकर पुजना है तो, गोमुख से झरना ही होगा 
बूंदों को बारिश बनना है, बादल को मरना ही होगा 
रामशरण स्वीकार नहीं हो, और मुक्ति की इच्छा हो तो 
कंचन मृग का स्वांग रचा कर, सीता को हरना ही होगा 
अपने सारे सुख को अपने हाथों वनवासी कर दोगे 
तब सम्भव है तुम जीते जी धरती पर अवतार बनोगे 

© चिराग़ जैन

Sunday, December 9, 2012

क्या कर लेगा ऊलाला

सौम्य धुनों से क्या जीते रीमिक्सों का गड़बड़झाला
ओरिजनल से पस्त रहेगा, हर नकली-शकली वाला
जब महफ़िल में गुंजित होगी, बच्चन जी की मधुशाला
क्या कर लेंगी शीला-मुन्नी, क्या कर लेगा ऊलाला

© चिराग़ जैन

Wednesday, November 21, 2012

अंजाम वहशतों का

तुम पीटते ढिंढोरा, गर बात हो ज़रा सी
कैसे किए भला फिर हैरान देशवासी
बोलो जनाब इसमें क्या चाल थी सियासी
चुपचाप क्यों चढ़ाया तुमने कसाब फांसी

पर तक न मार पाया, उस पल वहाँ परिंदा
मरते ही आपने जब दफ़ना दिया दरिंदा
जनता को भी दिखाते अंजाम वहशतों का
मर कर तो हो न जाता फिर से कसाब ज़िंदा

साहिब का इस विषय पर कोई ग़ौर तो नहीं था
जिस तरह उसको मारा, वो तौर तो नहीं था
गीदड़ के नाम पर फिर हिरनी तो नहीं मारी
था तो कसाब ही ना, कोई और तो नहीं था

© चिराग़ जैन

Tuesday, November 20, 2012

बपौती

साफ़-साफ़ बात सुन लो जी
ये दुनिया
हम मर्दों की बपौती है
इसमें रहना है
तो रहना ही होगा
हमारी शर्तों पर।

हमने कई तरह से चाहा
तुम्हें कहना
लेकिन तुम हो
कि सुनती ही नहीं हो

हमने नियम बनाए
ताकि तुम समझ सको
अपनी सीमाएँ!

हमने बातें बनाईं
ताकि तुम डर सको
बदनामी से!

हमने प्रथाएँ बनाईं
ताकि तुम
व्यस्त रह सको
उनके निर्वाह में!

हमें अच्छी नहीं लगती
मर्दाना कामकाज में
तुम्हारी दखलंदाज़ी।

तुम हो ही क्या
पुरुष की
मजबूरी और कमज़ोरी के सिवाय!

बेचारा अभिमन्यु
मारा गया
सिर्फ़ तुम्हारे कारण
तुम्हें मालूम होना चाहिए था
कि औरत का काम है
जागते रहना
पुरुष की सुविधा के लिए।

महाभारत के
महाविनाश की वजह
तुम
तुम्हें जानना चाहिए था
कि औरत बनी ही भोग के लिए है
उसको पचा लेना चाहिए
बड़े से बड़ा अभिमान
अपने भीतर।

लंका जैसी नगरी के
रक्तरंजन का कारण तुम।
तुम्हें पता होना चाहिए था
कि औरत के लिए
सर्वथा अनुचित है
किसी लक्ष्मण द्वारा खींची
मर्यादा रेखा का उल्लंघन।

बड़ी विदुषि बनी फिरती हो
पहचान नहीं सकती थी
साधु के वेश में खड़े रावण को
और गौतम के वेश में खड़े इन्द्र को
...थोड़ा ढँक-ओढ़ के नहीं रह सकती
ज़रूरी है अपने सौंदर्य का ढिंढोरा पीटना
आग को देखेगा
तो घी तो पिघलेगा ही
फिर दोष मंढ़ोगी पुरुष के सिर
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

समझ लो साफ-साफ
ये दुनिया हमारी है
इसमें रहना है
तो हमारे मुताबिक़ रहो
वरना
तुम्हारे लिए
दुनिया में एंट्री बैन!

© चिराग़ जैन

Wednesday, November 14, 2012

बाज़ार की अफ़वाह और अफ़वाह का बाज़ार

दीवाली, दशहरा, रक्षाबंधन
ये सब हमारे लिए त्यौहार हैं
लेकिन कुछ लोगों के लिए सिर्फ व्यापार हैं

हर साल की तरह
इस साल भी दीवाली आई,
इस साल भी हुआ
लक्ष्मी जी का पूजन
आतिशबाज़ी और घरों की सफ़ाई,
लेकिन इस साल हमने मिठाई नहीं खाई।

बचपन में इतनी मिठाई आती थी
इतनी मिठाई आती थी
कि पेट अफ़र जाता था
रोटी तो माँ के डर से खानी पड़ती थी
वरना पेट तो मिठाई से ही भर जाता था।

खोये में मिलावट की बात को
ये टीवी चैनल कुछ ज़्यादा नहीं खेंच रहे हैं
मुझे तो लगता है
कि बेचारे खोए को बदनाम करके
ये अपनी चाॅकलेट बेच रहे हैं।

युगों-युगों से चले आ रहे त्यौहारों मे
ये अपनी राय क्यों झोंकते हैं
हमें हमारी ही परम्पराओं के पालन से रोकते हैं
बाज़ार की हवाएं कैसी कैसी बातें बनाती हैं
और तो और
डाॅक्टर कहता है
काजल लगाने से आंखें ख़राब हो जाती हैं।

पहले की माँए
दीवाली की रात
कच्ची पाली में काजल बनाती थी
पूरे साल बच्चों की आँखों में लगाती थी
काजल से आँख ख़राब होना तो दूर
चश्मे का नम्बर तक नहीं बढ़ा
ये काजल का ही करिश्मा था
कि लालटेन की रौशनी में पढ़कर
कलाम साहब राष्ट्रपति बन गए
लेकिन कभी चश्मा नहीं लगाना पड़ा

और अगर काजल लगाने से
इतना ही अधिक होता है आंखों का नुकसान
तो फिर आई लाइनर
और आई पैन्सिल पर
आप मौन क्यों हैं श्रीमान्!

लोभ की आरी में बाज़ार का हत्था लगाकर
आप काट नहीं पाएंगे
हमारी संस्कृति की शाखें
अरे हमारे तो सौंदर्य का प्रतिमान है
रतनारे नैन और कजरारी आँखें!

हमारे यहाँ
प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम था
किसी का भी गेट खटखटाकर
पानी मांग लेना इस देश में आम था
फिर आया एक ख़ास किस्म की ख़बरों का दौर
पानी पीने के बहाने माल साफ कर गए चोर
पानी पीने के बहाने लूट लिया
पानी पीने के बहाने मार दिया
पानी, प्यास और लूट का ऐसा मचा शोर
प्यासों की दहशत के चर्चे हो गए हर ओर
जैसे ही पानी मांगने वालों पर
लोगों ने नज़रें तरेरी
फौरन मार्किट में लांच हो गई
एक-एक लीटर की बिस्लेरी

कृष्ण के देश में
जहां दूध नदियों में बहा
वहाँ एक न्यूज़ चैनल ने कहा
कि आपके घर में आने वाला दूध
ज़हर हो सकता है
बताइए जनाब क्या इससे भी अधिक
कोई कहर हो सकता है

आप साबुन के विज्ञापन में
माॅडल को दूध से नहाते दिखाते हो
अगर सारा ही दूध ज़हर है
तो आप साबुन के लिए
शुद्ध दूध कहाँ से लाते हो?

इन हालों आने वाली पीढ़ियों को
कृष्ण की कथा कैसे सुनाई जाएगी
क्या शुद्ध दूध का स्वाद चखने के लिए
बच्चों को साबुन खिलाई जाएगी।

पत्ता गोभी में एक कीड़ा पाया जाता है
जिसके कारण ब्रेन में होल होता है
काजू में कोलेस्ट्रोल होता है
दातुन करने से कमज़ोर होते हैं दाँत
मिठाई खाने से ख़राब होती हैं आँत
देशी घी से फेल हो सकता है हार्ट
इन्हीं बातों के दम पर तो चल रहे हैं
बड़े बड़े वाॅलमार्ट

यदि वो हमारी सुराही को ख़राब नहीं बताते
तो अपना वाटर कूलर कैसे बेच पाते
यदि इंडियन आदमी यूँ ही दीवाना रहता
आम और नीबू के अचार का
तो भट्टा ही बैठ जाता
जैम और जैली के व्यापार का
पाँच रुपए प्लेट के छोले कुल्चे से
यदि हमें नहीं डराया जाता
तो उनका डेढ़ सौ रुपए का पिज़्जा कौन खाने जाता

एक्चुअली हमारी जिस-जिस परंपरा में बाज़ार है
वो-वो परंपरा उन्हें स्वीकार है
और जिसमें संस्कृति की गंध है
मुहब्बत का घोंसला है
वो-वो उनके लिए ढकोसला है

इंडियन पब्लिक
पूरी दुनिया के व्यापारियों की एकमात्र होप है
इंडिया में मार्किट का बहुत बड़ा स्कोप है
इस स्कोप को ढूंढते हुए
जब कालीकट की बंदरगाह पर
तुमने उतारे थे काॅफी के जहाज
तब हमने तो नहीं किया था ऐतराज

आपका तो ये स्टाइल रहा है जनाब
पहले मुफ्त बाँट-बाँट के लगाते हो चाव
और फिर बढ़ा देते हो भाव

हम सदियों से
झाड़-फूस और जड़ी-बूटियों में
ढूंढते रहे हैं इलाज
लेकिन एलोपैथी ने सब कुछ बदल डाला है आज
ज़रा सा पेन हुआ नहीं
कि तुरंत कैप्सूल खाएंगी
एंटी बायोटिक और पेनकिलर पर
ज़िंदा रहने वाली बेटियाँ
प्रसव का दर्द सहना कैसे सीख पाएंगी

जब कोई काॅलेज का लड़का
इंडियन कल्चर को वेस्टर्न विकास से
कम तोल रहा होता है
तो उस समय वो नहीं बोलता
उसके पेट में पड़ा
बर्गर बोल रहा होता है

अब तो हमारे रहन-सहन पर
असर करने लगा है
लालच का कारोबार
हमें दो पल ठहर कर करना होगा विचार
आख़िर क्यों विदेशी कैक्टसों ने उखाड़ फेंके हैं
आंगन में लगे तुलसी और नीम
ये हमें निर्धारित करना होगा
कि हमें अपने बच्चों को
अंडरटेकर बनाना है
या महाबली भीम

नई पीढ़ी को जकड़ रहा
मानसिक ग़ुलामी का संकट
यूँ ही नहीं टलेगा
इसे भगाना भी होगा
केवल भारतीय गौरव
की बातें करने से काम नहीं चलेगा
भारतीय परंपरा को अपनाना भी होगा

© चिराग़ जैन

Sunday, October 7, 2012

ठहाकों का दौर

ग़मों का दौर है आफत में जान है लेकिन
कुछ ऐसी बात चले रंग और हो जाए
फिर एक बार फुर्सतों पे नूर आया है
चलो कि फिर से ठहाकों का दौर हो जाए

© चिराग़ जैन

Thursday, September 20, 2012

मीडिया

खाली बैठे पक गए हैं यार, कुछ लफड़ा करो
ज़िन्दगी लगने लगी बेकार, कुछ लफड़ा करो

इस कदर सूखा पड़ा है, देश भर के क्राइम में
भजन टेलीकास्ट होंगे, अब क्या प्राइम टाइम में
क्या रिपोर्टर सीख लें, ठुमरी, ग़ज़ल, कव्वालियाँ
एंकरों का नूर सारा पी गईं खुशहालियाँ
ओ बड़े लोगों के बरखुरदार, कुछ लफड़ा करो

बात तो छेड़ो, बतंगड़ हम बना देंगे जनाब
फूक मारो, उसको अंधड़ हम बना देंगे जनाब
कोई नेता बेवजह की बात क्यों बकता नहीं
क्या कोई मंत्री यहां, घोटाला कर सकता नहीं
मीडिया से डर गई सरकार, कुछ लफड़ा करो

जातिवादी आग वाला एक दंगा ही सही
या किसी बिल पर बिना मतलब अड़ंगा ही सही
प्याज की कीमत बढ़ा दो, तेल को मंदा करो
शेयरों का खेल खेलो, गोल्ड का धंधा करो
हाय स्टेबल हो गया बाज़ार, कुछ लफड़ा करो

सबको सेटिस्फाई क्यों करने लगा बाज़ार भी
बिन बहस बढ़ता नहीं, टीआरपी का ग्राफ भी
सनसनी के फेस पर मनहूसियत सी छा गई
पूज्य भ्रष्टाचार जी को कौन डायन खा गई
मर गए क्या देश के गद्दार, कुछ लफड़ा करो

हाय रे फैशन जगत् कैसा रिसाला पढ़ गया
सुंदरी के पब्लिकल चुंबन पे ताला जड़ गया
कोई कास्टिंग काउच का मसला-मसाला भी नहीं
कोई एमएमएस किसी ने क्यों उछाला भी नहीं
बोर सा लगने लगा अख़बार, कुछ लफड़ा करो

एक तो लफड़े बिना, ख़बरें ख़तम होने लगीं
और कमर्शियल ब्रेक की इनकम भी कम होने लगी
आंकड़ों के खेल की पुड़िया असर करती नहीं
मीडिया विश्लेषकों की दाल अब गलती नहीं
पत्रकारों का चले घर बार, कुछ लफड़ा करो

जब से पूरे मुल्क में फैला हुआ आनंद है
आउटपुट एडीटरों की आउटगोइंग बंद है
हम समझते थे कि बस हम ही यहां चंगेज़ हैं
हम बताते थे कि हम दुनिया में सबसे तेज़ हैं
आज अपनी रुक गई रफ्तार, कुछ लफड़ा करो

© चिराग़ जैन 

Tuesday, September 18, 2012

नास्तिक

कितनी आसानी से
समझा जा सकता है
नास्तिक
और आस्तिक की
पहचान को।

आस्तिक मानता है
कि भगवान ने
इंसान को बनाया है
और नास्तिक मानता है
कि इंसान ने
भगवान को।

© चिराग़ जैन

Friday, September 7, 2012

उत्सव रूठ जाएगा

अगर व्यवधान होगा तो ये उत्सव रूठ जाएगा
कोई इक पल कई रातों की मेहनत लूट जाएगा
ये तनहाई की बातें आई हैं महफ़िल में हिम्मत से
हुई अनदेखी तो इनका मनोबल टूट जाएगा

© चिराग़ जैन

Tuesday, August 21, 2012

महंगाई का फायदा

एक मंत्री जी ने कहा है कि महंगाई से मैं बहुत ख़ुश हूँ, क्योंकि इससे किसानों को फ़ायदा होगा। यह परोपकार का ऐसा आयाम है जिसके लिये इतिहास हमेशा बेनी जी का ऋणी रहेगा। सब लोग सरकार की आलोचना करते हैं (उनको चाहिये कि वे सरकार से डरें, नहीं तो सरकार उनका फ़ेसबुक अकाउंट ब्लॉक करवा देगी) लेकिन इस समय कांग्रेस सरकार ने जो उपक्रम आरंभ किये हैं उनसे आश्वस्त हुआ जा सकता है कि या तो भविष्य आएगा ही नहीं, और आया तो उसको स्वर्णिम पॉलिश कर के आना होगा। वरना उसको इंडिया का वीज़ा ही नहीं दिया जायेगा। अब भविष्य कोई पाकिस्तानी घुसपैंठिया तो है नहीं, जो सुरंग बनाकर घुस आए। 

ख़ैर, सरकार ने महंगाई बढ़ाकर न केवल किसानों की समस्याओं का हल निकाला है, बल्कि और भी बहुत से पेशों का भला किया है। महंगाई के कारण लोग भूख से परेशान हो जाएंगे, लूट-खसोट करने के लिये उनको अभिप्रेरणा मिलेगी। इससे समाज में अपराध बढ़ेंगे तो पुलिसवालों का भला होगा। कुछ लोग जेब बचाने के लिये स्वास्थ्य को ताक़ पर रख देंगे, इससे डॉक्टरों के बच्चे पल जाएंगे। जो लोग अपने बच्चों को भूखा मरते नहीं देख सकते, वे आत्महत्या के लिये प्रेरित होंगे। इससे श्मशान के पंडितों का परिवार चलेगा। 

आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ीं तो मीडिया में शोर मचेगा। इससे पत्रकारों का पेट पलेगा। ...इस समय सरकार पालनहार की भूमिका अदा कर रही है। आज तक किसी सरकार ने समाज के इन वर्गों की चिंता नहीं की। सरकार के इन प्रयासों की प्रशंसा करने के स्थान पर लोग माननीय बेनी जी की आलोचना कर रहे हैं।

मैं कृतज्ञता अर्पित करता हूँ सरकार के प्रति और अनुरोध करता हूँ कि कृपया मेरा फेसबुक अकाउंट ब्लॉक न करवाएँ, मैं इसी प्रकार समय-समय पर सरकार की चापलूसी करता रहूंगा। मैं जानता हूँ ‘सरकार’! आपकी मर्ज़ी के बिना 8 साल से देश का प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोल पाया, तो मेरी क्या औक़ात है!

यदि फिर भी सरकार चाहे तो पूरा फेसबुक ही बंद करवा सकती है, वैसे भी जिस जनता के पेट भरने के भी लाले पड़ने वाले हैं वो बोलने या चिल्लाने के क़ाबिल ही कहाँ बचेगी। और यदि बीपीएल कार्ड पर फ्री के मोबाइल वगैरा की सुविधा लेकर बोल भी लेगी, तो उसकी सुनेगा कौन।

© चिराग़ जैन

Sunday, August 12, 2012

सिर्फ़ हंगामा

आज स्वर्गीय दुष्यंत कुमार पर बहुत गुस्सा आ रहा है। उनका एक शेर पूरे हंगामे की जड़ बन गया है। पहले कोई भी विवाद खड़ा करने से पहले हर आदमी को यह भय रहता था कि मुझे कलेसी समझा जाएगा। लेकिन अब दुष्यंत ने सब कलेसियों को सुविधा दे दी है कि जब के कलेस करो और अंत में दो मिसरे बोल कर सारे आरोपों का पिंडदान कर डालो-

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

इस शेर को पूरा देश उसी भाव से सुनता है जिस भाव से द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर के मुख से अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुना था। ‘अश्वत्थामा हतोयतः...’ सुनने के बाद पूरे देश के कान बंद हो जाते हैं और यह समझ ही नहीं पाते कि अगले मिसरे में अगला किसी कोशिश की बात कर रहा है।

फ़ेसबुकियों से लेकर संसदियों तक; जंतर-मंतर से लेकर रामलीला मैदान तक हर जगह अवचेतन में गुलाम अली का हारमोनियम टुनटुनाने लगता है- हंगामा है क्यों बरपा...। शाम के प्राइम टाइम बुलेटिन में हर न्यूज़ चैनल पर चार-पाँच कलेसी सादर आमंत्रित किए जाते हैं कि लीजिए, जो क़सर संसद में या रैली में अधूरी रह गई हो, उसको पूरा करो। सबको लाकर काॅलर माइक लगा दिया जाता है। फिर एंकर बहुत सभ्य तरीक़े से सबकी राय जानना चाहता है। जब सब राय दे देते हैं तब बहस शुरू होती है कि विषय क्या हो। बहस कई बार गति पकड़ने का प्रयास करती है लेकिन हर बार एंकर स्पीड ब्रेकर लगाकर प्रश्न उछालता है कि पहले विषय तय कर लिया जाए। और फिर बहस उस विषय से भटक जाती है, जो कभी था ही नहीं। सब एक साथ हंगामा खड़ा करने लगते हैं। बेचारा एंकर सोमनाथ स्टाइल में मीरा कुमार की स्क्रिप्ट पढ़ता रहता है- बैठ जाइए, उनको बोलने दीजिए, कृपया शांत हो जाइए।’

बड़ी मुश्क़िल से सभी इस बात पर सहमत होते हैं कि उस बेचारे को भी सुन लिया जाए जो पिछले बीस मिनिट से हमने जुड़ चुका है। जैसे ही उससे बोलने को कहा जाता है, ऐन वक़्त पर उसके कान में लगा ईअर फोन निकल जाता है और उससे हमारा संपर्क टूट जाता है। इस मौक़े का लाभ उठाकर एंकर तुरंत बताता है कि वक़्त हो चला है एक ब्रेक का।

मैं भी विषय से उतना भटक चुका हूँ, जितना आवश्यक था। सो मैं दो पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ- 

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

© चिराग़ जैन

Saturday, August 11, 2012

बाक़ी सब ठीक है

असम जल रहा है, मुम्बई में हिंसा है, दिल्ली में हा-हाकार है …मध्य प्रदेश में बाढ़ है, राजस्थान में सूखा, सीमापार खड़े कुछ हिंदू हिंदुस्तान आने को तरस रहे हैं, हरियाणा का एक "मंत्री" फ़रार है …संसद में हंगामा हो रहा है। मीडिया भी अब चिल्ला-चिल्ला कर बाज आ चुका है। कुछ दिन राष्ट्रपति की तलाश का ड्रामा चलता है, फिर उसी हंगामे के बीच एक वफ़ादार राष्ट्रपति बनाकर बोलती बंद कर दी जाती है, कुछ लोग जंतर मंतर पर
बैठते हैं कि देश बदलेंगे, फिर कुछ दिन बाद ये कहकर उठ जाते हैं कि हम बदल गये हैं। फिर कुछ दिन उपराष्ट्रपति चुनाव का वैसा ही हल्ला मचता है, फिर किसी को उपराष्ट्रपति बनाकर बोलती बंद कर दी जाती है। बहुत दिन बाद आडवाणी जी के बयान से सोनिया जी बौखलाती हुई दिखाई दीं, लेकिन लोकसभा की कार्रवाई से इसको निकाल दिया गया और देश एक महत्वपूर्ण ड्रामा देखने से वंचित रह गया। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री जी फ़िल्मी स्टाइल में ख़ुद को निर्दोष साबित करने के लिये इस्तीफ़ा देकर फ़रार हो गये। यू पी में करोड़ों रुपया ख़र्च कर के मायावती सरकार ने कुछ ज़िलों के नाम महापुरुषों के नाम पर रखे, अब अखिलेश सरकार ने मायावती की उस भूल को सुधारने के लिये अरबों ख़र्च करने का मन बनाया है।
किसी की किसी बात को लेकर कोई जवाबदेही नहीं है। सरकार और विपक्ष, जो पहले एक साथ चीखते थे, अब अनुशासित हो गये हैं। अब जब सरकार बोलती है तो विपक्ष सुनता है और जब विपक्ष बोलता है तो सरकार। मीडिया में सबकी फ़ुटेज का पर्सेंटेज फ़िक्स हो गया है। उस स्लैब में जिसकी जो चाहे वो बकवास करे।
टाइम बाउंड आमरण अनशन किया जा रहा है, मतलब अनशन करने वाला आश्वस्त है कि इतने समय में वो मर ही जायेगा। इमोशनल कहानी में कॉमेडी के सीन घुसाये जा रहे हैं।
बाकी सब ठीक है।
पूरा देश शंकर जी की बारात हो गया है। जिसका जो मन कर रहा है वो वैसा कर रहा है। हालाँकि कोई भी कुछ नहीं कर रहा है। कोई किसी से सेम्पल मांगते-मांगते ख़ुद एग्ज़ांपल बन गया, तो किसी का सबूत मंत्रालय में रखी फ़ाइल की तरह जल गया।
ऐसा लग रहा है कि हम सब किसी ख़राब फ़िल्म के मूक दर्शक हैं। डायरेक्टर का जब जैसा मन होता है वैसी कहानी डाल देता है, कहानी कहीं है ही नहीं, सिर्फ़ कथाएँ हैं, जिनको सुनाते वक़्त भविष्य हम सब पर ठहाका मार कर हँसेगा …वैसे इस बात की भी कोई गारंटी नहीं इस कहानी को सुनने के लिये कोई भविष्य में बचेगा भी या नहीं!

© चिराग़ जैन

Monday, August 6, 2012

ग़ज़लों की सादा बस्तियों को चूम आता हूँ

नज़र की शोख़ियों को, मस्तियों को चूम आता हूँ
जे़ह्न में तैरती कुछ कश्तियों को चूम आता हूँ
ठहाकों के मुहल्ले में सजी महफ़िल से उठकर मैं
हसीं ग़ज़लों की सादा बस्तियों को चूम आता हूँ

© चिराग़ जैन

Sunday, July 29, 2012

खारिज

एक ही पल में 
उभर आए
कई सारे शिक़वे
ढेर सारे गिले

और फिर
अगले ही पल
मैंने ख़ुद-ब-ख़ुद
लाजवाब कर दिया उन्हें
अपने मन की अदालत में

....ऐसा नहीं था
कि सचमुच बेबुनियाद थीं
मेरी शिकायतें

बल्कि बात दरअसल ये थी
कि अदालत दिल की थी
और
दिल तुम्हारा...!

© चिराग़ जैन

Sunday, July 8, 2012

पुरवा

एक बादल ने सरे-शाम भिगोई पुरवा
सुब्ह फूलों से लिपट फूट के रोई पुरवा

उसने ओढ़ा हुआ होगा कोई ग़म का बादल
यूँ ही मदमस्त नहीं होती है कोई पुरवा

हाय ये शहर बहुत रूखा हुआ जाता है
अबकी गाँवों ने क्या सरसों नहीं बोई पुरवा

तेरे दामन से क्यों उठती है महक ममता की
छू के आई है क्या अम्मा की रसोई पुरवा

आज उन लोगों के आंगन में बसी है पछुआ
जिनके पुरखों ने कलेजे में संजोई पुरवा

© चिराग़ जैन

Wednesday, June 20, 2012

रौशनी

जब कोई शख़्स
कोशिश करता है
सूरज से
आँख मिलाने की

तो केवल
आँखें ही नहीं चुंधियाती

त्यौरियाँ भी
पड़ जाती हैं
माथे पर!

© चिराग़ जैन

Saturday, June 9, 2012

करीने की बात

मरने की बात हो चुकी जीने की बात कर
गाली-गलौज छोड़, करीने की बात कर
सीने के नाप से ये सियासत न चलेगी
अब आम आदमी के पसीने की बात कर

✍️ चिराग़ जैन

Friday, June 8, 2012

प्रमाण

इससे पहले कि लोग तुम्हें कंधा दें,
…तुम उनको अपने जीवित होने का प्रमाण दे दो।
- चिराग़ जैन

Sunday, June 3, 2012

हम विकसित हुए

आज़ादी से पहले 
इस देश में पर्दा प्रथा थी

फिर कुछ लोगों ने आन्दोलन चलाए, 
हम विकसित हुए
...पर्दे ग़ायब हो गए।

फिर देश आज़ाद हुआ, 
हम और विकसित हुए
स्लीवलेस का ज़माना आ गया।

फिर बड़े-बड़े शहर बसे, 
हम और विकसित हुए
लडकियों ने दुपट्टे लेने बंद कर दिए।

आज मॉल कल्चर में देखता हूँ
एक चोगा सा पहनती हैं, 
नीचे से सलवारें ग़ायब।

इस पूरे आकलन पर 
एक टिपण्णी करना चाहता हूँ-
"ग़रीबी 
आदमी के कपड़े उतरवा लेती है, 
और अमीरी औरतों के।" 

-चिराग़ जैन

Thursday, May 24, 2012

मैं लाचार हूँ

घटक दल बोलता है बस यही हर बार मैं लाचार हूं
मेरी तो बात सुनती ही नहीं सरकार मैं लाचार हूं
मेरी बीवी ने पाले हैं गली में यार, मैं लाचार हूं
मेरी बीवी चलाती है मेरा परिवार मैं लाचार हूं

© चिराग़ जैन

Sunday, April 29, 2012

बेमानी

बहुत दिन से इंतज़ार था
एक ख़ास यात्रा का
मुश्क़िल से हाथ आया
यात्रा का अवसर
घर से निकला
उत्साह से आपूरित
कुछ ही दूर पहुँचा
कि मोबाइल पर
एस एम एस आया-
”सुनो! जल्दी आना...“
...और मुझे बेमानी लगने लगी
हर उपलब्धि।

© चिराग़ जैन

Friday, April 6, 2012

वंदना के गीत

जश्न में खोने से पहले दो घड़ी ख़ुद को जगा लें
उत्सवों की देहरी पर देवताओं को मना लें
मुस्कुराहट दिव्य हो जाएगी गर दो पल ठहर कर
उल्लसित होने से पहले वंदना के गीत गा लें

© चिराग़ जैन

Wednesday, March 21, 2012

सरकारी स्कूलों के बच्चों में संस्कार

श्री श्री रविशंकर ने बयान दिया है कि ”सरकारी स्कूलों के बच्चों में संस्कार नहीं होते।“ सुनकर लगा कि श्री श्री को अपनी खी-खी करवाने का चाव चढ़ा है। उनको कोई समझाये कि सरकारी स्कूलों में तो बच्चे ही नहीं होते। उन टीन वाले कमरों में ‘बाप’ पढ़ते हैं।

अमीरी की चम्मच मुँह में दबाए जन्मने वाले लाटसाहबों को अगर चार दिन इन सीलन भरे कमरों में बैठना पड़ जाये तो वे बिना किसी बाबा की सहायता के ‘सुदर्शन क्रिया’ करने लगेंगे। इसका प्रयोग करने के लिये बाबा स्वयं इन विद्यालयों का दौरा करें, वहाँ पहुँचते ही ‘कोऽहम्- कोऽहम्’ का मंत्र न बोलने लगें तो कहना।

ज़िम्मेदार लोगों को इस प्रकार की ग़ैर-ज़िम्मेदार बातें नहीं कहनी चाहियें। बाकी रही संस्कार की बात तो बाबा किसी दिन छुट्टी के समय कॉन्वेंट स्कूलों के बाहर जाकर देख लेना, संस्कृति और संस्कार किस प्रकार बसों के पीछे खड़े प्रेम और सद्भावना का प्रसार करते हैं, देख कर आपकी देह के विविध प्रदेशों के रोम राष्ट्रगान की मुद्रा में आ जाएंगे।

सरकारी स्कूलों की चुनौतियाँ बेशक़ टॉपर्स की फेहरिस्त तैयार न करने देती हों, लेकिन जीवन जीने का सही ज्ञान इन स्कूलों में आज भी बच्चे टाट्पट्टी पर बैठ कर ग्रहण कर लेते हैं।

© चिराग़ जैन

Ref : Sri Sri Ravishankar

Monday, February 27, 2012

मेरी हिम्मत

निराशा तो मेरी आंखों को नम होने नहीं देगी
मगर उम्मीद मुझको चैन से सोने नहीं देगी
बहुत आसां नहीं होगा मेरे सपनों का सच होना
बहुत मुश्क़िल मेरी हिम्मत इसे होने नहीं देगी

© चिराग़ जैन

Friday, February 24, 2012

वायरस

जब से
डाउनलोड की है
तुम्हारे नाम की फाइल
बार-बार हैंग होता है
दिल का सिस्टम

...शायद
कोई वायरस था
फाइल में।

जिसने सबसे पहले
डी-एक्टिवेट किया
ब्रेन का एंटी-वायरस
और फिर
करप्ट कर दिया
ऑपरेटिंग सिस्टम
स्लो कर दी
रैम भी!

...शायद
इंस्टाॅल करनी पड़ेगी
नई विंडो!

© चिराग़ जैन

Wednesday, February 22, 2012

अधूरे ख़्वाब

हर रात
मैं बुनता था इक ख़्वाब
और फिर
उसको अधूरा छोड़
चुपचाप सो जाता था
कि कभी तुम्हारे साथ
साकार करूंगा
ख़्वाब में उभरा
ये ख़ूबसूरत लम्हा...

एक-एक करके
जाने कितने ही सपने
इकट्ठे हो गए
मेरे तकिए के नीचे।

आज जब सोने लगा मैं
बिना संजोए कोई ख़्वाब
तो अचानक
मेरे सामने खड़े हो गए
सैंकड़ों अधूरे ख़्वाब
तकिए के नीचे से निकलकर। 

सबकी भंगिमा में मौजूद था
एक ही प्रश्न-
"अब हमारा क्या होगा?"

मैंने कहा-
"काश ये निर्णय
मेरे वश में होता!"

© चिराग़ जैन

Friday, February 17, 2012

टोटका

बहुत उपजाऊ है
मेरे दिल की मिट्टी।
पनप जाता है
हर बीज
आसानी से।

बहुत आसानी से
फूट पड़ता है अंकुर,
बहुत आसानी से
द्विदल होता है बीज,
...लाल-लाल कोंपलें
......ताज़ा हरापन।

कभी ओस नहाई पत्तियाँ
तो कभी
गुपचुप बतियाती
डालियाँ।

कुछ पौधों पर
आ जाता है
बौर भी...
...लेकिन किसी डाल ने
कभी नहीं किया
फल का शृंगार...!

...शायद
कोई टोटका कर देता है
मेरी हरियाली पर!

© चिराग़ जैन

Thursday, February 9, 2012

मुहब्बत की कहानी

कोई इन्सान दिल के हाथ जब लाचार होता है
तो उसकी ज़िन्दगी का रास्ता दुश्वार होता है
मुहब्बत की कहानी में फ़क़त चेहरे बदलते हैं
वही किस्सा, वही इक वाक़या हर बार होता है

© चिराग़ जैन

Monday, January 30, 2012

क्या-क्या बदलता है

कभी मुद्दा, कभी चेहरा, कभी पाला बदलता है
सियासतदां सियासत के लिए क्या-क्या बदलता है

न पूछो वक़्त अपने साथ में क्या-क्या बदलता है
सुबह से शाम होने तक मेरा साया बदलता है

यहाँ हर आदमी उस गाम पर चेहरा बदलता है
जहाँ जाकर मेरे किरदार का ओहदा बदलता है

हुनर का वो भी इक मैयार होता है जहाँ जाकर
हुनर अपने तरीक़े से ही ये दुनिया बदलता है

सुलह हो भी तो आख़िर किस तरह मुमक़िन हो उससे, जो
सफ़ाई सुनने से पहले हर इक शिक़वा बदलता है

मिसालें दी नहीं जा सकतीं सफ़रे-क़ामयाबी की
कि इसका काफ़िला हर दौर में रस्ता बदलता है

कभी शाहों को भी लाचार देखा है बिसातों पर
कभी शतरंज की बाजी कोई प्यादा बदलता है

मरासिम जो बदल पाते नहीं गर्दिश की राहों पर
ग़ज़ब होता है जब उनको भी ये पैसा बदलता है

बहुत देखा शराफ़त के सफ़र पर राहगीरों को
कोई रस्ता बदलता है, कोई हुलिया बदलता है

© चिराग़ जैन

Saturday, January 28, 2012

उससे पहले ख़ुद को गिनना

बस यूं कहिए ध्यान नहीं था
वरना, मैं नादान नहीं था
उससे पहले ख़ुद को गिनना
ये इतना आसान नहीं था

© चिराग़ जैन

Wednesday, January 25, 2012

भारत में नागर विमानन के सौ वर्ष

प्राप्य से इतर अप्राप्य की ओर आकर्षित होना मनुष्य का सहज स्वभाव है। इसी तथ्य के परिप्रेक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि धरती पर चलने के अपने नैसर्गिक गुण में किसी प्रकार का विकास करने से अधिक उर्जा मानव ने तैरना और उड़ना सीखने में व्यय की। महत्वाकांक्षाओं के झरोखों से जब मानव का आदिम स्वरूप मछलियों को तैरते देखता होगा तो उसके मन में भी मछली की तरह पानी की धारा पर तैरने की तीव्र इच्छा जागती होगी। पंछियों को डैने फैलाए उड़ते देख मानव ने भी अपने दोनों हाथ हवा में लहराते हुए उड़ने के स्वप्न बोए होंगे। इन स्वप्नों को पूर्ण करने के लिए भी मानव ने अपने भीतर के उस बालक को जीवंत किया होगा जो आज भी गाँव-कस्बों में दोनों हाथ फैलाकर लगभग गोल-गोल घूमते हुए उड़ने का स्वांग करता दीख पड़ता है।

भारतीय पुराणों तथा मिथकों ने इन्द्र के ऐरावत, विष्णु के गरुड़ तथा कार्तिकेय के मयूर आदि प्रतीकों के माध्यम से आकाशमार्ग से गमन करने की कल्पना को शब्द दिए हैं। रामायण में हनुमान का उड़कर लंका जाना भी इसी कल्पना का शब्दीकरण कहा जा सकता है। लंकेश रावण का पुष्पक विमान तो पूरी तरह हवाई जहाज का आदिम रूप ही था। अलिफ़ लैला के किस्सों में प्रयुक्त तिलिस्मी चटाई भी इसी विचार के आधार स्तंभों का एक हिस्सा है। नयनों में इन्हीं मिथकों की प्रतिच्छाया संजोए वर्तमान युग के कुछ सृजनशील मस्तिष्कों ने धरती पर खड़े मानव के पंख लगा दिए। सन् 1895 में भारत के शिवंकर बापूजी तलपदे द्वारा बनाया गया मानव विहीन विमान ‘मारुतशक्ति’ हो या फिर 17 दिसम्बर 1930 को राइट्स ब्रदर्स द्वारा भरी गई पहली उड़ान- आकाशगामी हो जाने के प्रत्येक प्रयास के पाश्र्व में बच्चों का सा वही दुस्साहस रहा होगा, जिसे एक समय तक तथाकथित समझदार समुदाय असंभव मानता रहा था।

इसी बचपने का यौवन पूरे विश्व में नागर विमानन का विस्तृत व्यवसाय बनकर स्थापित हुआ। आज हवाई यातायात मनुष्य के जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथा अपरिहार्य अंग बन चुका है। विश्व के लगभग सभी छोटे-बड़े देश हवाई मार्ग के माध्यम से परस्पर जुड़े हुए हैं। भारत जैसे विशाल भूखण्ड वाले देश में, जहाँ विकास की परिभाषाएँ अभी भी पूरी होनी बाकी हैं, हवाई यातायात विकास के पथ का पाथेय बना हुआ है।

जब पूरे विश्व में उड्डयन उद्योग जन्म ले रहा था, उस समय भारत की राजनैतिक परिस्थितियाँ विकास से लगभग मुँह फेरे खड़ी प्रतीत होती थीं। उपनिवेशवाद के दंश से छुटकारा पाने को छटपटाते भारतीय समाज की मूलभूत आवश्यकता स्वतंत्रता थी, और इस आवश्यकता की दीवार इतनी विराट थी कि विश्व भर में हो रही प्रगति के दृश्य भारतीय मानस् के नेत्र पटल तक पहुँचने से पूर्व ही दम तोड़ रहे थे। किन्तु ब्रिटिश राजनयिक, जिनका अंतिम उद्देश्य भारत की धरती से अपने व्यावसायिक तथा राजनैतिक हितों को साधना था, उन्होंने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत में विकास के बीज बोए। इसे भारत का सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि भारत में विकास के लगभग सभी पुष्प मूलतः उपनिवेशवादी सोच की क्यारी में ही पनपे। लेकिन उड्डयन व्यवसाय पर यह बात लागू नहीं होती। बीसवीं सदी के पहले दशक में भारतीय चिंतकों तथा राजनीतिज्ञों को इस बात का आभास हो चुका था कि स्वतंत्रता की देवी पश्चिम में हो रहे विकास के रथ पर चढ़कर ही आएगी।

इसी विचार की आधारशिला पर पटियाला के महाराजा ने पश्चिम में पनप रहे उड्डयन की कला तथा विज्ञान को समझने के लिए अपने ब्रिटिश अभियंता सी डब्ल्यू बाॅल्स को यूरोप भेजा तथा ये निर्देश दिए कि वह लौटते समय अपने साथ दो हवाई जहाज लेकर आए। दिसम्बर 1910 में बाॅल्स इंग्लैंड में निर्मित ‘फरमान’ तथा ‘ग्नोम-ब्लेरिआॅट’ नामक दो विमान लेकर भारत लौटे। लेकिन प्रसिद्धि तथा मान्यता भी भाग्य के बिना नहीं मिलती, सो इन दोनों ही विमानों के भाग्य में भारत का पहला वायुयान होने का गौरव नहीं था। दिसम्बर 1910 के प्रारंभ में ही बेल्जियम का एक तथा इंग्लैंड के दो व्यापारी कुछ विमानों के साथ भारत आए। ये व्यापारी भारत में इन विमानों का प्रदर्शन कर यहाँ मौजूद उड्डयन व्यवसाय की संभावनाओं को भुनाना चाहते थे। इन जहाजों को पानी के जहाज द्वारा मुम्बई लाया गया और तुरन्त इलाहाबाद ले जाया गया। उद्योग तथा कृषि प्रदर्शनी में प्रदर्शन के उद्देश्य से विमान का चालक दल तथा अन्य सदस्य 5 दिसम्बर को इलाहाबाद के पोलो ग्राउंड में जा पहुँचे। पाँच दिन की मशक्कत के बाद विमान को सुनियोजित किया जा सका तथा दिनाँक 10 दिसम्बर 1910 को इलाहाबाद शहर ने न केवल भारत अपितु पूरे एशिया महाद्वीप का परिचय विज्ञान के इस अनोखे आविष्कार से कराने का गौरव प्राप्त किया।

इसके अगले दिन 11 दिसम्बर को दूसरे विमान ने उड़ान भरी और बनारस के राजकुमार को भारत का पहला विमान-यात्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 18 फरवरी सन् 1911 को इलाहाबाद से नैनी के बीच उड़े वायुयान ने यमुना, गंगा और संगम की धारा पर परछाई छोड़ते हुए भारत में नागर विमानन के जन्म का प्रथम अध्याय रचा।

मैं कल्पना करता हूँ कि आज जब उड्डयन व्यवसाय पूरी तरह स्थापित हो चुका है, तब भी आकाश से गुज़रता हवाई जहाज बच्चों के लिए कौतूहल का विषय होता है, तो उस समय जब हवाई जहाज केवल कल्पनाओं में तैरता था, तब उसको साकार देखने वालों के चेहरे पर तैरने वाली आश्चर्य की रेखाएँ कितनी अनोखी रही होंगी।

ख़ैर गुडलने चलता उड्डयन व्यवसाय धीरे-धीरे नागरिक उड्डयन का रूप लेने लगा। दिसम्बर 1912 में कराची से दिल्ली के मध्य चालू हुए हवाई मार्ग ने भारत में नागरिक उड्डयन का आग़ाज़ किया। इंग्लैंड के इम्पीरियल एयरवेज़ के सहयोग से इंडियन स्टेट एअर सर्विसेज़ ने यह विमान सेवा प्रारंभ की। इसके तीन वर्ष बाद भारत की पहली एअरलाइन, टाटा संस लिमिटेड ने बिना किसी सरकारी सहायता के एक निरंतर हवाई डाक सेवा कराची और मद्रास (अब चेन्नई) के मध्य प्रारंभ की।

सन् 1919 में कराची, दिल्ली, इलाहाबाद और कलकत्ता के रास्ते इंग्लैंड और आॅस्ट्रेलिया के मध्य उड़ान भरने वाले वायुयान को भारत की पहली अन्तरराष्ट्रीय उड़ान के रूप में अंकित किया गया। 1925-26 में लंदन से रंगून के मध्य पहला एरियल सर्वे किया गया। सन् 1929 में भारत में एरो क्लब की स्थापना हुई और सन् 1930 तक मुम्बई, कराची, जोधपुर, दिल्ली, इलाहाबाद और कलकत्ता जैसे शहर वायुमार्ग से लंदन से जुड़ चुके थे। उधर कराची, जोधपुर, दिल्ली, इलाहाबाद और कलकत्ता को पेरिस से जोड़ने वाला वायुमार्ग भी अस्तित्व में आ चुका था।

सन् 1932 में टाटा एंड संस ने कराची और अहमदाबाद को मुम्बई तथा मद्रास से जोड़ने वाली वायुसेवा प्रारंभ की जिसे बाद में कोलम्बो तक बढ़ा दिया गया। सन् 1933 में घरेलू क्षेत्र की सेवाएँ कराची और कलकत्ता के मध्य प्रारंभ हो गईं। 1934 का वर्ष मद्रास, पुरी और कलकत्ता के मध्य नई वायुसेवा का वर्ष रहा।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उस समय वायुसेवाओं का विकास भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के रास्ते का पल्लू पकड़कर सफ़र तय कर रहा था। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के केन्द्र बिन्दु महात्मा गांधी की जन्मभूमि और कर्मभूमि पोरबंदर से मुम्बई के मध्य सन् 1937 में वायुसेवा प्रारंभ हुई।

उधर वैश्विक स्तर पर व्याप्त राजनैतिक परिवर्तनों की परिस्थितियाँ भी पूरे विश्व में पनप रहे इस नए उद्यम को प्रभावित कर रही थीं। सन् 1939 में जब पूरा विश्व और विशेषकर यूरोप के उपनिवेशवादी देश विश्वयुद्ध का संत्रास झेल रहे थे, तब भारत में कार्यरत ब्रिटिश सरकार ने भारत के सभी विमानपत्तनों तथा वायुसेवाओं की सारी सम्पत्ति को भारत में बने युद्ध कार्यालय के अधीन कर दिया। रक्षा चैकसी के लिए समुद्र तटों पर बने पत्तनों जैसे कराची, मुम्बई, कोचीन, विशाखापट्टनम और कलकत्ता से तटीय उड़ाने प्रारंभ की गईं। सन् 1940 में बंगलूरु, हैदराबाद, विशाखापट्टनम और कोचीन में एअरफील्ड्स की स्थापना की गई। मध्य भारत की गतिविधियों का केन्द्र कानपुर तथा इलाहाबाद वायुक्षेत्रों को बनाया गया।

सन् 1945 का वर्ष भारतीय विमानन जगत् के इतिहास का विशेष वर्ष कहा जा सकता है। इस वर्ष में दो बड़े घटनाक्रम घटित हुए। एक तो एअर डेक्कन ने हैदराबाद विमानपत्तन से प्रचालन प्रारंभ किया, दूसरे इस वर्ष में भारत के नागर विमानन महानिदेशालय का गठन हुआ।

उधर देश की राजनैतिक परिस्थितियाँ और स्वतंत्रता सेनानियों के अनवरत प्रयास देश को स्वाधीनता की देहलीज तक ले आए थे। इस समय भारत में कुल नौ वायु यातायात सेवा प्रदाता कंपनियाँ कार्यरत थीं, जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्री तथा माल की ढुलाई कर रही थीं। स्वतंत्रता के समय उपहार स्वरूप मिले विभाजन की दुर्घटना ने जो कुछ हमसे छीना, उसमें एक वायु यातायात कंपनी भी थी। ओरिएंट एअरवेज़ पाकिस्तान के हिस्से में चली गई और हम टाटा एअरलाइन्स, इंडियन नेशनल एअरवेज़, एअर सर्विस आॅफ इंडिया, डेक्कन एअरवेज़, अम्बिका एअरवेज़, भारत एअरवेज़ और मिस्ट्री एअरवेज़ जैसी आठ कंपनियों के साथ संतोष कर बैठे। 

1948 के प्रारंभ में भारत सरकार तथा एअर इंडिया (जो पहले टाटा एअरलाइन्स के नाम से जानी जाती थी) के संयुक्त प्रयासों से एअर इंडियन इंटरनेशनल लिमिटेड की स्थापना हुई। 8 जून सन् 1948 को इस कम्पनी का पहला वायुयान स्वतंत्र भारत के आत्मनिर्भर उड्डयन व्यवसाय के प्रारम्भ की उद्घोषणा के साथ मुम्बई से लंदन के लिए उड़ चला। सन् 1953 में इस कंपनी के राष्ट्रीयकरण के समय तक इसके द्वारा मुम्बई से लंदन के लिए चार साप्ताहिक उड़ानें तथा नैरोबी के लिए दो साप्ताहिक उड़ानों का प्रचालन किया जा रहा था। इस संयुक्त उपक्रम का सेहरा श्री जे आर डी टाटा के सिर बंधा, जिन्होंने 1932 में पहली भारतीय एअरलाइन्स बनाई तथा उसकी पहली उड़ान को स्वयं उड़ाया। सन् 1953 में चार अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डों का प्रचालन प्रारंभ हो गया। मुम्बई, दिल्ली, मद्रास तथा कलकत्ता के इन हवाई अड्डों ने देश के लगभग चारों छोरों की घेराबंदी कर दी।

वायु में परिन्दों की तरह उड़ते वायुयान अपने कौतूहल के कारण तथा अपनी गति के कारण बहुत जल्दी सर्वाधिक लोकप्रिय यातायात माध्यम बन गए। ये और बात है कि एकाध दशक पूर्व तक आर्थिक परिस्थितियाँ बहुत से लोगों का वायुयान में उड़ने का स्वप्न पूरा नहीं होने देती थीं। लेकिन आर्थिक उदारीकरण के फलस्वरूप सामान्य आदमी की बढ़ती क्रय शक्ति तथा प्रतियोगिता के फलस्वरूप वायु भाड़े में आई गिरावट ने इस स्थिति में काफी सुधार किया है। आज निम्न मध्यम वर्ग तक का व्यक्ति वायुयान में सफर करने में सक्षम हो गया है।

भारत में नागर विमानन के सफल संचालन हेतु अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं। सर्वप्रथम नागर विमानन मंत्रालय, जो कि एक नोडल प्राधिकरण है, देश में नागर विमानन उद्योग के विकास और विनियमन हेतु राष्ट्रीय नीतियाँ तथा कार्यक्रम बनाने के लिए उत्तरदायी है। यह मंत्रालय विमानपत्तनों पर उपलब्ध सुविधाओं, हवाई यातायात सेवाओं और वायुमार्ग की सवारियों और माल की आवाजाही पर पर्यवेक्षण का कार्य भी करता है। इस मंत्रालय के अधीन दो अलग-अलग संगठन कार्य करते हैं- 1) नागर विमानन महानिदेशालय तथा 2) नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो। 

सन् 1945 में अस्तित्व में आया नागर विमानन महानिदेशालय अर्थात् डीजीसीए एक विनियामक निकाय है जो भारत के भीतर आने-जाने की हवाई सेवाओं और सिविल हवाई विमानन के प्रवर्तन, हवाई सुरक्षा और हवाई योग्य मानकों के लिए उत्तरदायी है। यह निदेशालय आज भी भारत के उड्डयन क्षेत्र की देखरेख करता है। सिविल वायुयानों के पंजीकरण से लेकर उनके लिए यथायोग्य मानकों के निर्माण तक और पायलटों, वायुयान इंजीनियरों, उड़ान अभियंताओं और वायुयान नियंत्रकों को लाइसेंस देने तक का कार्य यह निदेशालय करता है। इसके अतिरिक्त फ्लाइट दल की दक्षता की जाँच तथा वायुसेवाओं से जुड़े अन्य व्यक्तियों की गतिविधियों की जाँच का कार्य यह निदेशालय करता है।

दुर्घटनाओं अथवा उड्डयन से सम्बद्ध समस्याओं की जाँच-पड़ताल करना तथा वायु सेवाओं को अधिक सुरक्षित तथा दुर्घटना विहीन बनाने के उपाय करने के लिए नागर विमानन निदेशालय निरंतर प्रयासरत रहता है। संक्षेप में कहा जाए तो वायुसेवाओं से सम्बन्धित सभी प्राधिकरणों, प्रचालकों, एअरलाइन्सों तथा अन्य संस्थाओं की कार्यक्षमताओं में सुधार करने का कार्य यह निदेशालय अनवरत करता है।

उधर नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) देश में नागर विमानन सुरक्षा का विनियामक है। इसका मुख्य उत्तरदायित्व भारत में राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर सिविल उड़ानों की सुरक्षा संबंधी मानक और उपाय निर्धारित करना है। इसमें विमानन सुरक्षा से सम्बंधित क्रियाकलापों की योजना बनाना, उनका समन्वयन करना, कार्यात्मक आकस्मिकता और संकट प्रबंधन सम्मिलित हैं। यह भारत के लिए राष्ट्रीय विमानन सुरक्षा कार्यक्रम का विकास, रखरखाव, उन्नयन और क्रियान्वयन करने और इस परिप्रेक्ष्य मेें सभी अन्तरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने के लिए उत्तरदायी प्राधिकरण है। 

उक्त दोनों प्राधिकरण मूलतः विमानन व्यवसाय के नींव के पत्थर हैं। ये दरअस्ल वे कलाकार हैं जो पर्दे के पीछे कार्य करते हैं। यद्यपि स्क्रीन पर इनकी छवि यदा-कदा ही दिखाई देती है, लेकिन वास्तव में स्क्रीन पर दिखने वाले चरित्रों का अस्तित्व इन पर्दे के पीछे वाले कलाकारों और तकनीशियनों के अभाव में असंभव ही है।

आइए अब बात करते हैं उन भारतीय नागर विमानन उद्योग के उन चरित्रों की जिनका चेहरा अक्सर हमें पर्दे पर नज़र आता है। इनमें पहला नाम है नेशनल एविएशन कंपनी आॅफ इंडिया लिमिटेड का। यह कंपनी अधिनियम 1956 के तहत निगमित एक कंपनी है, जो सुरक्षित, दक्ष, पर्याप्त और किफ़ायती रूप से समन्वित अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन सेवा प्रदान करने का दायित्व निभाती है। एअर इंडिया तथा इंडियन एअरलाइन्स को विलय कर इस कंपनी की स्थापना सन् 2007 में की गई। इस विलय के परिणाम स्वरूप कंपनी का लक्ष्य भारत में सबसे बड़ी एअरलाइन का गठन करना था। इस नई कम्पनी का नाम एअर इंडिया है और इसका लोगो महाराजा है। एनएसीआईएल के अधीन पूर्ण स्वामित्व वाले संगठन भी कार्यरत हैं, जिनके नाम हैं- होटल काॅर्पोरेशन आॅफ इण्डिया (एचसीआई), एअर इण्डिया चार्टर्स लिमिटेड (एआईसीएल), एअर इण्डिया इंजीनियरिंग सर्विसेज़ लिमिटेड (एआईईएसएल), एअर इण्डिया एअर ट्रांस्पोर्ट सर्विसेज़ लिमिटेड (एआईएटीएसएल) तथा एलाइन्स एअर।

इसके अतिरिक्त एक अन्य संस्था भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के रूप में भारत के नागर विमानन उद्योग के केन्द्र बिन्दु के रूप में कार्य कर रही है। इसका गठन 1 अप्रैल सन् 1995 को भारतीय अन्तरराष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण तथा राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण के विलय द्वारा देश की धरती तथा आकाश में नागर विमानन की मूल संरचना के सृजन, उन्नयन, रखरखाव और प्रबंधन के उद्देश्य से हुआ। इसका लक्ष्य देश में सक्षम प्रचालनार्थ विश्व स्तरीय विमानपत्तनों की सेवाएँ मुहैया कराना है। वर्तमान में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण कुल 118 हवाई अड्डों का प्रचालन करता है, जिनमें 25 नागरिक एन्क्लेव शामिल हैं। नागरिक एन्क्लेव से तात्पर्य उन हवाई अड्डों से है, जो रक्षा एअरफील्ड में स्थित हैं। इन नागरिक एन्क्लेवों में टर्मिनल भवन तथा यात्री संबंधी सेवाओं का कार्य भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण का उत्तरदायित्व होता है लेकिन वायु यातायात नियंत्रण व्यवस्था वायुसेना के अधीन होती है।

वर्तमान में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण अनेक विमानपत्तनों के अनवरत विकास तथा उन पर उपलब्ध सेवाओं के विकास व उन्नयनार्थ प्रयासरत है। वर्तमान में सरकार की विमानन नीति का संकेंद्रण भी मौजूदा हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण और नए हवाई अड्डों के निर्माण पर है। इसके उदाहरण स्वरूप दिल्ली और मुम्बई के हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण हेतु सरकार ने निजी क्षेत्र के सहयोग से भी गुरेज़ नहीं किया। इसी उदारवादी दृष्टिकोण का परिणाम है कि आज ये दोनों हवाई अड्डे विश्व के आधुनिकतम हवाई अड्डों की सूची में स्थान बना चुके हैं। नागपुर तथा कोचीन हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण तथा विकास हेतु भी प्राधिकरण ने निजी क्षेत्र की सेवाएँ ली हैं। निजी क्षेत्रों द्वारा प्रचालित सभी हवाई अड्डों पर सीएनएस तथा एटीएम सुविधाएँ भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा ही मुहैया कराई जाती हैं।

सन् 1985 में हेलीकाॅप्टर सहायता सेवाएँ मुहैया कराने के उद्देश्य से देश की राष्ट्रीय हेलीकाॅप्टर कम्पनी के रूप में पवन हंस हेलीकाॅप्टर लिमिटेड (पीएचएचएल) की स्थापना की गई। इसका मुख्य कार्य है- दूरस्थ दुर्गम क्षेत्रों और भूभागों में अनुसूचित अथवा गैर-अनुसूचित हेलिकाॅप्टर सेवाओं का संचालन करना। इसके अतिरिक्त यह कम्पनी यात्रा और पर्यटन के लिए चार्टर भी मुहैया कराती है। यह भारत की एकमात्र विमानन कम्पनी है, जिसे आईएसओ 9001ः2000 प्रमाणपत्र इसके समस्त कार्यों के लिए दिया गया है।

नागर विमानन प्रशिक्षण में निरंतर सुधार लाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी (आईजीआरयूए) की स्थापना की गई है। उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में स्थापित यह अकादमी आधुनिक व उन्नत तकनीक वाले प्रशिक्षकों, वायुयानों, उड़ान अनुरूपकों, कम्प्यूटर आधारित प्रशिक्षण प्रणाली, आधुनिक नेविगेशनल और लैंडिंग आधार के साथ रनवे और अपने स्वयं के एअर स्पेस से युक्त है। इसका संचालन उच्च योग्यता प्राप्त उड़ान और भू-अनुदेशकों द्वारा किया जाता है, जिनका विमानन और उड़ान के क्षेत्र में लंबा अनुभव है।

इन सरकारी व अर्द्धसरकारी संस्थाओं के अतिरिक्त अनेक निजी क्षेत्र की कंपनियाँ भी भारतीय विमानन उद्योग की वर्तमान तस्वीर बनाने के लिए अपने-अपने रंग लिए खड़े हैं। किंगफिशर, इंटर ग्लोब एविएशन लिमिटेड (इंडिगो), गोएअर, जेट एअरवेज़, स्पाइसजेट, ग्लोबल वैक्ट्रा और ब्लू डार्ट एविएशन लिमिटेड जैसी अनुसूचित एअरलाइन्स के अतिरिक्त लगभग 86 कंपनियों के पास गैर अनुसूचित वायु परिवहन प्रचालन का अनुमति पत्र है। 

अन्तरराष्ट्रीय सयोजकता बढ़ाने तथा यात्रियों के लिए विदेशी यात्रा सहज उपलब्ध कराने के लिए भारत ने लगभग 103 देशांे के साथ वायुसेवा करारनामे (एएसए) पर हस्ताक्षर किए हैं। 

वर्तमान परिदृश्य में देखें तो भारत का उड्डयन उद्योग घरेलू यात्रियों, कार्गो आवागमन और अंतरराष्ट्रीय वायुमार्ग के यातायात में असाधारण वृद्धि के कारण काफी उछाल पर है। एअरलाइन व्यापार भारत में 27 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है। उधर कोचीन, बंगलूरु और हैदराबाद में हरित पट्टी हवाई अड्डों का निर्माण भारतीय विमानन क्षेत्र में बढ़ती हरितिमा की ओर इंगित कर रहा है।

आज हम इस व्यवसाय के शतायु होने का जश्न मना रहे हैं। इस लम्बी यात्रा में अनेक उतार-चढ़ाव इस उद्यम ने देखे। इस लम्बे सफ़र में अनेक संस्थाएँ जन्मीं और फिर अचानक किसी पगडन्डी पर उतर कर नज़रों से ओझल हो गईं, लेकिन हवाई यात्रा के कौतूहल से भरा हवाई यातायात अपना रनवे निरंतर और विस्तृत करता जा रहा है। यद्यपि इस क्षेत्र में हमने काफी प्रगति की है, तथापि उतार-चढ़ाव भरे इस अनवरत सफ़र को और इसके विकास के मार्ग को इन दो पंक्तियों में बयान करते हुए लेखनी को विराम देता हूँः

मेरी राह में न हों मंज़िलें, कि मैं ख़ुश नहीं हूँ क़याम से
जो कभी तमाम न हो सके, मुझे उस सफ़र की तलाश है

© चिराग़ जैन

Friday, January 20, 2012

समाधान

बहुत समझदार हो तुम
जब कभी
उदासी का आँचल ओढ़कर
जवान होने लगता है
मेरा कोई दर्द

तो चुपचाप
बिना किसी शोर-शराबे के
‘कंधा देकर’
पहुँचा आते हो उसे वहाँ
...जहाँ से
लौट नहीं पाया कोई
आज तक।

© चिराग़ जैन

Thursday, January 19, 2012

संसद की कार्रवाई

हँस-हँस के कर रहे हैं, आपस में वो लड़ाई
हम जिनको सौंपते हैं ख़ुद अपनी रहनुमाई
लगता है हो रही है, भारत की जगहँसाई
टीवी पे चल रही है, संसद की कार्रवाई

© चिराग़ जैन

विपक्षी

ग़ायब से हो गए हैं, अख़बार से विपक्षी
चुन-चुन के आ गए हैं, बेकार से विपक्षी
बचने लगे हैं क्यूंकर तकरार से विपक्षी
शायद मिले हुए हैं, सरकार से विपक्षी

© चिराग़ जैन

Friday, January 6, 2012

अभिव्यक्ति

तुम्हारी अनुपस्थिति में
राह भटक जाती हैं
अभिव्यक्तियाँ!

अक्सर ऐसा होता है
कि उपलब्धि मिलने पर
होठों पर मुस्कान लिए
मेरी निग़ाह तलाशती है
इक चेहरा
अपने आस-पास।

और जब
विफल होने लगती है तलाश
तो झट से
आँखों की कोरों पर
आ ठहरती है
अधरों की मुस्कान।

और दु:ख की घड़ियों में
तुम्हें आसपास न पाकर
मुस्कुराकर रह जाते हैं होंठ!

© चिराग़ जैन