Thursday, May 24, 2018

उचक्कों की भाभी

छोरे उचक्कों से दिन-रात घर की रखवाली करते थे।
घर का बूढ़ा उचक्कों के मुहल्ले से होकर गुज़रता था।

उचक्कों की भाभी बूढ़े को देखकर स्माइल पास करती थी। स्त्री की मुस्कुराहट से बूढ़े को थोड़ी-थोड़ी गुदगुदी होती लेकिन उचक्कों की हरकतें ध्यान आते ही वह तेज़ी से आगे बढ़ जाता। गर्मी का मौसम आया तो बूढ़ा कभी-कभी थकान मिटाने के लिए उचक्कों की भाभी के चबूतरे पर बैठ जाता। भाभी ने भी मौक़ा देखकर बूढ़े को बैठते ही ठंडा पानी पिलाना शुरू कर दिया। एक दिन शर्बत पिलाते हुए भाभी ने बूढ़े से कहा- "ए जी, आपके घर के बाहर जवान लौंडे पहरा देते हैं तो मेरे देवर घर में सेंध नहीं लगा पाते। आप उन्हें रोकते क्यों नहीं। कम से कम अगली दिवाली तक अपने छोरों को पहरेदारी से हटा लो ताकि बेचारे सेंधमार उचक्के आपके घर से कुछ बर्तन-भांडे चुरा कर दिवाली का जुआ खेल सकें।"

भाभी की बात सुनकर बूढ़े को अपने छोरों पर क्रोध आया और उचक्कों पर दया आई। घर लौटते ही तमतमाकर छोरों की क्लास लगाई, और बोला- "एक महीने बाद दिवाली है, अगर किसी उचक्के की धरपकड़ की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। जाओ कुछ हिल्ला करो, आज से ये लठैती बंद!" 

नोट : इस कहानी को कश्मीर से जोड़ कर मुझे शर्मिंदा न करें। 

Ref : Military restrictions in Kashmir on Eid 

© चिराग़ जैन

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