हाथी ने पेड़ के नीचे सो रहे चार चूहों को अपनी ताकत के मद में कुचल दिया। जंगल की पुलिस ने अदालत में हाथी पर मुक़द्दमा दायर किया। चूहों की औकात के मुताबिक़ मुक़द्दमा धीमी गति से चलता रहा और हाथी आराम से जंगल में ज़िन्दगी बसर करता रहा। इस बीच जंगल में चुनाव हुए और राजा के सिंहासन पर लकड़बग्गा बैठ गया।
हाथी ने मौक़ा देखते ही लकड़बग्गे से दोस्ती गाँठनी शुरू कर दी। वह एक शिष्ट नागरिक की तरह नवनिर्वाचित राजा के शपथग्रहण में समय से पूर्व खड़ा मिला। राजा ने जब भी कोई योजना या अभियान चलाया तो हाथी कार्यकर्ता की तरह ज़मीन पर लेट-लेटकर राजा के अभियान में भाग लेने लगा। इस बीच चूहोंवाले मुक़द्दमे के फैसले की घड़ी आ गई। सारे जंगल में चर्चा थी कि हाथी को फाँसी होगी। भयभीत हाथी ने राजा से अपनी वफ़ादारी का फल मांगा।
राजा ने चूहों की वोटिंग वेल्यू, हाथी की फेस टीआरपी और अपनी लोकप्रियता के ग्राफ़ का हिसाब लगाया और न्यायालय ने जादुई तरीके से सबूतों के अभाव में हाथी को निर्दाेष साबित कर दिया।
सारा जंगल देखता रह गया। अदालत की काफ़ी थू-थू हुई। दबे स्वरों में कुछ जानवरों ने राजा की भी निंदा की। राजा को महसूस हुआ कि इस मामले में हस्तक्षेप करके, उसने अपनी लोकप्रियता को हानि पहुँचाई है। राजा ने हाथी को बोला अब मुझसे मिलना-जुलना कुछ कम करो। अहसानमंद हाथी ने राजा की बात मान ली। अब हाथी राजा के किसी अभियान में दिखाई नहीं देता था।
इसी बीच हाथी का एक और पुराना पाप उघड़ आया। उसने सालों पहले खरगोशों के दो बच्चे मनोरंजन के लिए मार दिए थे। यह मुक़द्दमा भी अपनी कछुआ चाल से धीरे-धीरे टल रहा था। अब इसके फ़ैसले की घड़ी आ गई। हाथी ने पहले की तरह लकड़बग्गे से मिलने की कोशिश की लेकिन राजा के निर्देश की वजह से मुलाक़ात संभव न हो सकी। हाथी इस उम्मीद में बैठा रहा कि राजा अपने वफ़ादार को दोबारा वफ़ादारी का इनाम देगा।
उधर राजा ने फिर हिसाब लगाया। सबसे पहली बात तो यह कि तीन महीने बाद खरगोशिस्थान में चुनाव हैं। वहाँ खरगोशों के काफ़ी वोट हैं। खरगोश समुदाय वैसे ही लकड़बग्गे की सरकार से नाराज़ है। अगर हाथी को सज़ा हो गई तो खरगोशों की वोट लकड़बग्गे की पार्टी को मिल जाएंगी। फिर पिछली बार चूहोंवाले केस में हुए फैसले से जो इमेज डैमेज हुई थी, वह भी बैलेंस हो जाएगी। सारा गणित लगाकर लकड़बग्गा सो गया।
सुबह अदालत का फैसला आया। पूरे जंगल को उम्मीद थी कि हाथी को अधिकतम तीन साल की सज़ा होगी लेकिन अदालत ने हाथी को पाँच साल की सज़ा सुनाई।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जंगल में न्याय उसे कहा जाता है जिसके होने से लकड़बग्गे को ज़्यादा वोट मिल जाएँ। बाकी सब अन्याय है।
© चिराग़ जैन
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