गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Monday, April 30, 2018
स्वर्णिम भविष्य
पर अभी हम आपके उपहास का संत्रास झेलें
कल हमारे अनुकरण की सीख देना पीढ़ियों को
आज हम अपने किये पर धृष्टता का त्रास झेलें
जब कभी गौतम नकारेगा गँधाती रीतियों को
तब उसे उद्दण्ड कहकर विश्व कर देगा बहिष्कृत
जब वही कृशकाय होकर लकड़ियों जैसा बनेगा
तब उसे गृहिणी करेगी देवता कहकर पुरस्कृत
स्वर्णबिंबित हो पुजेंगे कल तथागत विश्व भर में
आज भीषण जंगलों में कष्टप्रद संन्यास झेलें
जब किसी वैधव्य को जीवित चिता स्वीकार ना हो
तब उसे कुलटा बताकर राजगृह दुत्कार देंगे
बावरी जब कृष्ण की दीवानगी में मग्न होगी
तब नियम उसको गरल का पात्र देकर मार देंगे
कल तुम्हारी अर्चना का गान बन जाएंगी मीरा
आज भगवत भक्ति में वे दण्ड का विषग्रास झेलें
जग यही करता रहा है, जग यही करता रहेगा
अब जिसे द्रोही कहा है, कल उसे ईश्वर कहेगा
जिस कथा को हीन कहकर आज कर दोगे उपेक्षित
कल उसी पोथी से जग की आस्था का रस बहेगा
कल समूचा जग यही चौपाइयाँ गाता फिरेगा
आज तुलसी ज्ञानियों के दम्भ का परिहास झेलें
© चिराग़ जैन
Sunday, April 29, 2018
लालकिले का टेंडर
Saturday, April 28, 2018
कहने लगा गिटार
सुर तब ही गुंजित हुए, कसे रहे जब तार।।
© चिराग़ जैन
Friday, April 27, 2018
बारहमासा
मीत! तुम्हारी सुधियों का ये कैसा बारहमासा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है
पल में मुखड़े पर जगमग दीवाली-सी आ जाती है
पल में मन में चैत दुपहरी की वीरानी छाती है
पल में डरकर मन बेचारा पूस निशा-सा कँपता है
पल में आषाढ़ी चातक-सा चंद्रकिरण को तकता है
क्षणिक हताशा, क्षणिक पिपासा, क्षणिक मिलन अभिलाषा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है
जब पुरवा के बहकाने से मन भरमाने लगता है
तब बिन मौसम की बारिश से खेत लजाने लगाता है
दुनियादारी के पचड़ों से आलस करने लगता है
इस बैरागी मन में महुए का रस झरने लगता है
मन संतृप्त हुआ बैठा है पर तन भूखा-प्यासा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है
इधर हृदय के पास अचानक जेठ पिघलने लगता है
उधर पुराने पल से तपकर अन्तस् गलने लगता है
सपनों के कजरारे बादल अम्बर तक बढ़ जाते हैं
धूप चढ़े तो इच्छाओं के मृग काले पड़ जाते हैं
इस पल शांत तथागत है मन, अगले पल दुर्वासा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है
© चिराग़ जैन
Wednesday, April 25, 2018
काला अम्ब
Sunday, April 22, 2018
प्रश्न संस्कृति
प्रश्नों से परहेज किया तो कोई अनुसंधान न होगा
भगवद्गीता उत्तर ही तो है अर्जुन की जिज्ञासा का
यम तक ने सम्मान किया है नचिकेता की अभिलाषा का
समवशरण में प्रश्न न हों तो आगम ज्ञान कहाँ से आता
प्रश्न गरुड़ यदि पूछ न पाते गरुड़ पुराण कहाँ से आता
ज्ञानपिपासा तृप्त हुई तो ईश्वर का अपमान न होगा
प्रश्नों से परहेज किया तो कोई अनुसंधान न होगा
यक्षों की अनदेखी करके प्यास बुझाना सम्भव है क्या
शंकाओं का उत्तर देना सचमुच एक पराभव है क्या
कनक, कसौटी से कतराए ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है
जिज्ञासा से आँख चुराए, वह मेरा आराध्य नहीं है
प्रश्न सुने तो आपा खो दे, वह मानुष विद्वान न होगा
प्रश्नों से परहेज किया तो कोई अनुसंधान न होगा
सावित्री की हठ ने चाहा उसके पति के प्राण न जाएँ
तब तक प्रश्न उठाते रहिए जब तक विधिना मान न जाएँ
प्रश्नों के ही ताड़पत्र पर हर इक ग्रंथ लिखा होता है
प्रश्नों की आधारशिला पर ही गणतंत्र टिका होता है
जो प्रश्नों को द्रोह कहे उस शासक का यशगान न होगा
प्रश्नों से परहेज किया तो कोई अनुसंधान न होगा
दम्भी राजा की मनमानी का प्रतिकार गुनाह नहीं है
अभिमानी की पूजा करना प्रह्लादों की चाह नहीं है
मृत्यु प्रकट होती खम्भे से अहम् अगर सिर चढ़ आता है
वरदानों का दंभ किया तो विधि का लेखा मिट जाता है
राम अमर होंगे युग-युग तक, रावण का अभिमान न होगा
प्रश्नों से परहेज किया तो कोई अनुसंधान न होगा
© चिराग़ जैन
Thursday, April 19, 2018
पुनर्समीक्षा
बस इतने भर से मूरत की, प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी
पूछ लिया यदि उत्सुक होकर, शिल्पी की घायल उंगली से
तो फिर इस पूरे मंदिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
रामकथा लिखना चाहो तो, केवट का किस्सा सुन लेना
कैसे त्याग गए पल भर में, शासन का हिस्सा सुन लेना
सागर से सुनना यश गाथा, जिसको क्रोध दिखा राघव का
शबरी और निषाद कहेंगे, जिनको शोध दिखा राघव का
वह पत्थर गाथा गाएगा परस जिसे इंसान किया था
उन ऋषियों के दल से पूछो जिन सबका कल्याण किया था
लिखना, कैसा युद्ध हुआ था राघव का दम्भी रावण से
पूछ नहीं लेना भूले से, परित्यक्ता सीता के मन से
अगर सिया ने मन खोला तो बहुत प्रतीक्षा करनी होगी
तो फिर इस पूरे मन्दिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
बस यह लिखना कैसे निर्धन ब्राह्मण से संबंध निभाया
बस यह लिखना किस कौशल से कालयवन का अंत कराया
बस यह लिखना उस नटवर का रणकौशल में यश कितना था
बस यह लिखना पूरे युग पर मधुसूदन का वश कितना था
गौवर्द्धन पर्वत बोलेगा जिसको उंगली पर रखा था
भीष्म-धनंजय की सुन लेना, जिनने रूप विराट लखा था
गीता के श्लोकों को पढ़कर, श्रद्धा का लेखा भर देना
राधा के बिरही यौवन को, बिल्कुल अनदेखा कर देना
राधा से उद्धव उलझे तो विस्मृत शिक्षा करनी होगी
फिर इस पूरे ही मंदिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
बोधगया के वन बोलेंगे कितने थे विद्वान तथागत
नालंदा जगकर बोलेगा क्या थे दिव्य महान तथागत
ईश्वर का अवतार वही था, नगरवधू का मन बोलेगा
शांति-अहिंसा का गायक था, धरती का कण-कण बोलेगा
मुख पर कैसी दिव्य प्रभा थी, शिष्यों की टोली बोलेगी
इक दिन यह सारी मानवता उनकी ही बोली बोलेगी
तप की इक अनुपम शैली से युग के पन्ने मोड़ गए थे
राहुल से मत चर्चा करना, उसको सोता छोड़ गए थे
परित्यक्ता के अधर खुले तो खंडित निष्ठा करनी होगी
फिर इस पूरे ही मन्दिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
जो तरु जग को फल देता है उसकी जड़ें उमस सहती है
जो घाटों की प्यास बुझा दे, वह नदिया प्यासी रहती है
अक्सर दीपक के भीतर ही गहन अंधेरा छुप जाता है
तेज दुपहरी की आभा में, मौन सवेरा छुप जाता है
जिस पर्वत में करुणा जागी उसके जल को बहना होगा
अमृत घट उपजाकर भी सागर को खारा रहना होगा
जग की भूख मिटानी है तो हल की चुभन सहन कर लेना
उजियारा फैलाना है तो निज को पूर्ण दहन कर लेना
हर पूजित को दायित्वों की कठिन परीक्षा करनी होगी
इतिहासों को हर मन्दिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
© चिराग़ जैन
Wednesday, April 18, 2018
पराजित विजेता
कुछ अनबोले वृक्षों के शव भी शामिल हैं सिंहासन में
धर्मराज स्वीकार करोगे?
लाक्षागृह की कालनिशा में जिस भिलनी को दमित किया था
जिनके शव की भस्म बनाकर दुर्योधन को भ्रमित किया था
उन बच्चों की दग्ध अस्थियां चुभती होंगी सिंहासन में
धर्मराज स्वीकार करोगे?
अर्जुन के जीवन की रक्षा हेतु भतीजा भेंट चढ़ा था
बर्बरीक की छल-हत्या पर सारा मजमा मौन खड़ा था
क्या इनका बलिदान पढ़ोगे शपथ ग्रहण के अभिभाषण में
धर्मराज स्वीकार करोगे?
अर्जुन, भीम सदा आगे थे हर अवसर पर गौण रहे तुम
द्रोणप्रवर के विश्वासों की हत्या करके मौन रहे तुम
भ्रम को पोषित करना भी क्या पाप नहीं है अनुशासन में
धर्मराज स्वीकार करोगे?
मेघों से गठबंधन करके अर्जुन के प्रण पूर्ण कराए
एक नपुंसक के पीछे छिपकर पौरुष पर तीर चलाए
कोई भेद नहीं था उस क्षण तुम सबमें और दुःशासन में
धर्मराज स्वीकार करोगे?
भूल गए वह ब्राह्मण का घर; झूठ जहाँ कहकर ठहरे थे
द्रुपदसुता के बँटवारे पर तुम कितने गूंगे-बहरे थे
कैसे बाँट सके तुम पाँचो इक जीवित नारी राशन में
धर्मराज स्वीकार करोगे?
© चिराग़ जैन
पूरी राजनीति हो गई मवाली
एक तरफ़ कठुआ घायल है, एक तरफ़ उन्नाव हुआ
एनकाउंटर से बच जाने का खुल्लमखुल्ला भाव हुआ
तोगड़िया की गद्दी छिन गई, ऐसा गुपचुप दांव हुआ
फिर से भागवत ने रामधुन गा ली, मंदिर की याद आ ली
वही पुराना ढंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
सारे बाबा संसद में तीर्थाटन करने पहुँचेंगे
छोड़ त्याग का पथ संन्यासी शासन करने पहुँचेंगे
मंत्र जाप को भूल वियोगी भाषण करने पहुँचेंगे
मंत्री बन नाइट क्लब का उद्घाटन करने पहुँचेंगे
एक कुर्सी ने भंग कर डाली, तपस्या निराली
चिमटे में है उमंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
मक्का मस्जिद के निर्णय ने काम सनसनीखेज किया
मुक्त असीमानंद हो गया, मुद्दे को निस्तेज किया
सच बोलो क्या न्यायतंत्र को प्रेशर से लबरेज किया
निर्णय देकर जज साहब ने इस्तीफ़ा क्यों भेज दिया
ऐसी कौन सी विवशता निभा ली, जो नौकरी गँवा ली
कैसा है ये प्रसंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
हार दिखा देती है सत्ताधारी को दिन में तारे
ढीले हो जाते हैं केवल दो दिन में नखरे सारे
पहले हारा जाता है फिर बहते हैं आँसू खारे
लेकिन अपने तोगड़िया जी, पहले रोए फिर हारे
भाईसाहब से दुश्मनी बना ली, सज़ा तुरंत पा ली
फीका पड़ा है रंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
किसे पता था लालू जी पर ऐसी आफ़त आएगी
दोस्त दग़ा देगा फिर जेलें बाँहें खोल बुलाएंगी
जननायक कहलाने की सारी खुजली मिट जाएगी
बीस दिनों में लालू जी की लालटेन बुझ जाएगी
अब तो ईसी ने त्यौरियाँ चढ़ा लीं, पूरी बही मंगा ली
लालू जी हुए दंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
सल्लू छूटे लालू घिरे बवाल बनाना ठीक नहीं
जाँच की धमकी देकर अपनी दाल गलाना ठीक नहीं
आयोगों में अभियोगों की चाल बनाना ठीक नहीं
न्यायपालिका को शासन की ढाल बनाना ठीक नहीं
जो करेगा सरकार की जुगाली, वही बचेगा ख़ाली
बाक़ी सभी से जंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
पर्स उदास हुआ बेचारा, एटीएम खल्लास हुआ
वित्त सुधारों के जुमलों का ये कैसा उपहास हुआ
ना बैंकों में बचा रहा ना मुद्रा पर विश्वास हुआ
बैन पुराने, नए नदारद, कैसा सत्यानाश हुआ
हर एटीएम की हेकड़ी निकाली, सभी हैं ख़ाली-ख़ाली
नोटों के उड़े रंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
रथयात्रा से शुरू हुआ था ये सारा गड़बड़झाला
रामलला के वरदानों से पा ली सत्ता की हाला
मंदिर के मुद्दे का तुमने रायता फैला डाला
जनका को बरसों से तुमने क्या कुछ नहीं बना डाला
राममंदिर की खिचड़ी पका ली, सरकारें बनवा लीं
घर में बही है गंग भाइयो
पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब ठाली
ज़माना हुआ तंग भाइयो
© चिराग़ जैन
Saturday, April 14, 2018
कबीलाई समाज की ओर
अपराधी सब हैं
किस शकुनि ने फेंके पासे
किस देवर ने चीर उघाड़ा
कौन ससुर हैं आज रुआँसे
इन प्रश्नों में मत उलझाओ, चीरहरण के वादी सब हैं
लड़ते रहना युद्ध भले तुम, पर सचमुच अपराधी सब हैं
दुर्योधन के कान कहेंगे, हमने इक उपहास सहा था
जाति बताकर रश्मिरथी ने, इक दहता संत्रास सहा था
भीष्म बंधे हैं सिंहासन से, दुःशासन मद में ऐंठे हैं
द्रोण द्रुपद से अपमानित हैं, पाण्डव दास हुए बैठे हैं
कुल की लज्जा से इस पल में, मौन-मुखर संवादी सब हैं
लड़ते रहना युद्ध भले तुम, पर सचमुच अपराधी सब हैं
शांतनु-से कामुक पुरखे का कोई पिछला पाप फला हो
सम्भव है गांगेय तुम्हीं कोे, अम्बा का अभिशाप फला हो
जाने कब किस दुःशासन ने, किसके कुल की लाज घसीटी
जाने कब किस राजभवन में, किस कामी ने जंघा पीटी
अवसर मिलने पर अपराधी हो जाने के आदी सब हैं
लड़ते रहना युद्ध भले तुम, पर सच में अपराधी सब हैं
© चिराग़ जैन
Friday, April 13, 2018
व्हाट्सएप्प और फेसबुक
Wednesday, April 11, 2018
वो भी तो तन्हा होगा
बस मैं ही तन्हा थोड़ी हूँ, वो भी तो तन्हा होगा
मैं तो हर मिलने वाले से मिलने से कतराता हूँ
वो भी सबसे मन की बातें करने से बचता होगा
शाम ढले मजबूरी में मैं बेमन से घर जाता हूँ
क्या वो भी घर के रस्ते पर रुक-रुक कर चलता होगा
अपने गम में रो लेने की फुरसत किस कमबख्त को है
मैं यूँ रोता हूँ वो मेरी यादों में रोता होगा
© चिराग़ जैन
Tuesday, April 10, 2018
बर्ताव बदल जाता है
इतनी शिद्दत से कमाना नहीं सीखा हमने
वक्त के साथ ही बर्ताव बदल जाता है
बस यही तौर-ए-जमाना नहीं सीखा हमने
कोई कश्ती ही पलट जाए तो मर्जी उसकी
बीच में छोड़ के जाना नहीं सीखा हमने
जिन चिरागों से हुआ एक भी लम्हा रौशन
उन चिरागों को बुझाना नहीं सीखा हमने
एक वो हैं कि गिनाए चले जाएँ अहसान
एक हम हैं कि जताना नहीं सीखा हमने
© चिराग़ जैन
Monday, April 9, 2018
परिवर्तन
लिपि से
चित्र बनती जा रही हो
पढ़ने को कुछ नहीं मिलता
समझने को
बहुत कुछ
© चिराग़ जैन
Sunday, April 8, 2018
खुद मान जाना है मुझे
जब कभी वे रूठ जाएं, तो मनाना है मुझे
वो मनाने आएंगे मुझको न ये उम्मीद हो
हर दफा खुद रूठकर खुद मान जाना है मुझे
© चिराग़ जैन
अल्बम
रखे हैं फूल, आंसू और कितने तीर अल्बम में
तुम्हारी याद की अल्बम उठाई तो हुआ मालूम
बहुत बतिया रही है आज हर तस्वीर अल्बम में
© चिराग़ जैन
Saturday, April 7, 2018
साहित्य सृजन
आशिक अपने नाख़ूनों से पर्वत तोड़ गए हैं यार
ख़ाक़ कहेगा कोई अब इस महफ़िल में कुछ बात नई
तुलसी, मीर, कबीर सभी कुछ लिख कर छोड़ गए हैं यार
© चिराग़ जैन