Thursday, May 31, 2018

तेल डलवाकर करेगा क्या?

सबसे पहले नोट बन्द हुए 
फिर आई जीएसटी
फिर भी यदि परमात्मा ने
किसी के मन में
कमाने-खाने की हिम्मत भर दी
तो हमने उसकी दुकान सील कर दी।
दुकान बंद पड़ी है
काम चौपट है
ऐसे में पेट्रोल तिजोरी में भरेगा क्या
जब घर से निकलना ही नहीं है
तो गाड़ी में तेल डलवाकर करेगा क्या?

केंद्र में विपक्ष नहीं
राज्यों में कांग्रेस नहीं
फेसबुक लायक फेस नहीं
पीएम लायक बेस नहीं
जिसके समर्थन में सभा कर दे
वह भारी मतों से हार जाता है
सभा कांग्रेस की होती है
और भाजपाई बाज़ी मार जाता है
अब घास फूस जैसी बची कांग्रेस को भी
घूम घूम कर चरेगा क्या
जब घर से निकलना ही नहीं है
तो गाड़ी में तेल डलवाकर करेगा क्या?

© चिराग़ जैन  

महंगाई (पेट्रोल)

देश को सँवारने के क़ीमती ये दिन-रात 
आप क्यों विपक्ष की नकेल में लुटा रहे
जनता के हाथों में से छीन के पुराने नोट
नए-नए नोट अब तेल में लुटा रहे
पार्टी को अरबों का दान जो मिला हुज़ूर
हाय उसे खच्चरों की सेल में लुटा रहे
थोक के व्यापार में कमाई हुई साख काहे
हर दो महीने में रिटेल में लुटा रहे

गाड़ी में नहीं है तेल, रोड पे नहीं है गाड़ी
इसलिए अब रोडरेज कम हो गया
लूटपाट की भी ख़बरों में कमी आ गई है
लॉन्ग ड्राइविंग वाला क्रेज कम हो गया
सड़कों के जाम से मुहाल था सफ़र अब
तेल के हुए जो दाम तेज, कम हो गया
बहुओं को फूंकने की हैसियत ही नहीं है
इसलिए ब्याह में दहेज कम हो गया

© चिराग़ जैन

कैराना उपचुनाव

अक्ल समय पर आ जाती, चिड़िया खेत न चुग के जाती हाथ बँटाते सब साथी, चिड़िया खेत न चुग के जाती

जनता की चिंता से पहले ही झोली भर लेते
आज किया है जो गठबंधन वो पहले कर लेते
तो ये आफत ना आती, चिड़िया खेत न चुग के जाती

चाचा और भतीजा है गए, ईगो वाले रोगी
गैया पाली अखिलेशों ने, दूध पी गए योगी
बूआ चौकस हो जाती, चिड़िया खेत न चुग के जाती

तोप दिखी तो एक हो गए, हँसिया, तीर, कटारे
बच कर रहना आपस में ही लड़ ना बैठें सारे
इनमें पहले बन जाती, चिड़िया खेत न चुग के जाती


© चिराग़ जैन

कैराना उपचुनाव

लल्ला का है गो कैराने में
जल गई काठ की हांडी
वोटर नाय आयो बहकाने में
जल गई काठ की हांडी

रोड बनाकर जाल बिछायो
ख़ूब सड़क को शोर मचायो
योगी ने भी ज्ञान पिलायो
सबने पूरा जोर लगायो
साबुन गिर गी बीच नहाने में
जल गई काठ की हांडी

फिर कीकर पे आम न आए
वोट दिलाने राम न आए
क्यों जुमलों के दाम न आए
जिन्ना भी कछु काम न आए
जमकर वोट पड़ी धौलाने में
जल गई काठ की हांडी

गन्ना सूखा आशा टूटी
कब तक चाटें सूखी बूटी
भरे कुएँ में डोरी छूटी
याय लिए जे जनता रूठी
कछु नाय रखौ खलिश इतराने में
जल गई काठ की हांडी

© चिराग़ जैन

Thursday, May 24, 2018

उचक्कों की भाभी

छोरे उचक्कों से दिन-रात घर की रखवाली करते थे।
घर का बूढ़ा उचक्कों के मुहल्ले से होकर गुज़रता था।

उचक्कों की भाभी बूढ़े को देखकर स्माइल पास करती थी। स्त्री की मुस्कुराहट से बूढ़े को थोड़ी-थोड़ी गुदगुदी होती लेकिन उचक्कों की हरकतें ध्यान आते ही वह तेज़ी से आगे बढ़ जाता। गर्मी का मौसम आया तो बूढ़ा कभी-कभी थकान मिटाने के लिए उचक्कों की भाभी के चबूतरे पर बैठ जाता। भाभी ने भी मौक़ा देखकर बूढ़े को बैठते ही ठंडा पानी पिलाना शुरू कर दिया। एक दिन शर्बत पिलाते हुए भाभी ने बूढ़े से कहा- "ए जी, आपके घर के बाहर जवान लौंडे पहरा देते हैं तो मेरे देवर घर में सेंध नहीं लगा पाते। आप उन्हें रोकते क्यों नहीं। कम से कम अगली दिवाली तक अपने छोरों को पहरेदारी से हटा लो ताकि बेचारे सेंधमार उचक्के आपके घर से कुछ बर्तन-भांडे चुरा कर दिवाली का जुआ खेल सकें।"

भाभी की बात सुनकर बूढ़े को अपने छोरों पर क्रोध आया और उचक्कों पर दया आई। घर लौटते ही तमतमाकर छोरों की क्लास लगाई, और बोला- "एक महीने बाद दिवाली है, अगर किसी उचक्के की धरपकड़ की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। जाओ कुछ हिल्ला करो, आज से ये लठैती बंद!" 

नोट : इस कहानी को कश्मीर से जोड़ कर मुझे शर्मिंदा न करें। 

Ref : Military restrictions in Kashmir on Eid 

© चिराग़ जैन

Monday, May 21, 2018

प्यादे बदल गए

कल तक हुजूर दिखते थे सादे, बदल गए
हालात बदलते ही इरादे बदल गए
शतरंज की बिसात पर जो तेज़ चले थे
देखो वज़ीर में वही प्यादे बदल गए

© चिराग़ जैन

चुनाव

"अगला चुनाव कब है?"

"नवंबर में होगा शायद।"

"कब से जुटना है?"

"जुलाई-अगस्त से शुरू करते हैं।"

"ठीक है, तब तक रूस घूम आता हूँ।"

"लेकिन पैसा कहां से आएगा।"

"ह्म्म्म.... 
पैट्रोल के दाम बढ़ा दो ना यार। "

© चिराग़ जैन

Saturday, May 19, 2018

'राहु' ल काल

कर्नाटक विधानसभा से येदुरप्पा जी की ढैया समाप्त। 
अब 'राहु' ल काल शुरू

© चिराग़ जैन

Friday, May 18, 2018

महीना जून का

महीना जून का है तिश्नगी हद से गुजरती है
जमीं दो बून्द पानी के लिए भी आह भरती है
भले ही तल्ख हैं तेवर हवाओं के मगर फिर भी
कली खिलने पे आ जाए तो हर डाली सँवरती है

© चिराग़ जैन

अमराई के दरबारों में

कब तक झुलसोगे इन झूठी सुविधाओं के अंगारों में
गर्म थपेड़े ठंडे होंगे अमराई के दरबारों में

जेठ तपा तो गर्म दुपहरी जब तन झुलसाने लगती है
तब गुमटी वाली इक अम्मा प्याऊ बैठाने लगती है
मिट्टी के मटके का पानी, तांबे के लोटे में भरती
ओक बनाकर, होंठ भिंगोकर, अंतर्मन तक शीतल करती
अंतर्मन नत हो जाता है उस बुढ़िया के आभारों में
गर्म थपेड़े ठंडे होंगे अमराई के दरबारों में

पेड़ तले इक खाट बिछी है, थकन मिटानी हो तो आओ
डाल पके आमों की रुत है, जितना मन हो उतना खाओ
उन बागों में मोबाइल का टॉवर गायब हो जाता है
माथे पर जो शोर मचा है, पल भर में ही खो जाता है
इस सुख का कोई विज्ञापन कब छपता है अखबारों में
गर्म थपेड़े ठंडे होंगे अमराई के दरबारों में

© चिराग़ जैन

महानगर में गर्मी का एक दिन

गर्मी अपनी पर आई हुई है। तमाम भागदौड़ के बावजूद सड़कों पर एक वीराना पसरा हुआ है। ज्यों-ज्यों सूर्य धरती के निकट आता है त्यों-त्यों धरती का तापमान बढ़ता जाता है। जन्मों का प्यासा सूरज, चलते-फिरते लोगों की दैहिक जलराशि से प्यास बुझाने का उपक्रम कर रहा है। मनुष्य पसीना बहा-बहाकर आसमान को बारिश का स्मरण करा रहे हैं।
जेठ के कुकृत्य से बदहवास सड़कों को अमलतास की ओढ़नी से ढाँपकर मौसम अपना पाप छुपाने के प्रयास कर रहा है। उधर गुलमोहर भी अपने लाड़ले मौसम के ऐब छुपाने के लिए लीपापोती करने में पूरा ज़ोर लगाए हुए है। बालमखीरा के दरख़्तों पर झूमर जैसे फूल लटकाकर ध्यान भटकाया जा रहा है। लेकिन नीम, कच्ची निम्बोलियों जैसा कड़वा सच बोलकर अपने फूल की तरह बरस पड़ता है। आम के बौर में केरियाँ फूटने लगी हैं। मौसम के आवारा थपेड़े और तूफानों के बेग़ैरत झोंके इन मासूम आम्बियों को तब तक छू-छूकर गुज़रते रहते हैं जब तक वे हार कर टूट न जाएँ। इस सारी बेईमानी को देखकर हवाएँ आग-बबूला हो चली हैं। बहते पसीने को शांत करने के लिए जो झोंका गात को स्पर्श करता है वह पसीने के नीचे त्वचा की एक परत झुलसा जाता है। ऊमस ने ऊर्जा का कोष रिक्त कर दिया है।
सड़क किनारे शिकंजी, कुल्फी, पानी, कोल्डड्रिंक, छाछ और चुस्की बेचनेवाले पेट के लिए अपने तन को तपाकर कंचन कर रहे हैं। वातानुकूलित वाहनों और पक्के मकानों के भीतर का तापमान स्वर्ग की अनुभूति करा रहा है इसलिए बाहर का नर्क और गहराता जा रहा है। ग़रीबों के बच्चे पेट की आग बुझाने के लिए सड़कों पर रोज़गार तलाश रहे हैं और अमीरों के बच्चे मोबाइल के जीपीएस पर वॉटर पार्क तलाश रहे हैं।
शाम ढलते-ढलते मौसम अपनी ज़िद्द छोड़कर कुछ देर को सुहाना होने लगता है, लेकिन जल्द ही वह मूड बदलकर वापस अड़ियल हो जाता है। प्रकृति हीटर चलाकर भूल गई है और हमने अपनी कृत्रिम सुविधाओं के ब्लोवर से इस प्रकोप को कई गुना बढ़ा दिया है। महानगरों के निस्तेज चेहरे और भी क्लान्त हो गए हैं। गाँव की चौपाल से आए झोंके महानगरों के ऊपर से अट्टहास करके गीत गाते हुए बहे जाते हैं।

© चिराग़ जैन

तमाशबीनों का लोकतंत्र

कितना शानदार लोकतंत्र है हमारा। पाँच दिन से पूरा देश तमाशबीन बनकर जनमत के मखौल का खेल देख रहा है। कांग्रेस जानती है कि पैसे फेंके जाएंगे तो उसके विधायक बिक जाएंगे, इसलिए उसने जनता के जीते हुए प्रतिनिधियों को बाक़ायदा नज़रबंद कर लिया है। भारतीय जनता पार्टी जानती है कि बहुमत साबित करने के लिए विधायक तोड़ने होंगे। वह यह भी जानती है कि बहुमत साबित हुआ, तो उसकी धूर्तता सबके सम्मुख स्पष्ट हो जाएगी। राज्यपाल जानते हैं कि सरकार बनाने के लिए हर हद्द तक का भ्रष्टाचार होगा। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जानते हैं कि कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस में से कोई भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि अपनी सरकार बनाने के लिए तमाम हथकंडे अपना रहे हैं।
कार्यपालिका जानती है कि निजी हितों के लिए अनधिकृत रूप से पैसे का नक़द लेन-देन अपराध है। कार्यपालिका यह भी जानती है कि नोटबन्दी के बाद से इतनी बड़ी नक़दी अपने पास रखना अपराध है। मीडिया जानती है कि शतरंज की बिसात पर पैसे फेंककर काले घोड़ों को सफेद करने की जुगत चल रही है। सोशल मीडिया धड़ल्ले से इस ख़रीद-फ़रोख़्त पर चुटीले, तीखे, कड़वे और चटखारे भरे संदेश वायरल कर रहा है।
भाजपा के प्रवक्ता से पूछो कि यह क्या हो रहा है तो वह चुपके से अपनी पार्टी के इस अपराध में लिप्त होने की बात स्वीकार करते हुए दलील देते हैं कि हरियाणा में इंदिरा गांधी ने अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए यही किया था, तब हम इसे अपराध मानते थे लेकिन अब हमारी बज्जी है, इसलिए अब हम इसे अपराध नहीं मानते।
कांग्रेस के प्रवक्ता से पूछो कि गोवा में आप सबसे बड़ी पार्टी की दुहाई देकर सरकार बनाने का दावा कर रहे थे तो फिर अब आप आधी रात को सुप्रीम कोर्ट क्यों चले गए। कांग्रेसी प्रवक्ता इस प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट कहता है कि गोवा में हमने वह बात कही, जिससे हमें लाभ हो रहा था और कर्नाटक में भी हम वही बात कह रहे हैं जिससे हमें लाभ मिले अब ये दोनों बातें परस्पर विरोधी हों तो इसमें हमारी क्या ग़लती है?
सोशल मीडिया पर जो कांग्रेस को आइना दिखाए उसे ‘अंधभक्त’ कहकर ज़लील किया जाएगा। जो भाजपा का सच बोलने की कोशिश करे उसे ‘राष्ट्रद्रोही’ कहकर अपमानित किया जाएगा।
जनता पूछती है कि सबसे ज़्यादा वोट कांग्रेस को पड़े तो सबसे ज़्यादा सीटें भाजपा की कैसे आ गईं। उत्तर मिलता है कि सीटों का बँटवारा इस तरह से किया गया है कि चाहे एक वोट का अंतर हो, लेकिन सीट जीतने का जुगाड़ हो जाएगा।
जनता पुनः पूछती है कि फिर सबसे ज़्यादा सीट वाली पार्टी के सामने कम सीटों वाले दो मिलकर कैसे सरकार बना सकते हैं। उत्तर मिलता है कि दोनों पार्टियों ने तय कर लिया है कि मिल-बाँटकर मलाई खा ली जाएगी इसलिए रैलियों की गाली-गलौज को भूलकर गले लग जाओ।
जनता पुनः पूछती है कि हमने तो रैलियों की बातें सुनकर ही आपको वोट दिया था। उत्तर मिलता है कि हमने भी वोट लेने के लिए ही रैलियाँ की थीं। हमारा उद्देश्य जनकल्याण नहीं था, चुनाव जीतना था। पानी की तरह पैसा बहाना पड़ता है साहब। रात-दिन एक करने पड़ते हैं। इलेक्शन मैनेजमेंट कोई हँसी-खेल नहीं है। इतनी मेहनत से मिले वोटों को विपक्ष में बैठकर बर्बाद तो नहीं कर सकते ना। जहाँ इतना पैसा लगा, वहाँ थोड़ा और सही। एक बार कुर्सी मिल गई तो छह महीने में सारा ख़र्चा निकल आएगा।
जनता भौंचक्की होकर पूछती है कि चुनाव आयोग तो बताता है कि चुनाव लड़ने के लिए सीमित धन व्यय करना होता है। उत्तर मिलता है, छोड़ो यार, किस युग में जी रहे हो। उतने पैसे में कोई पार्षद का चुनाव भी न जीत पाएगा। ये सब औपचारिकता के लिए लिखा जाता है। सबको पता है कि इलेक्शन कितने करोड़ों का खेल है।
जनता की आँखे फट जाती हैं। वह प्रश्नवाचक दृष्टि से चुनाव आयोग की ओर देखती है। चुनाव आयोग जनता से मुँह फेरकर खड़ा हो जाता है। जनता आशा से भरकर कार्यपालिका की ओर देखती है तो पुलिसवाला उसे डाँटकर बोलता है- ‘अबे तैने वोट दे दिया ना, अब अपना हिल्ला कर, ये बड़े लोगों के काम हैं इन पचड़ों में क्यों पड़ता है?’ जनता हिम्मत करके न्यायपालिका की ओर देखती है तो न्यायपालिका अपने काले कोट में से पट्टी फाड़कर कस के अपनी आँखों पर बांध लेती है।
जनता हारकर मीडिया के पास पहुँची, तब तक ख़बर आ गई थी कि कांग्रेस के कुछ विधायक रिसोर्ट से ग़ायब हो गए। पूरे चैनल में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। कोई कांग्रेस के प्रवक्ता को लाइन अप कर रहा है। कोई बीजेपी के प्रवक्ता का फोनो कर रहा है। कोई ग्राफिक बना रहा है। जनता ठिठककर धम्म से ज़मीन पर बैठ जाती है। स्टूडियो में आवाज़ गूंजती है - ‘कट, कट, कट, अरे यार ये फ्लोर पर कौन बैठा है इसे बाहर करो। ...स्पॉट दादा देखो ज़रा!’
...बिजली की गति से दो स्पॉट बॉय आते हैं और जनता को उठाकर स्टूडियो से बाहर फेंक देते हैं।
जनता अपने हाथ में टिफिन पकड़े अपने दफ़्तर की ओर चल देती है। हाज़िरी रजिस्टर पर आधे दिन की तनख़्वाह कटवाती है और शाम को छुट्टी होने का इंतज़ार करने लगती है।

© चिराग़ जैन

पुष्कर का मेला रिसोर्ट में लगा है

बिग बॉस के घर में इस समय 77 कंटेस्टेंट हैं। अमित शाह जिसे एल्युमिनेट करेंगे वह भाजपा में मंत्री बनेगा और जिसे घर में छोड़ देंगे वो अपने घर बैठेगा। 

इस बार पुष्कर का मेला रिसोर्ट में लगा है। और कितने अच्छे दिन चाहियें बे? 

© चिराग़ जैन

Thursday, May 17, 2018

अमित शाह गश्त पर हैं

न्यायालय ने पूछा-
"पंद्रह दिन प्रतीक्षा कर लेंगे 
तो क्या बिगड़ जाएगा?" 

कांग्रेसी बोले-
"अठहत्तर विधायकों को 
पन्द्रह दिन रेसोर्ट में रखने का 
ख़र्चा बढ़ जाएगा।" 

न्यायालय बोला - "विधायक घर पर रहें
तो इसमें क्या डर है?" 

कांग्रेसी बोले- "कमाल करते हैं साहब
आपको पता नहीं
अमित शाह गश्त पर हैं!" 

© चिराग़ जैन

तबाही के मज़े

भारत के राजनैतिक परिदृश्य को देखकर एक बात तो तय है कि हम अपने भविष्य की तबाही के मज़े लेने वाले अद्भुत लोग हैं। 


© चिराग़ जैन

Wednesday, May 16, 2018

राज करेगी भाजप्पा

दक्षिण में कर्नाटक के रीयल नाटक का शोर रहा 
उत्तर में सेना को देखा तो मंज़र कुछ और रहा
काशी में इक पुल टूटा जो पूरा आदमखोर रहा
नेताजी का केवल सत्ता हथियाने पर ज़ोर रहा
जब विधायकों की मंडी लगा ली, नियम की सुध ना ली
लीडर हुए मलंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

महबूबा की मांग नहीं ये कैकयी के वरदान हैं जी
जिन पर बंदिश ठोकी है वे अपने वीर जवान हैं जी
आतंकवादी को मत पकड़ो क्योंकि अब रमज़ान है जी
लकड़बग्घे ईद मनाएँ और बकरे कुर्बान हैं जी
अरे किस किस से दोस्ती बना ली, ये सत्ता की दलाली
बड़ी है बदरंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

ईद मनाने देना उनको सैनिक सारे चुप रहना
वो तुमको पत्थर मारे या थप्पड़ मारे चुप रहना
महबूबा मुफ्ती मैडम ने किए इशारे चुप रहना
56 इंची वाले फूट गए गुब्बारे चुप रहना
तुमने वीरों के बेड़ियां क्यों डाली, शोषण ही किया ख़ाली
कैसे जीतेंगे जंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

क्या सोचा था कानूनों की लाज करेगी भाजप्पा
नैतिकता की पारी का आग़ाज़ करेगी भाजप्पा
गोवा, मणिपुर भूल गए जो आज करेगी भाजप्पा
कितनी भी सीटें ले आओ राज करेगी भाजप्पा
राज्यपाल पे भी उंगली उठा ली, अदालत खुलवा ली
चला न कोई रंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

अमित शाह घर से निकले तो ख़ौफ़ खा गए कांग्रेसी
अपने जीते हुए विधायक लुका छुपा गए कांग्रेसी
जेडीएस का सीएम बन जाए, इस पर आ गए कांग्रेसी
येदुरप्पा कुर्सी ले भागे गच्चा खा गए कांग्रेसी
हाय आगे से थाली उठा ली, छू भी न सके प्याली
सपना सा हुआ भंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

© चिराग़ जैन

ईद के अवसर पर कश्मीर में सेना पर प्रतिबंध

सुना है एक मदमस्त हाथी ने
बिल्ली के कहने पर
शेरों के हाथ बांध दिए
ताकि भेड़िये मेमनों की दावत उड़ा कर
ईद मना सकें।

शेरों को आदेश है
कि लकड़बग्घे उन्हें अपमानित करें तो हो लें
क्योंकि बेचारे लकड़बग्घों का रमज़ान है
उनसे अपमानित हो लोगे तो बेचारे ख़ुश हो जाएंगे।

© चिराग़ जैन

Tuesday, May 15, 2018

कांग्रेस-दुर्दशा

भाई लोगो!
एकाध चुनाव जीत लो वरना तुम्हारे रखरखाव का जिम्मा भी सीएसआर के तहत किसी को देना पड़ेगा।


मणिपुर और गोवा की ठोकरों के बावजूद कांग्रेस आज रात सरकार बनाने का सपना देखेगी। कांग्रेस अध्यक्ष मुंगेरीलाल हो गया है क्या?

© चिराग़ जैन

Monday, May 14, 2018

बैरागी जी को शब्दाजंलि

शब्दों को ईंधन करने का
जीवट ठण्डा होता है क्या
ज्वाला में दहकर भी कंचन
अपनी आभा खोता है क्या
यम के आदेशों से डरकर
कब कीर्तियान रुक पाते हैं
कुछ श्वासों के थम जाने से
क्या झंझावत चुक जाते हैं
मिट्टी को भस्म बना देना
-बस यही चिता कर पाती है
अक्षुण्ण वज्र रह जाता है
और स्वयं चिता मर जाती है
काया ने आँखें मूंदी हैं
चिंतन के नेत्र प्रखर ही हैं
जिव्हा ने चुप्पी ओढ़ी है
भावों के शब्द मुखर ही हैं
दीपक की पीर समझने को
बलिदान कई रातें करके
जो थका नहीं इक क्षण को भी
नक्षत्रों से बातें करके
जिसने जर्जर पीड़ाओं को
समिधा का मान दिलाया हो
जिसने जग की तृष्णाओं को
अंजलि से अमिय पिलाया हो
जिसने कविता में जीवन भर
अनहद का अंतर्नाद रचा
जिसने ज्वाला की लपटों का
कविताओं में अनुवाद रचा
जिसने आँसू की आह सुनी
जिसने करुणा का रोर सुना
जिसने युग की पीड़ा गाई
जिसने आशा का शोर सुना
यमदूत उसे ले जाने का
उपक्रम कैसे कर सकता है
जिसने शब्दों में प्राण भरे
वह स्वयं कहाँ मर सकता है
करुणा में जब पग जाते हैं
फिर अक्षर ध्वस्त नहीं होते
सूरज-वूरज होते होंगे
बैरागी अस्त नहीं होते

© चिराग़ जैन

Sunday, May 13, 2018

बैरागी जी नहीं रहे

आह! हिंदी के शौर्य जा सूरज डूब गया। कवि सम्मेलनों में दिनकर की ऊष्मा को उग्र करके जीवित रखने वाला अमर रथ ऊर्ध्वगामी हो गया। कविता की वर्तिका की जाज्वल्यमान आभा खो गई। कड़वा है, पर सत्य है बैरागी जी नहीं रहे। आज शाम गोधूलि वेला में वे दिनकर के संग अस्त हो गए। जीवंत इतने थे कि आयु की विवशताओं के सम्मुख घुटने टेक कर कभी निष्क्रिय नहीं हुए। आज दोपहर तक मनासा में एक कार्यक्रम में शिरक़त करके लौटे और ज़िन्दगी को अभिमान से कह गए कि अंतिम श्वास तक सक्रिय रहा हूँ। संघर्षों की भट्ठी में तपकर दमकी एक रौशनी बुझी है आज। इन तूफानों की रफ्तार बता रही है कि कोई बहुत विशाल वटवृक्ष धराशायी हुआ है। प्रणाम दद्दू! 

© चिराग़ जैन

Ref : Demise of Balkavi Bairagi

Saturday, May 12, 2018

तूफान

मोदी जी की लहर चल रही, योगी की आंधी आई
भूचालों की धमकी लेकर घूम रहे राहुल भाई 
बिना बात के उठा बवंडर देते हैं हातिमताई
ये सब देखा तो तूफ़ां की ईगो भी कुछ टकराई
राजनीति ने आफत मचा ली, सुनामी उठा ली
तूफान हुआ तंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी हैं अब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

हमने तूफान को सचिन तेंदुलकर बना दिया :-
ट्रोलिंग की आंधी में दो दिन तूफानों का होल्ड हुआ
पब्लिक का कंसन्ट्रेशन भी वेदर के संग मोल्ड हुआ
पंखे का झोंका भी उस दिन तूफानों में सोल्ड हुआ
प्रेशर में आकर बेचारा ज़ीरो रन पर बोल्ड हुआ
ऐसी कूकर की सिटी निकाली, हवा हुई सवाली
चेहरे का उड़ा रंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी हैं अब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

ट्विटर फेसबुक पर ट्रोलिंग का ऐसा अद्भुत खेल हुआ
इस्कूलों की छुट्टी हो गई इतना रेलमपेल हुआ
राई से तूफान बेचारा पर्वत तक इस्केल हुआ
दुनिया भर में शोर मचा पर दिल्ली आकर फेल हुआ
उसने केजरी से सीख यह पा ली, माफ़ी की धुन ली
लौटा यूँ ही बैरंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी हैं अब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

जनता के सेवक तो कर्नाटक दर्शन पर निकल गए
अन्ना जैसे वर्कर धरने और अनशन पर निकल गए
युवा अलीगढ़ में जिन्ना के निष्कासन पर निकल गए
डिक्लेअर करने वाले ही पर्यटन पर निकल गए
हमने आंधियों की हेकड़ी निकाली, यूँ पिकनिक मना ली
उठने न दी उमंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी हैं अब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

ढंग से आ भी जाता तो क्या पूँछ पाड़ता बेचारा
धूल सने सिस्टम की कितनी धूल झाड़ता बेचारा
भ्रष्टतंत्र के आख़िर कितने पृष्ठ फाड़ता बेचारा
उजड़े व्यापारों को और कितना उजड़ता बेचारा
उसने अपनी दिशा बदल डाली, मानवता निभा ली
भुला दो ये प्रसंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी हैं अब ठाली
ये ठीक नहीं ढंग भाइयो

© चिराग़ जैन

तूफान और सरकार

 तूफान ने जैसे ही भारत की सीमा में प्रवेश किया तो बॉर्डर पर ही उसे अरुण जेटली जी मिल गए। ...उसके बाद तूफ़ान का क्या हाल हुआ वो आप सबने देख ही लिया। भाईसाहब, इतना टैक्स वसूला कि दिल्ली तक कुल 18 परसेंट ही बचा, वो जीएसटी में रखवा लिया। बेचारा तूफान अंडरग्राउंड हो गया और अफगानिस्तान जाकर निकला।

© चिराग़ जैन

Friday, May 11, 2018

तंत्रजन्य विद्रूपताओं का सम्यक चिंतन

जीवन की अथक जिजीविषा यदि हताशा के चरम पर पहुँची है तो परिस्थितियों ने विवशता का कितना भयावह चेहरा प्रस्तुत किया होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। हिमांशु रॉय जैसे बेटे को खोकर भी यदि इस राष्ट्र ने तंत्रजन्य विद्रूपताओं का सम्यक चिंतन नहीं किया तो स्थितियों का यह चेहरा इतना वीभत्स हो जाएगा कि उसके महामिलन से उत्पन्न संतति युग को महाविनाश के कुरुक्षेत्र की ओर ले जाएगी। हिमांशु रॉय की प्रेरणादायक जवानी जिस एक क्षण में आत्मघात की देहरी पर बलिदान हो गई उस एक क्षण से अपनी पीढ़ियों को बचाने के लिए अनर्गल मुद्दों में नष्ट होने वाले समय को मनुष्यता के वास्तविक विकास में समर्पित करना होगा। आह! संवेदनाएँ सिहर उठती हैं, क्या अनुभूति रही होगी उस क्षण जब कोई जुझारू जीवन अपने मुँह में पिस्तौल रख पाया होगा। कितनी मेहनत लगी होगी उन उंगलियों को ट्रिगर दबाने के लिए। उफ्फ! आत्मा काँप जाती है। हे ईश्वर, इस देश की जवानी को तंत्र की विफलताओं से बचाना। नमो नारायण! 

© चिराग़ जैन

Ref : Himanshu Roy Suicide

Thursday, May 10, 2018

ईश्वर बढ़िया सेल्समेन है।

इतना सारा सुख!
वह भी सस्ते दामों पर
कहीं यह सुख के पैकेट में
दुख का कच्चा माल न निकले!

बाज़ारों में
दुख का ग्राहक मिलता कम है
इसीलिए भगवान बेचारा
सुख के बीच मिलावट करके
दुख का मोल जुटा लेता है।

"ले लो बाबूजी,
ले जाओ
सुख से इक्कीस ही निकलेगा
सुख से ज़्यादा ड्यूरेबल है
सुख से ज़्यादा दिन चलता है
और जब ये एक्सपायर होगा
तब पछतावा दे जाएगा।

सुख की मेंटेनेंस महंगी है
दुःख ताउम्र नया रहता है
एक ख़रीदो एक मुफ्त है
न भाए वापिस दे जाना!"

-सुनकर सुख का हर इक ग्राहक
दुख से झोला भर लाता है
रोटी लेने घर से निकले
भूख उठाकर घर लाता है।

जो सस्ते के पीछे भागा
उसके हिस्से सिर्फ़ पेन है
सुबह-शाम दुख बेच रहा है
ईश्वर बढ़िया सेल्समेन है।

© चिराग़ जैन

Wednesday, May 9, 2018

ज़माना हुआ तंग

पिछला भी सप्ताह महज कानों कानों में बीत गया
कर्नाटक के नाटक में और हंगामों में बीत गया
सोनम की शादी के कुछ फिल्मी गानों में बीत गया
जिन्ना से जो वक़्त बचा था, तूफानों में बीत गया
कभी रैली में खिल्ली उड़ा ली, या खेला गाली गाली
ज़माना हुआ दंग भाइयो

डाँट डपट कर लोकतंत्र में लोग नहीं पाले जाते
गुंडागर्दी से सिस्टम के दोष नहीं टाले जाते
यदुरप्पा जी यूँ सत्ता के दीप नहीं बाले जाते
हाथ-पाँव बंध जाते हैं तो वोट नहीं डाले जाते
ढूंढो अपने दिमाग़ की भी ताली, चलाओ न दुनाली
उल्टी पड़ेगी जंग भाइयो

एक रोज़ कोई अधिकारी टीवी पर बड़बड़ा दिया
राई को बिन बात अचानक पर्वत जितना बढ़ा दिया
चैनल वैनल एफबी शेफबी क्या से क्या गुड़मुड़ा दिया
सच बतलाओ इस अंधड़ में कौन सा मुद्दा उड़ा दिया
हाय आंधियो की सूचना भुना ली, हवाएं बेच डालीं
ये कैसे हैं लफंग भाइयो

कसमें खाने से योद्धा का धीर टूटने लगता है
लक्ष्य भटक जाता है और उद्देश्य छूटने लगता है
कांग्रेस की फेयरवेल के मनसूबे मत पालो जी
पेड़ जहाँ से काटोगे वो वहीं फूटने लगता है
ऐसी चोटी में गाँठ क्यों लगा ली, कसम कोई खा ली
राहुल को किया तंग भाइयो

तुम निश्चय कर लेते तो फिर आड़ लगाना मुश्किल था
दुश्मन की जय कहने वालों का बच पाना मुश्किल था
देश, राज्य, मंत्रालय, कुलपति सब पर राज तुम्हारा है
फिर भी क्योंकर जिन्ना की तस्वीर हटाना मुश्किल था
बिना बात क्यों ये बात भी बढ़ा ली, ये है जनाबे आली
तुष्टिकरण का रंग भाइयो

वे बोले कि कर्नाटक में बहुमत इनका टच होगा
राहुल गांधी का भाषण अब सीरियसली टू मच होगा
मौसम का अनुमान तलक झूठा साबित हो जाता है
ऐसे में संजय राउत का दावा कैसे सच होगा
देखो ये तो पुलाव हैं खयाली, बिना हथेली ताली
ये बातों की है जंग भाइयो

सारे यार तुम्हारे उनके घर जा बैठे राहुल जी
कई राज्य अपनी ज़िद में तुम निपटा बैठे राहुल जी
कांग्रेस की सारी इज़्ज़त लुटवा बैठे राहुल जी
सिद्धरमैया भी मोदी के गुण गा बैठे राहुल जी
अपने हाथों से लुटिया डुबा ली, बजाते रहो ताली
चाकू पे लगा ज़ंग भाइयो


पिछला भी सप्ताह महज कानों कानों में बीत गया
कर्नाटक के नाटक में और हंगामों में बीत गया
सोनम की शादी के कुछ फिल्मी गानों में बीत गया
जिन्ना से जो वक़्त बचा था, तूफानों में बीत गया
कभी रैली में खिल्ली उड़ा ली, या खेला गाली गाली
ज़माना हुआ दंग भाइयो

डाँट डपट कर लोकतंत्र में लोग नहीं पाले जाते
गुंडागर्दी से सिस्टम के दोष नहीं टाले जाते
यदुरप्पा जी यूँ सत्ता के दीप नहीं बाले जाते
हाथ-पाँव बंध जाते हैं तो वोट नहीं डाले जाते
ढूंढो अपने दिमाग़ की भी ताली, चलाओ न दुनाली
उल्टी पड़ेगी जंग भाइयो

एक रोज़ कोई अधिकारी टीवी पर बड़बड़ा दिया
राई को बिन बात अचानक पर्वत जितना बढ़ा दिया
चैनल वैनल एफबी शेफबी क्या से क्या गुड़मुड़ा दिया
सच बतलाओ इस अंधड़ में कौन सा मुद्दा उड़ा दिया
हाय आंधियो की सूचना भुना ली, हवाएं बेच डालीं
ये कैसे हैं लफंग भाइयो

कसमें खाने से योद्धा का धीर टूटने लगता है
लक्ष्य भटक जाता है और उद्देश्य छूटने लगता है
कांग्रेस की फेयरवेल के मनसूबे मत पालो जी
पेड़ जहाँ से काटोगे वो वहीं फूटने लगता है
ऐसी चोटी में गाँठ क्यों लगा ली, कसम कोई खा ली
राहुल को किया तंग भाइयो

तुम निश्चय कर लेते तो फिर आड़ लगाना मुश्किल था
दुश्मन की जय कहने वालों का बच पाना मुश्किल था
देश, राज्य, मंत्रालय, कुलपति सब पर राज तुम्हारा है
फिर भी क्योंकर जिन्ना की तस्वीर हटाना मुश्किल था
बिना बात क्यों ये बात भी बढ़ा ली, ये है जनाबे आली
तुष्टिकरण का रंग भाइयो



वे बोले कि कर्नाटक में बहुमत इनका टच होगा
राहुल गांधी का भाषण अब सीरियसली टू मच होगा
मौसम का अनुमान तलक झूठा साबित हो जाता है
ऐसे में संजय राउत का दावा कैसे सच होगा
देखो ये तो पुलाव हैं खयाली, बिना हथेली ताली
ये बातों की है जंग भाइयो

सारे यार तुम्हारे उनके घर जा बैठे राहुल जी
कई राज्य अपनी ज़िद में तुम निपटा बैठे राहुल जी
कांग्रेस की सारी इज़्ज़त लुटवा बैठे राहुल जी
सिद्धरमैया भी मोदी के गुण गा बैठे राहुल जी
अपने हाथों से लुटिया डुबा ली, बजाते रहो ताली
चाकू पे लगा ज़ंग भाइयो



वही पुरानी काठ की हांडी नहीं चढ़ेगी साहब जी
जनता अपने अनुभव से ही निर्णय लेगी साहब जी
कर्नाटक की हार देखकर इतना तो सीखे होंगे
अब जुमलेबाज़ी से जनता नहीं फँसेगी साहब जी
अपनी ख़ुद की फेयरवेल करा ली, अपनी ही मुंह की खा ली
हारे हो बड़ी जंग भाइयो

घर से उठवाने के दावे को भी त्राटक नहीं मिला
उन्हें सड़क पर लाने वालों को ख़ुद फाटक नहीं मिला
हिन्दू-मुस्लिम, लिंगायत, जिन्ना, तूफान, दलित, अगड़े
इतना सारा नाटक करके भी कर्नाटक नहीं मिला
ईवीएम ने भी राखी खुलवा ली, नज़र फेर डाली
ठगे गए दबंग भाइयो




सच मानो पहले से अब मैच्योर हो गई है जनता
कांग्रेस-बीजेपी में इग्नोर हो गई है जनता
पहले जैसी नहीं रही है, और हो गई है जनता
जुमलों से और ड्रामे से अब बोर हो गई है जनता
जीडीएस ले ले सत्ता की ताली, तुम बैठे रहो ठाली
अब बदलो अपने ढंग भाइयो

Tuesday, May 8, 2018

उत्सव

मेले में भी पहुँचे साथ झमेले लेकर
उत्सव किस सूरत तुमको आकर्षित करते

बाँहें फैलाते होंगे जब खेल-खिलौने
कंगाली के दंश तुम्हें बिलखाते होंगे
आकर्षण उभरा होगा जब मुस्कानों का
लाभ-बचत का तब तुम गणित लगाते होंगे
द्वन्द वहाँ था आशा और निराशाओं का
तुम बढ़कर आशाओं को अपराजित करते

रामकथा से इतनी सीख न पाई तुमने
ठीक दिशा का बाण, अधम का अंत करेगा
अडिग रहो तुम शांत तथागत जैसे बनकर
तेज तुम्हारा हर डाकू को संत करेगा
अभिनय से जीवन का सार ग्रहण करना था
उलझन से ख़ुद को कुछ देर विभाजित करते

सरगम की पहली कक्षा से ऊब गए तो
अनहद का संगीत नहीं साधा जाएगा
धरती के प्राणी को अवरोधक माना तो
ईश्वर सा मनमीत नहीं साधा जाएगा
हर झूले की पींग तुम्हें ही लेकर उछले
ऐसी इच्छाओं को क्षण भर विस्मृत करते

© चिराग़ जैन

Monday, May 7, 2018

तूफ़ान, सरकार और मीडिया

मौसम विभाग की भविष्यवाणी कमज़ोर साबित हुई। तूफान की गति और प्रचंडता बताने में मौसम विभाग निष्फल सिद्ध हुआ। ज्ञात हो कि मौसम विभाग के बताए गए समय से दो दिन पूर्व ही देश भर के मीडिया में तूफान कहर बरपाने लगा था। 
टेलीविज़न चैनलों के संवाददाताओं और प्रस्तोताओं के चेहरे की बदहवासी से स्पष्ट हो रहा था कि तूफान भयंकर है और संवाददाता के ठीक पीछे दुबका हुआ है। चैनल के ग्राफिक आर्टिस्ट्स के दिलो-दिमाग़ में तूफान ने हंगामा मचाया कि उड़ती हुई धूल को गूगल से डाउनलोड करके भारतीय टच कैसे दिया जाए। 
सोशल मीडिया पर भी तूफान की गति भयंकर थी। व्हाट्सएप्प पर ताज़ा अपडेट के टेक्सट तथा वीडियोज़ के ऊँचे बवंडर आवश्यक संदेशों को उड़ा ले गए। फेसबुक पर तूफानी चुटकुलों ने देश के अन्य मुद्दों के हज़ारों पेड़ गिरा दिए। 
महानगरों में किसी के टकराने से भी यदि किसी पेड़ में कुछ स्पंदन हुआ तो उसे रिकॉर्ड करके उतावलों ने तूफान सिद्ध कर दिया। कहीं-कहीं तो पेड़ के न हिलने की स्थिति में कैमरे को हिला-हिलाकर शूटिंग करके भी तूफान के वीडियो वायरल किये गए। रेडियो प्रस्तोताओं ने भी अपने श्रोताओं को फोन कर करके उनके घर के पर्दों का हिल्लन जँचवाया।
इस भयंकर अप्रकृतिक आपदा में कई सौ मीटर फुटेज बर्बाद हो गई। अड़तालीस से ज़्यादा घण्टों के मारे जाने की सरकार ने पुष्टि की है। सरकार ने चेतावनी जारी करते हुए सभी नागरिकों को किसी भी वास्तविक मुद्दे के सिर उठाने की स्थिति में ऐसे तूफान के प्रति सतर्क रहने को कहा है।

© चिराग़ जैन

सच कहने पर रोक

कहने की सुविधा दिलवाई जाएगी
सच कहने पर रोक लगाई जाएगी

पागल हाथी की जंगली चिंघाड़ों से
बंसी की आवाज दबाई जाएगी

पहले मुद्दों से तो ध्यान हटाने दो
फिर शायद तस्वीर हटाई जाएगी

साहब मरहम लेकर आते ही होंगे
तब तक सबको चोट खिलाई जाएगी

जनता दंगों में फाके करती होगी
हाकिम के घर खीर बनाई जाएगी

© चिराग़ जैन

102 नॉट आउट

ज़िन्दगी जीने का सबसे सही तरीका यही है कि उसे हर हाल जिया जाए। जीवन के इस दर्शन को पर्दे पर बेहद शानदार तरीके से उतारा गया है "102 नॉट आउट" में। ठहाकों और उल्लास के सूत्र में पिरोई गई कहानी इतनी रवाँ है कि कहीं कोई गाँठ दिखाई ही नहीं देती।

अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की लाजवाब जुगलबंदी ने अभिनय का उम्दा उदाहरण प्रस्तुत किया है। संवाद अपने नयेपन के साथ अभिनेताओं की टाइमिंग से दोगुने प्रभावी बन गए हैं। 

बुढ़ापे में ज़िन्दगी से भरे रहने का संदेश देती यह फ़िल्म जीवन की कठिनाइयों से परास्त मनुष्यों के लिए ग्लूकोज़ की तरह है। फ़िल्म का सबसे ख़ूबसूरत पक्ष है इसके संवादों की सहजता। 102 वर्ष की आयु में अमिताभ बच्चन बोलते हैं कि "मैं मरने के सख़्त ख़िलाफ़ हूँ, मैं अपनी ज़िंदगी में आज तक कभी नहीं मरा।" ...जीवन का इतना बड़ा दर्शन एक ठहाके के साथ घटित हो जाता है। मनुष्य अपनी मृत्यु को भी सेलिब्रेट कर सकता है। वह मृत्यु के बाद भी अपने होने का आभास करा सकता है। और वह चाहे तो जीते जी मर भी सकता है।

अकेलेपन और संबंधों की त्रासदी झेल रहे लोगों के लिए यह फ़िल्म मरहम की तरह है। "औलाद जब नालायक निकल जाए तो उसका बचपन याद करना चाहिए।" -इस निचोड़ को बेहद ख़ूबसूरती से कहानी में बुना गया है। भावनात्मक शोषण से ठगे गए लोगों के लिए अपने आप को आज़ाद कराने का नुस्ख़ा है इस सिनेमा में। फ़िल्म में लाइन स्केच के मर्जर से दृश्यों का परिवर्तन एक सफल प्रयोग कहा जा सकता है।

अमित जी के जीवंत अभिनय पर कहीं कहीं ऋषि दा का वैविध्यपूर्ण अभिनय भारी पड़ा है। जिमित त्रिवेदी ने भी अपना क़िरदार बेहतरीन निभाया है।

दत्तात्रेय वखारिया और बाबूलाल वखारिया के शांति निवास में ज़िन्दगी जीने के दो अलग अलग तरीक़ों का लुत्फ़ लीजिये और अश्लीलता, फूहड़ता, कानफोड़ू संगीत, गाली-गलौज और विदेशी लोकेशन्स के दम पर फिल्में बनाते बॉलीवुड में सौम्य जोशी के एक नाटक पर आधारित इस साफ-सुथरी फ़िल्म का स्वागत कीजिये।

© चिराग़ जैन

उत्सव के मधुघट

पीड़ा के सागर मंथन से
उत्सव के मधुघट पाएंगे
चाहे कण्ठ रुंधा हो फिर भी
हम जीवन भर मुस्काएँगे

यादों के जलते छालों पर
भावों का मरहम धर देंगे
जीवन के उघड़े घावों में
शब्दों की हल्दी भर देंगे
सरगम के छू लेने भर से
ग़म के फोड़े भर जाएंगे
चाहे कण्ठ रुंधा हो फिर भी
हम जीवन भर मुस्काएँगे

हालातों का गर्जन होगा
चिंता की बिजली कौंधेगी
शंका के तूफ़ान उठेंगे
आंधी सपनों को रौंदेगी
फिर भी धरती मुस्काएगी
नभ में मेघ अगर छाएंगे
चाहे कण्ठ रुंधा हो फिर भी
हम जीवन भर मुस्काएँगे

आँसू से धुलकर मुस्कानें
शायद और निखर जाएँगी
सूरज जलकर बुझ जाएगा
फिर भी भोर सँवर जाएँगी
पतझर के मारे ठूंठों पर
वासंती मौसम आएंगे
चाहे कण्ठ रुंधा हो फिर भी
हम जीवन भर मुस्काएँगे

गीत रचेंगी भीगी पलकें
अधरों का विस्तार बढ़ेगा
अन्तस् पिघलेगा पीड़ा से
मुस्कानों से प्यार बढ़ेगा
गाते-गाते जीने वाले
हँसते-हँसते मर जाएंगे
चाहे कण्ठ रुंधा हो फिर भी
हम जीवन भर मुस्काएँगे

© चिराग़ जैन

Sunday, May 6, 2018

अंधेरा खुद पिघलकर आ गया

अकेला छोड़ दे जब ये मुकद्दर, कौन आता है
किसी के आँसुओं से आँख भरकर कौन आता है

अंधेरा खुद पिघलकर आ गया रौशन चिरागों में
हमारी बाँह में वरना सिमटकर कौन आता है

हमें तो उम्र भर बस तीरगी से जंग लड़नी है
चिरागों की खबर लेने पलटकर कौन आता है

कमसकम झूठ तो हरगिज नहीं किस्से फरिश्तों के
मुसीबत में हवा का रुख बदलकर कौन आता है

हम अपना दर्द लेकर राह पर नजरें बिछाए हैं
जरा देखें फरिश्ता या सितमगर, कौन आता है

© चिराग़ जैन

बंसी की आवाज़ दबाई जाएगी

कहने की सुविधा दिलवाई जाएगी
सच कहने पर रोक लगाई जाएगी

पागल हाथी की जंगली चिंघाड़ों से
बंसी की आवाज़ दबाई जाएगी

पहले मुद्दों से तो ध्यान हटाने दो
फिर शायद तस्वीर हटाई जाएगी

साहब मरहम लेकर आते ही होंगे
तब तक सबको चोट खिलाई जाएगी

जनता दंगों में फाके करती होगी
हाकिम के घर खीर बनाई जाएगी

© चिराग़ जैन

Friday, May 4, 2018

जो आहत हो जाए वह कमज़ोर होता है

साहित्य समाज का दर्पण है और धर्म समाज का परकोटा है। साहित्य और धर्म में गहरा संबंध है। समाज में विचार की प्रतिष्ठापना अथवा परिस्थितियों के सम्यक चित्रण के लिए पौराणिक पात्रों तथा धार्मिक रीतियों के उदाहरण प्रस्तुत करना साहित्य का शगल रहा है।
कृष्ण के बालस्वरूप का वर्णन कर, भक्ति के प्रतीक को वात्सल्य का बिम्ब बनाकर हर गृहिणी का कन्हैया बना देना सूरदास का ऐसा ही एक सफल प्रयास था। रामायण के राम को मानस के राम तक कि यात्रा कराते समय तुलसी को भी भाषादम्भ का त्रास झेलना पड़ा किन्तु अवधी बोली की मीठी चौपाइयों ने समाज को राम दिए और राम को समाज।
पौराणिक कथाओं के प्रतीकों को आधार बनाकर या किसी एक पात्र को केंद्र में रखकर लिखे गए खंडकाव्य समाज लिए सदैव उपयोगी सिद्ध हुए हैं। ऐसा भी देखा गया है कि कुछ स्थानों पर इन खंडकाव्यों के प्रमुख पात्र की पीड़ा के सम्मुख अन्य सभी पात्र कठघरे में खड़े दिखाई देने लगे। यशोधरा महाकाव्य में बुद्ध कठघरे में खड़े हैं तो रश्मिरथी में पूरा कुरुकुल सवालों के घेरे में है। ऐसे ही द्रौपदी और साकेत जैसे ग्रंथ महाभारत तथा रामायण के अनेक महान चरित्रों से प्रश्न पूछते दिखाई देते हैं।
गद्य साहित्य में ‘वयं रक्षामः’ जैसे उपन्यासों ने रामचरितमानस के खलनायक का पक्ष प्रस्तुत करने की हिम्मत की है।
विश्व की सभी भाषाओं में पौराणिक संदर्भों से प्रतीक उठाने और पूज्यनीय चरित्रों से प्रश्न पूछने की परंपरा रही है। ग्रीक साहित्य का तो अधिकांश हिस्सा पौराणिक संदर्भों से ही निर्मित है। अंग्रेजी साहित्य ने भी पादरियों और चर्च पर जमकर कटाक्ष किये हैं। हिंदी साहित्य में भी जातीय व्यवस्था, ब्राह्मणवाद और राम-कृष्ण जैसे आस्था केंद्रों को आधार बनाकर बात करने का अभ्यास है।
उर्दू ग़ज़ल भी इस रिवाज़ से अछूती नहीं है। अपेक्षाकृत अधिक कट्टर होने के बावजूद इस्लाम से सवाल करते हुए या इस्लामिक परंपराओं पर कटाक्ष करते हुए उर्दू ग़ज़ल ने कोई कठिनाई महसूस नहीं की। कहीं-कहीं तो मुल्ला-शेख़ आदि की बाक़ायदा खिल्ली ही उड़ाई गई है।
इस्लाम में शराब हराम है लेकिन शराब का पक्ष लेते हुए कितने ही अशआर कहे गए, जिनमें इस्लाम की इस परंपरा को सीधे निशाना बनाया गया है। कुछ उदाहरण देखें-

ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

‘ज़ौक़’ जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मयख़ाने में ले आओ सँवर जाएंगे
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद
हाए कमबख़्त तू ने पी ही नहीं
-दाग़ देहलवी

झूम के जब रिन्दों ने पिला दी
शैख़ ने चुपके-चुपके दुआ दी
-कैफ़ भोपाली

ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
-नामालूम

भक्ति और भगवान के मध्य कोई तीसरा नहीं हो सकता। ईश्वर को भक्त से मिलने के लिए किसी संदेशवाहक की ज़रूरत नहीं होती -इस बात को कहने के लिए उर्दू शायरी में ऐसा भी शेर मिलता है, जिसमें मूसा को आड़े हाथों लेते हुए भी शायर को हिचकिचाहट नहीं हुई-

हमें भी जलवागाह-ए-नाज़ तक लेकर चलो मूसा
तुम्हें ग़श आ गया तो हुस्ने-जानां कौन देखेगा
-नामालूम

मुफ़लिसी में धार्मिक अपव्यय पर तंज करते हुए निदा फ़ाज़ली का एक दोहा ख़ूब मक़बूल हुआ-

बच्चा बोला देखकर मस्जिद आलीशान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान

इश्क़ को कर्मकाण्ड से बड़ा बताते हुए दाग़ देहलवी कहते हैं-
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
बन्दगी से ख़ुदा नहीं मिलता

और इन सबके इतर भक्त को भगवान से बड़ा बताते हुए असद अंसारी ने ऐसा शेर कहा जिसमें यह स्पष्ट कर दिया कि ख़ुदा ने ही बन्दे को नहीं बनाया बल्कि बन्दा भी ख़ुदा बना सकता है-

बन्दापरवर मैं वो बन्दा हूँ कि बहरे-बन्दगी
जिसके आगे सिर झुका दूंगा ख़ुदा हो जाएगा

अल्लामा इक़बाल ने भी आत्मविश्वास के आगे ईश्वर के झुक जाने की बात बहुत प्रभावी ढंग से कही-

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे -बता तेरी रज़ा क्या है

ग़ज़ब ये है कि कविता के इस तेवर से कभी ऐसा नहीं हुआ कि आस्थाएँ खंडित हो गई हों, भावनाएँ आहत हो गई हों। सूफ़ी सहित्य तो अदब की ज़ुबान के दायरे से बाहर आकर ख़ुदा से तू-तड़ाक के लहजे में बात करता रहा लेकिन कभी कहीं कोई हंगामा नहीं बरपा।
इधर नाज़ ख्यालवी की एक नज़्म, जिसे नुसरत फ़तेह अली ख़ान ने गाया है, उसमें जिस लहजे में ख़ुदा पर सवाल उठाए गए हैं वह तो और भी अनोखा है। नज़्म का उन्वान ही ईश्वर को गोरखधंधा कहते हुए सामने आता है। उस नज़्म के कुछ अंश इस प्रकार हैं-

जब बजुज़ तेरे कोई दूसरा मौजूद नहीं
फिर समझ में नहीं आता तेरा पर्दा करना
तुम एक गोरखधंधा हो

नहीं है तू तो फिर इंकार कैसा
नफी भी तेरे होने का पता है
नहीं आया ख़्यालों में अगर तू
तो फिर मैं कैसे समझा तू ख़ुदा है!
तुम एक गोरखधंधा हो

हैरान हूँ इस बात पर तुम कौन हो, क्या हो
हाथ आओ तो बुत, हाथ ना आओ तो ख़ुदा हो
तुम एक गोरखधंधा हो

अक्ल में जो घिर गया, लाइन्तहा क्योंकर हुआ
जो समझ में आ गया फिर वो खुदा क्योंकर हुआ
तुम एक गोरखधंधा हो

जब के तुझ बिन कोई नहीं मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ खुदा क्या है
तुम एक गोरखधंधा हो

छुपते नहीं हो, सामने आते नहीं हो तुम
जलवा दिखा के जलवा दिखाते नहीं हो तुम
दैरो-हरम के झगड़े मिटाते नहीं हो तुम
जो अस्ल बात है वो बताते नहीं हो तुम
ये माबदो-हरम ये कलीसा-ओ-दैर क्यूं?
हरजाई हो जभी तो बताते नहीं हो तुम
तुम एक गोरखधंधा हो

दिल पर हैरत ने अजब रंग जमा रखा है
एक उलझी हुई तस्वीर बना रखा है
कुछ समझ में नहीं आता कि ये चक्कर क्या है
खेल क्या तुमने अज़ल से ये रचा रखा है
रुह को जिस्म के पिंजरे का बनाकर क़ैदी
उस पर फिर मौत का पहरा भी बिठा रखा है
देके तदबीर के पंछी को उड़ानें तूने
दामे-तकबीर भी हर-सम्त बिछा रखा है
करके आराइशी कोनैन की बरसों तुमने
ख़त्म करने का भी मंसूबा बना रखा है
लामकानी का बहरहाल है दावा भी तुम्हें
नाह्लो-अकरब का भी पैग़ाम सुना रखा है
ये बुराई, वो भलाई, ये जहन्नुम, वो बहिश्त
इस उलटफेर में फ़रमाओ तो क्या रखा है
जुर्म आदम ने किया और सज़ा बेटों को
अद्लो-इंसाफ का मियार भी क्या रखा है
देके इंसान को दुनिया में ख़लाफत अपनी
इक तमाशा-सा ज़माने में बना रखा है
अपनी पहचान की ख़ातिर है बनाया सबको
सबकी नज़रो से मगर खुदको छुपा रखा है
तुम एक गोरखधंधा हो

जो कहता हूँ, माना तुम्हें लगता है बुरा-सा
फिर है मुझे तुमसे बहरहाल गिला-सा
चुपचाप रहे देखते तुम अर्शे-बरी पर
तपते हुए कर्बल में मोहम्मद का नवासा
किस तरह पिलाता था लहू अपना वफ़ा को
खुद तीन दिनों से वो अगरचे था प्यासा
दुश्मन तो बहरहाल थे दुश्मन, मगर अफ़सोस
तुमने भी फ़राहम ना किया पानी ज़रा-सा

इन सब उदाहरणों की आवश्यकता इसलिए पड़ी की पिछले कुछ वर्षों से हमने कट्टरता का एक बाना ओढ़ लिया है। कवि कुछ भी लिखता है तो किसी न किसी की आस्थाएँ आहत हो जाती हैं। कविता के निहितार्थ तक पहुँचने की बजाय धर्म का चश्मा लगाकर हम प्रतीकों में अटककर रह जाते हैं।
हिन्दू धर्म, जिसकी सहिष्णुता विश्व भर के लिए अनुकरणीय रही है, जहाँ ईश्वर से परिहास करने की परंपरा रही है, जहाँ ईश्वर को घर-आंगन के किलोल करते बालक का स्वरूप दिया गया है, वहाँ कुछ भी कहते ही भावनाएँ आहत होने लगी हैं। हमारी आस्थाएँ इतनी कमज़ोर कैसे हो सकती हैं?
ध्यान से देखें तो सम्भवतः विश्व के किसी अन्य धर्म के पास हँसता हुआ ईश्वर नहीं है। पैग़म्बर, जीसस, बुद्ध, महावीर, हरकुलिस जैसे पौराणिक चरित्रों के चित्रण में हास्य और किलोल के प्रसंग नहीं मिलते। लेकिन कृष्ण के चरित्र में यह सब कुछ है। कृष्ण माँ से डाँट खाते हैं, कृष्ण माँ को तंग करते हैं, कृष्ण माखन चुराते हैं, कृष्ण गोपियों से छेड़छाड़ करते हैं, कृष्ण प्रेम करते हैं, कृष्ण क्रोधित होते हैं और कृष्ण दुःखी भी होते हैं। कृष्ण के पास सब कुछ करने की क्षमता है। राम पैंजनिया बांधकर ठुमककर चल सकते हैं। यह कल्पना अन्य किसी ईश्वरीय चरित्र के साथ इतनी सरल नहीं है।
ऐसे में साहित्य में पुराणों के प्रयोग निषेध की तख़्ती चिपका देना समाज के उन्नयन में अवरोधक है। हम अपने ईष्ट में अपने जीवन की वर्तमान परिस्थितियों के उदाहरण तलाशकर उनसे समाधान मांगने के अभ्यासी हैं।
प्रश्न पूछने से कोई ईश्वर छोटा नहीं होता और जो प्रश्न पूछने से छोटा हो जाए वह ईश्वर नहीं होता।

© चिराग़ जैन

Thursday, May 3, 2018

ऐश और आराम

ऐश की ज़िंदगी जीने की लालसा है तो आराम को त्यागना ही होगा। ऐश और आराम परस्पर विरोधी परिस्थितियां हैं।

© चिराग़ जैन

ज़माना हुआ तंग भाइयो

त्रिपुरा में इक विप्लव अपनी सारी मर्यादा भूला
मोदी जी ने शी के संग फिर चाइना में झूला झूला
लालक़िले पर डालमिया के कब्ज़े का हल्ला-गुल्ला
राहुल को चैलेंज किया है पीएम ने खुल्लमखुल्ला
येदुरप्पा ने बुकिंग भी करा ली, शपथ रट डाली
कर्नाटक की है जंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

बिन मतलब के लंबे-लंबे भाषण पेल रहे हो तुम
छोटे बच्चों से भी बोगस दावे ठेल रहे हो तुम
समझ न आता आख़िर कैसे ख़ुद को झेल रहे हो तुम
कभी-कभी ऐसा लगता है घर-घर खेल रहे हो तुम
कभी बोलने की बाज़ियां लगा लीं, या शायरी सुना ली
उड़ती रही पतंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

देश फूँक कर अपनी कोठी जगमग ही तो करनी है
सिर्फ़ क्रीज़ पर टिके हुए कुछ ठक-ठक ही तो करनी है
तुम आपस में शर्त लगाकर टाइम पास करो अपना
क़ाग़ज़ देखो या मत देखो, बकबक ही तो करनी है
ये तो जनता है बड़ी भोली-भाली, बजाती रही ताली
बनी रही उमंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

जो चुप्पी साधे थे वो भी होंठ खोलना सीख गए
बीजेपी वाले दलितों का मोल तोलना सीख गए
ख़ुद मोदी जी ने माना है, अच्छे दिन तो आए हैं
कांग्रेसी मोदीशासन में झूठ बोलना सीख गए
कभी जातियों पे रोटियाँ पका लीं, कहीं पे बकी गाली
यूँ चढ़ता रहा रंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

सब अपनी-अपनी कहते हैं, कौन बताओ होश में है
सिर्फ़ जीत जाने की इच्छा हर इक के उद्घोष में है
उसकी वैसी हरक़त जितना पैसा जिसके कोष में है
बीजेपी तो मस्ती में है, कांग्रेस आक्रोश में है
कहीं मावस में भी है दीवाली, कहीं पे जेब ख़ाली
ये वोट की है जंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

इस गर्मी में काॅमेडी का हीटर किसने आॅन किया
ये कहते हैं पाण्डव दल ने कौरव दल को फोन किया
चंद दिनों में टाॅप इन्होंने बकवासों का ज़ोन किया
दिल्ली ले जाकर भाई को जैसे-तैसे मौन किया
कभी पान की दुकान खुलवा ली, या गाय पलवा ली
ये कैसा नया रंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

मनोरंजन पर भारी इस विप्लव के छक्के-चैके हैं
इस भाई ने दही-बड़े भी देसी घी में छौंके हैं
जब ज़ुबान चलती है तो फिर कौन जो उसको रोके है
नहीं डायना अच्छी लगती, ऐश्वर्या जी ओके हैं
जो दबी थी वो जी की कह डाली, यूँ आरज़ू निकाली
जवानी की उमंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क सब कुछ प्राइवेट हुए सर जी
हटी सब्सिडी गैस तेल के ऊँचे रेट हुए सर जी
लालक़िले के केअर टेकर मोटे सेठ हुए सर जी
हमें बताओ टैक्स के पैसे किनकी भेंट हुए सर जी
तुमने अपनी तो सेलरी बढ़ा ली, या रैलियाँ निकालीं
तमाशा करो बंद भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो

© चिराग़ जैन