Friday, May 11, 2018

तंत्रजन्य विद्रूपताओं का सम्यक चिंतन

जीवन की अथक जिजीविषा यदि हताशा के चरम पर पहुँची है तो परिस्थितियों ने विवशता का कितना भयावह चेहरा प्रस्तुत किया होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। हिमांशु रॉय जैसे बेटे को खोकर भी यदि इस राष्ट्र ने तंत्रजन्य विद्रूपताओं का सम्यक चिंतन नहीं किया तो स्थितियों का यह चेहरा इतना वीभत्स हो जाएगा कि उसके महामिलन से उत्पन्न संतति युग को महाविनाश के कुरुक्षेत्र की ओर ले जाएगी। हिमांशु रॉय की प्रेरणादायक जवानी जिस एक क्षण में आत्मघात की देहरी पर बलिदान हो गई उस एक क्षण से अपनी पीढ़ियों को बचाने के लिए अनर्गल मुद्दों में नष्ट होने वाले समय को मनुष्यता के वास्तविक विकास में समर्पित करना होगा। आह! संवेदनाएँ सिहर उठती हैं, क्या अनुभूति रही होगी उस क्षण जब कोई जुझारू जीवन अपने मुँह में पिस्तौल रख पाया होगा। कितनी मेहनत लगी होगी उन उंगलियों को ट्रिगर दबाने के लिए। उफ्फ! आत्मा काँप जाती है। हे ईश्वर, इस देश की जवानी को तंत्र की विफलताओं से बचाना। नमो नारायण! 

© चिराग़ जैन

Ref : Himanshu Roy Suicide

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