कलाकार नीलकण्ठ होता है। सारी दुनिया का विष पचाकर उसे जीवित रहना होता है। मुस्कुराते ओंठो के कारण जो आँखों का संकुचन होता है उसमें कितने ही आँसू छिपा लिए जाते हैं। हर सफल कलाकार के निजी जीवन में झाँककर, दुनिया उस पर कीचड़ उछालना चाहती है। लेकिन उसके निजी जीवन के घावों पर मरहम रखने कोई नहीं जाता।
लोग अपने-अपने निष्ठुर निर्णय लेकर अभी भी लिख देंगे कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। मैं स्वयं इस बात से सहमत हूँ, लेकिन एक बार, सिर्फ़ एक बार हम अपने समाज को, अपने तंत्र को, अपनी सामाजिकता को और अपनी दुनिया को टटोलकर तो देखें कि किन परिस्थितियों में किसी को मौत ज़िन्दगी से आसान लगने लगती होगी। किन परिस्थितियों में कोई संवेदनशील मन चीख़कर कहता होगा कि - ‘मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया, तुम्हारी है, तुम ही संभालो ये दुनिया!’
अलविदा दोस्त!
मुझे नहीं पता कि तुमने क्या झेला, मुझे नहीं पता कि तुम सही हो या ग़लत, मुझे यह भी नहीं मालूम कि किस स्थिति में तुमने यह कदम उठा लिया। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि तुम्हारी मुस्कुराहट इस बात की गवाही है कि यह क़दम उठाने के लिए तुमने ख़ुद को बहुत मुश्किल से मनाया होगा।
© चिराग़ जैन
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