वह भी सस्ते दामों पर
कहीं यह सुख के पैकेट में
दुख का कच्चा माल न निकले!
बाज़ारों में
दुख का ग्राहक मिलता कम है
इसीलिए भगवान बेचारा
सुख के बीच मिलावट करके
दुख का मोल जुटा लेता है।
"ले लो बाबूजी,
ले जाओ
सुख से इक्कीस ही निकलेगा
सुख से ज़्यादा ड्यूरेबल है
सुख से ज़्यादा दिन चलता है
और जब ये एक्सपायर होगा
तब पछतावा दे जाएगा।
सुख की मेंटेनेंस महंगी है
दुःख ताउम्र नया रहता है
एक ख़रीदो एक मुफ्त है
न भाए वापिस दे जाना!"
-सुनकर सुख का हर इक ग्राहक
दुख से झोला भर लाता है
रोटी लेने घर से निकले
भूख उठाकर घर लाता है।
जो सस्ते के पीछे भागा
उसके हिस्से सिर्फ़ पेन है
सुबह-शाम दुख बेच रहा है
ईश्वर बढ़िया सेल्समेन है।
दुख से झोला भर लाता है
रोटी लेने घर से निकले
भूख उठाकर घर लाता है।
जो सस्ते के पीछे भागा
उसके हिस्से सिर्फ़ पेन है
सुबह-शाम दुख बेच रहा है
ईश्वर बढ़िया सेल्समेन है।
© चिराग़ जैन
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