Wednesday, June 3, 2020

श्रेष्ठ भारत

नींव भी पुष्ट हो 
कुछ कंगूरे भी हों
एक साँकल भी हो
चौक पूरे भी हों
इन सभी से सजी ये इमारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

थार की रेत पश्चिम में बिखरी रहे
और पूरब निरंतर बरसता रहे
हिमशिखर भी युगों तक अडिग रह सकें
और सागर हमेशा लरजता रहे
हो मिठासों से इफ़्तार रमज़ान में
और फागुन में थोड़ी शरारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

सोच का रंग धानी हमेशा रहे
और आँखों में पानी हमेशा रहे
चाह में सावधानी हमेशा रहे
बाजुओं में रवानी हमेशा रहे
कोई तिरछी नज़र से अगर देख ले
तब रगों में ज़रा-सी हरारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

प्यास के रंग में कोई अंतर न हो
गागरें हों अलग, पर कुंआ एक हो
मंदिरों-मस्जिदों में भरोसा रहे
हों इबादत अलग, पर दुआ एक हो
क्यारियों की भले हों अलग खुशबुएँ
बाग़ बनने का उनमें महारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

जब हलाहल हवाओं में घुलने लगे
नीलकंठी बनें हम जगत् के लिए
सत्व पर आक्रमण जब कभी तम करे
दान हम कर सकें सर्व सत् के लिए
अपना सब कुछ लुटाकर नफ़े में हों हम
इस तरह की हमारी तिज़ारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

घर पड़ोसी का भी धूप से बच सके
ये सबक़ बरगदों ने सिखाया हमें
जो करिश्मा सिंहासन नहीं कर सके
त्याग ने वो भी करके दिखाया हमें
जब कभी हम नई आफ़तों से घिरें
तब दिमाग़ों पे दिल की सदारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

भूल जाना नहीं हम मिटे हैं सदा
देहरी के लिए, आन के वास्ते
ज़िंदगानी को चौसर पे मत हारना
शेख़ियों के लिए, शान के वास्ते
नफ़रतें, दहशतें जब रवानी पे हों
तब मुहब्बत की ज़िंदा इबारत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

अपने घर को ही दुनिया समझते हैं जो
उनसे कह दो कि दुनिया हमारा है घर
हम चुनौती से आँखें चुराते नहीं
सावधानी रखी, कब रखा कोई डर
ग़ैर की भी हमें कुछ ज़रूरत रहे
ग़ैर को भी हमारी ज़रूरत रहे
एक भारत रहे, श्रेष्ठ भारत रहे

© चिराग़ जैन

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