Monday, June 22, 2020

ज़िम्मेदार मीडिया : धोखेबाज़ क़ायनात

21 जून बीत गया और दुनिया समाप्त नहीं हुई। यह बड़ी शर्मनाक बात है। एक प्रतिष्ठित समाचार चैनल ने इतनी शिद्दत से दुनिया के समाप्त होने की घोषणा की थी, क्या उस चैनल की इज़्ज़त का भी ख्याल न किया, डूब मरना चाहिए ऐसी बेशर्म दुनिया को। आज अगर दुनिया समाप्त हो गई होती तो वह चैनल टीआरपी के सारे रिकॉर्ड तोड़ चुका होता।
यह ढीठ रवैया पहली बार देखने को नहीं मिला है। इससे पहले भी कई छोटे-बड़े अवसर ऐसे रहे हैं जब नियति ने अंतिम समय पर अपना निर्णय बदलकर हमारे मीडिया की साख पर बट्टा लगाया है। अभी कुछ दिन पहले ही तूफान ने पर्सनली फोन करके मीडिया को बताया कि इस बार मुंबई को नेस्तोनाबूद करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। मीडिया के कर्मठ कर्मवीरों ने मुम्बई के चप्पे-चप्पे पर कैमरे और ओबी वैन तैनात कर दिए, नरीमन पॉइंट से लेकर जुहू चौपाटी तक पत्रकारों ने मोर्चा संभाल लिया कि जिस जगह से भी तूफ़ान एंट्री करेगा वहीं से लाइव कवरेज जारी हो जाएगी। एक-एक मिनिट पर नई प्लेट्स बनती रही। ग्राफिक डिजाइनरों ने सारी ताक़त झोंक दी कि कहीं तूफ़ान की एंट्री के शॉट्स फीके न रह जाएँ, ऐसा न हो कि तूफान मुंबई को तबाह कर दे और हम उसके ग्राफिक्स में कमज़ोर रह जाएँ। हर लहर का एक्सट्रीम क्लोज़ अप ऑन एयर हुआ। कौन जाने किस लहर पर तूफ़ान की सवारी आ जाए। मुंबई बचे या न बचे, लेकिन तूफान की एंट्री में चूक न हो जाए।
बेचारे पत्रकार लहर-लहर का नमक फाँकते रहे और तूफ़ान फुस्स हो गया। मुंबई को तबाह होते देखने के अरमान लिए बैठी जनता को निराशा से बचाने के लिए एकाध गिरे हुए पेड़ों को क्लोज़ अप शूट करके तबाही का टिपर चलाना पड़ा। एकाध जगह उड़ी टीन शेड के शॉट्स को मजबूरी में छतें उड़ने के वॉइस ओवर के साथ एयर करना पड़ा। तूफ़ान ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यहाँ तक कहा कि समुद्र के किनारे पड़े भारी-भरकम पत्थर हवा में उड़ने लगेंगे। तूफान के इस बड़बोलेपन को सच मानकर मीडिया ने एक सप्ताह तक माहौल बनाए रखा। कई चैनल्स ने तो भूत-प्रेत और सास-बहू जैसे महत्वपूर्ण बुलेटिन तक तूफ़ान की अगुआई में न्यौछावर कर दिए। लेकिन तूफ़ान शेख़चिल्ली की औलाद निकला। जो-जो मीडिया को बताया था, उसमें से एक भी बात सच नहीं निकली। दुनिया मुम्बई को तबाह होते देखने के लाइव नज़ारों से वंचित रह गई और निराश पत्रकार अपना साजो-सामान उठाकर ब्यूरो में वापस लौट आए।
बहुत दुःख होता है साहब। मीडिया के साथ यह खिलवाड़ अच्छा नहीं है। ख़ुद सूर्य ने मीडिया को फोन किया था कि इस बार के सूर्यग्रहण से दुनिया तबाह हो जाएगी। हालाँकि तूफ़ान वाले झूठ के ज़ख़्म अभी भरे नहीं थे, लेकिन फिर भी हमारी मुस्तैद मीडिया सूर्य के एक फोन कॉल का सम्मान करते हुए ज्योतिषियों, खगोल शास्त्रियों, वैज्ञानिकों और गणितज्ञों को लेकर स्टूडियो में बैठ गई। जब ये सब लोग स्टूडियो में पहुँच गए तब एंकर को ध्यान आया कि इनमें से किसी ने भी अगर कोई ग़लत बात बोल दी, तो उससे जनता में अफ़रा-तफ़री मच जाएगी। यह विचार आते ही एंकरों ने मोर्चा संभाला और ख़ुद बोलना शुरू कर दिया। जब तक बुलेटिन चला तब तक नॉनस्टॉप बोलते रहे। विशेषज्ञों से सवाल पूछे गए क्योंकि यह एंकरिंग का कर्तव्य था, लेकिन उन्हें जवाब देने का अवसर नहीं दिया गया क्योंकि यह एंकर का धर्म था। पहले से प्राप्त जानकारियों को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया गया, क्योंकि इस ग्रहण के बाद इतनी तबाही मचने वाली थी कि फिर शायद ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ का वह स्पॉट देखने का मौका बेचारे दर्शकों को कभी न मिल पाता, इसलिए ‘तीन बजकर दस मिनिट पर ग्रहण समाप्त होगा’ - यह बात भी ब्रेकिंग न्यूज़ बना दी गई। इधर चंद्रमा ने सूर्य को एक कोने से घेरना शुरू किया, उधर एंकरों का स्वर ओज़ोन लेयर पार करने लगा। फायर रिंग का दृश्य बना और एंकर ऐसे उतावले होने लगे जैसे पहले से देखी हुई एक्शन फ़िल्म को दोबारा देखते हुए पड़ोसी को आगे का सीन बताने की उतावली में कोई कुर्सी का हत्था तोड़ दे। एंकरों का स्वर चंद्रमा पर पड़े विक्रम लैंडर से टकराने लगा। चंद्रमा अपनी गति के अनुसार सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुज़र गया। दुनिया बच गई लेकिन मीडिया मर गया। दुनिया तबाह नहीं हुई। सूरज की फोन कॉल फेक निकली।
क्या-क्या याद करें साहब। भारत में कोयले का स्टॉक ख़त्म होने की ख़बर हो या कोसी की बाढ़ में पूरा उत्तर भारत बह जाने की ख़बर; धूमकेतु टकराने की पक्की जानकारी हो या धरती के भीतर चल रही हलचल का आँखों देखा हाल; मीडिया हर ख़बर को सीरियसली लेता रहा और प्रकृति धोखा देती रही।
जनता सच से वंचित न रह जाए इसलिए बेचारे दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के मन के भीतर भी ट्रांसमीटर फिट कर आए हैं। ट्रम्प हो या पुतिन, चीन हो या पाकिस्तान; उनके मन में जैसे ही कोई विचार आता है तुरंत यहाँ प्रोम्पटर पर बीप होने लगती है। चैनल्स तुरन्त उस विचार को अपने दर्शकों तक पहुँचा देते हैं। अब अगर कोई अपने मन में आए विचार पर न टिके तो इसमें मीडिया क्या करे? बात से पलटते हैं ट्रम्प और नाम बदनाम होता है भारतीय मीडिया का। ऐसी ही हरक़तों के कारण ‘हड़प्पा न्यूज़’ और ‘मोहनजोदड़ो टीवी’ जैसे चैनल्स किसी इनपुट को इग्नोर कर गए और उस समय दुनिया की तबाही की फुटेज तैयार न हो सकी। तब प्रकृति ने गच्चा न दिया होता तो आज उन सभ्यताओं के विनाश की वजह का ‘अनुमान’ न लगाना पड़ता। बस एक पैन ड्राइव खोजनी होती और सारा सीन एचडी फॉरमेट में देख पा रहे होते।
पर इस बार कम से कम हमारे देश में ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। हमारी जनता मीडिया के साथ है। इतनी सब बातें झूठ निकलने के बावजूद, जनता ख़बरों पर अटूट विश्वास करती है। क्योंकि जनता जानती है कि पूरी क़ायनात हमारे चैनल्स को झूठा सिद्ध करने पर उतारू है। लेकिन हम इस सत्यवादी मीडिया को झूठा मानकर इसका साथ नहीं छोड़ सकते। हमने मीडिया को अभयदान दे रखा है कि सूरज, चांद, मंगल, धूमकेतु, बाढ़, तूफ़ान, भूकम्प, बादल, ट्रम्प, इमरान, पुतिन, कैमरून और कोरोना तक जहाँ से जो इनपुट मिले उसे जस का तस सुंदर ग्राफिक्स के साथ ब्रॉडकास्ट करो। क्योंकि अगर किसी दिन कोई इन्फॉर्मेशन सही निकली और दुनिया तबाह हो गई तो हमारा मीडिया दुनिया को क्या मुँह दिखाएगा।

© चिराग़ जैन

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