गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Tuesday, June 30, 2020
जाति न पूछो शब्द की
Monday, June 29, 2020
राम, अधर मोरे पत्थर कर दे!
Sunday, June 28, 2020
जनता और राजनीति
Saturday, June 27, 2020
लोककल्याणकारी गणतंत्र
Wednesday, June 24, 2020
विज्ञापन का जनहित
Tuesday, June 23, 2020
घाटे की भरपाई
Monday, June 22, 2020
ज़िम्मेदार मीडिया : धोखेबाज़ क़ायनात
Saturday, June 20, 2020
आपातकाले मतभेद नास्ते
सरकारें अपनी-अपनी क्षमता और प्रवृत्तियों के अनुरूप निरंतर सक्रिय हैं। राजनैतिक उठापटक और पक्ष-विपक्ष की छीछालेदर भी अनवरत जारी है। इधर प्रकृति नित नई मुसीबत खड़ी कर रही है, उधर पड़ोसी राष्ट्रों की ओर से भी इस सुरंग के अंधकार को भयावह बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है।
जब सूरज तपता है, तो ग़रीब की झोपड़ी भी तपती है और अमीर की कोठी भी। जब बादल बेकाबू होता है, तो पानी की मूसल भाजपाई को भी सताती है और कांग्रेसी को भी। जब भूकम्प आता है, तो मंदिर के गुम्बद भी थर्राते हैं और मस्जिद की मीनारें भी। जब बम गिरता है, तो डालियाँ भी ध्वस्त होती हैं और तने भी।
संकट, समस्त विविधताओं को एकाकार करने का अवसर है। पीड़ा, समस्त विवादों को मौन कर देती है। जब हवा सुहानी हो तो हम देह को विस्तार देकर उसका भोग करते हैं किन्तु जब आंधी आती है तो हम संकुचित होकर आत्मरक्षा करते हैं।
इस समय बीमारी, बेकारी और बमबारी की चिंताएँ सुरसा की तरह मुँह बाए देश की सुख-शांति को लील रही हैं। यह समय न तो इतिहास की भूलों को कोसकर वर्तमान की विफलताओं पर पर्दा डालने की अनुमति देता है, न ही वर्तमान की सत्ता को पदच्युत करके भविष्य के सपने देखने का अवसर देता है।
मँझधार में नाव नहीं बदली जाती। भारतीय लोकतंत्र में चाहे-अनचाहे लगभग हर सामाजिक व्यक्ति किसी न किसी राजनैतिक दल अथवा विचारधारा से जुड़ाव और असहमति महसूस करता है। ऐसे में वर्तमान सरकार से भी कुछ लोगों के मतभेद होना स्वाभाविक है। लेकिन यह भी सत्य है कि शत्रु का आक्रमण होने के बाद अपने पक्ष को समर्थन देना ही एकमात्र धर्म होता है। चुनौती के समाप्त होने तक अच्छा या बुरा, जो भी व्यक्ति हमारी ओर से मोर्चे पर खड़ा हो उसका समर्थन करना आवश्यक है। किसी सरकार की नीतियों और सोच को परिमार्जित करने का कार्य शांतिकाल में समीचीन होता है। यदि कोई सुझाव देना भी हो तो उसकी भाषा कटाक्ष अथवा उपालंभ से रहित होनी आवश्यक है।
उधर, भागदौड़ से भरी ज़िंदगी यकायक ठहर गई है। एकाकीपन और निठल्लापन जनता को भीतर ही भीतर खाए जा रहा है। जनता अवसाद और नकारात्मकता के माहौल से घिरती जा रही है। ऐसे में सरकार का भी दायित्व है कि वह जनता की भावनाओं को सम्मान दे। जनता के क्षोभ और नैराश्य को बढ़ानेवाली कोई भी घटना, बयान या हरक़त इस समय सरकार की ओर से न हो, तो जनता का सरकार पर विश्वास बढ़ेगा।
समय विपरीत हो तो विनम्रता से सबको एक सूत्र में बंध जाना चाहिए। माला कितनी भी बेतरतीब हो, लेकिन वह अलग-थलग पड़े मोतियों से तो ज़्यादा ही महत्व रखती है।
© चिराग़ जैन
Friday, June 19, 2020
सस्ता है तो महंगा पड़ेगा
Thursday, June 18, 2020
डर जाएगा चीन
अपने ही हथियार से, डर जाएगा चीन।।
© चिराग़ जैन
सिस्टम का तम
Tuesday, June 16, 2020
श्रद्धांजलियों का ढोंग
भेड़चाल
ये जो इनबॉक्स में मैसेज कर-कर के कह रहे हो कि आत्महत्या मत करना; समझ नहीं आ रहा अपनापन जता रहे हो या याद दिला रहे हो!
कुछ भी फॉरवर्ड करने लगते हो बे! तुम्हारा तो दिल भी घास चरने गया है।
© चिराग़ जैन
Ref : Sushant Singh Rajput Suicide Case
Sunday, June 14, 2020
सुशांत सिंह राजपूत का निधन
चोरी चालू आहे...
Friday, June 12, 2020
अनकहे
दोष सारा जो लिए बैठे रहे अपने सिरों पर
उन चरित्रों का अकेलापन न पहचाना किसी ने
कैकयी की सोच में जो क्षोभ था, वो बाहर आया
लोभ रानी का जगा, तब राम ने वनवास पाया
कैकयी ने कर लिया वरदान को अभिशाप ख़ुद ही
मंथरा के भाग्य में अपयश रहा, वो भी पराया
राजपरिवारों की झूठी प्रीत का जिसमें दिखा सच
मंथरा तो थी वही दर्पण, नहीं जाना किसी ने
पुत्र का संबंध लेकर भीष्म ख़ुद गंधार आए
दम्भ में इक बालिका के स्वप्न सारे मार आए
जिस अंधेरे को तुम्हीं ने राज्य से वंचित किया था
उस अंधेरे पर किसी की राजकन्या वार आए
कौन से अन्याय की ज्वाला में शकुनि जल रहा था
हाल उसका पूछने कब लौटकर आना किसी ने
नाव का जीवन बचाने क्या सहेगी पाल पूछो
धार से घायल हुआ है चप्पुओं का भाल पूछो
आम के मीठे फलों पर मुग्ध रहते हो, रहो पर
हो सके तो आम्रवन की कोयलों का हाल पूछो
भूमिका अपनी निभाकर खो गए नेपथ्य में जो
उन अबोलों का भला गुणगान कब गाना किसी ने
© चिराग़ जैन
Thursday, June 11, 2020
चुनाव तंत्र
Monday, June 8, 2020
विरोधाभास
जिसको सुख का उत्सव समझा,
वो दुख का आयोजन निकला
जिसके भाव सुकोमलतम थे,
उसका नाम विभीषण निकला
जीवन भर विश्रांत रहा जो, हमने उसको शांतनु माना
जिसने हर अनुशासन तोड़ा, उसका नाम सुशासन जाना
जिसका जीवन लाचारी था, उसका परिचय भीष्म बताया
अपशकुनों का मूल रहा जो, वह जग में शकुनी कहलाया
कृष्ण कहा जिसको दुनिया ने, वह जग का आभूषण निकला
जिसके भाव सुकोमलतम थे, उसका नाम विभीषण निकला
नाम श्रवण था जिसका, उसने आहट नहीं सुनी दशरथ की
एक मंथरा क्षण भर में ही इति बन गई हर सुख के अथ की
मानी को समझाने अंगद बनकर बुद्धि स्वयं आई थी
कुम्भकर्ण तक जाग गया पर रावण पर तंद्रा छाई थी
मुख दिखलाने योग्य नहीं जो, वह कुल्हन्त दशानन निकला
जिसके भाव सुकोमलतम थे, उसका नाम विभीषण निकला
जिस वेला में राजतिलक होता उसमें वनवास हुआ है
उत्सव की चौसर पर कुल की लज्जा का उपहास हुआ है
कंचन मृग लाने निकले थे, घर की मृगनयनी खो बैठे
खाण्डव वन को स्वर्ग किया था, ख़ुद ही वनवासी हो बैठे
जिस अवसर पर मेल लिखा था, उसका अंत विभाजन निकला
जिसके भाव सुकोमलतम थे, उसका नाम विभीषण निकला
© चिराग़ जैन
Sunday, June 7, 2020
मित्रता
Saturday, June 6, 2020
शानदार व्यवस्था
Thursday, June 4, 2020
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
Wednesday, June 3, 2020
श्रेष्ठ भारत
एक साँकल भी हो
चौक पूरे भी हों
इन सभी से सजी ये इमारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
थार की रेत पश्चिम में बिखरी रहे
और पूरब निरंतर बरसता रहे
हिमशिखर भी युगों तक अडिग रह सकें
और सागर हमेशा लरजता रहे
हो मिठासों से इफ़्तार रमज़ान में
और फागुन में थोड़ी शरारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
सोच का रंग धानी हमेशा रहे
और आँखों में पानी हमेशा रहे
चाह में सावधानी हमेशा रहे
बाजुओं में रवानी हमेशा रहे
कोई तिरछी नज़र से अगर देख ले
तब रगों में ज़रा-सी हरारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
प्यास के रंग में कोई अंतर न हो
गागरें हों अलग, पर कुंआ एक हो
मंदिरों-मस्जिदों में भरोसा रहे
हों इबादत अलग, पर दुआ एक हो
क्यारियों की भले हों अलग खुशबुएँ
बाग़ बनने का उनमें महारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
जब हलाहल हवाओं में घुलने लगे
नीलकंठी बनें हम जगत् के लिए
सत्व पर आक्रमण जब कभी तम करे
दान हम कर सकें सर्व सत् के लिए
अपना सब कुछ लुटाकर नफ़े में हों हम
इस तरह की हमारी तिज़ारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
घर पड़ोसी का भी धूप से बच सके
ये सबक़ बरगदों ने सिखाया हमें
जो करिश्मा सिंहासन नहीं कर सके
त्याग ने वो भी करके दिखाया हमें
जब कभी हम नई आफ़तों से घिरें
तब दिमाग़ों पे दिल की सदारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
भूल जाना नहीं हम मिटे हैं सदा
देहरी के लिए, आन के वास्ते
ज़िंदगानी को चौसर पे मत हारना
शेख़ियों के लिए, शान के वास्ते
नफ़रतें, दहशतें जब रवानी पे हों
तब मुहब्बत की ज़िंदा इबारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
अपने घर को ही दुनिया समझते हैं जो
उनसे कह दो कि दुनिया हमारा है घर
हम चुनौती से आँखें चुराते नहीं
सावधानी रखी, कब रखा कोई डर
ग़ैर की भी हमें कुछ ज़रूरत रहे
ग़ैर को भी हमारी ज़रूरत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे
© चिराग़ जैन
व्यवस्था के घुटने
Tuesday, June 2, 2020
बड़बोलापन
© चिराग़ जैन
Ref : Racism in USA