आह! हिंदी के शौर्य जा सूरज डूब गया। कवि सम्मेलनों में दिनकर की ऊष्मा को उग्र करके जीवित रखने वाला अमर रथ ऊर्ध्वगामी हो गया। कविता की वर्तिका की जाज्वल्यमान आभा खो गई। कड़वा है, पर सत्य है बैरागी जी नहीं रहे। आज शाम गोधूलि वेला में वे दिनकर के संग अस्त हो गए। जीवंत इतने थे कि आयु की विवशताओं के सम्मुख घुटने टेक कर कभी निष्क्रिय नहीं हुए। आज दोपहर तक मनासा में एक कार्यक्रम में शिरक़त करके लौटे और ज़िन्दगी को अभिमान से कह गए कि अंतिम श्वास तक सक्रिय रहा हूँ। संघर्षों की भट्ठी में तपकर दमकी एक रौशनी बुझी है आज। इन तूफानों की रफ्तार बता रही है कि कोई बहुत विशाल वटवृक्ष धराशायी हुआ है। प्रणाम दद्दू!
© चिराग़ जैन
Ref : Demise of Balkavi Bairagi
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