गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, May 18, 2018
महीना जून का
महीना जून का है तिश्नगी हद से गुजरती है जमीं दो बून्द पानी के लिए भी आह भरती है भले ही तल्ख हैं तेवर हवाओं के मगर फिर भी कली खिलने पे आ जाए तो हर डाली सँवरती है
No comments:
Post a Comment