Sunday, May 6, 2018

अंधेरा खुद पिघलकर आ गया

अकेला छोड़ दे जब ये मुकद्दर, कौन आता है
किसी के आँसुओं से आँख भरकर कौन आता है

अंधेरा खुद पिघलकर आ गया रौशन चिरागों में
हमारी बाँह में वरना सिमटकर कौन आता है

हमें तो उम्र भर बस तीरगी से जंग लड़नी है
चिरागों की खबर लेने पलटकर कौन आता है

कमसकम झूठ तो हरगिज नहीं किस्से फरिश्तों के
मुसीबत में हवा का रुख बदलकर कौन आता है

हम अपना दर्द लेकर राह पर नजरें बिछाए हैं
जरा देखें फरिश्ता या सितमगर, कौन आता है

© चिराग़ जैन

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