बैंकाक में काव्यपाठ के उपरांत पटाया भ्रमण का निर्णय हुआ। थाईलैंड की खाड़ी पर बसा यह रंगीन शहर अपनी विलासिता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। मुम्बई जैसी ऊमस भरे मौसम में भी लोगों की ऊर्जा में कोई कमी नहीं है। प्रदूषण और गंदगी से पूरी तरह मुक्त यह शहर सैलानियों की पसंदीदा जगह है। नारियल की मिठास यहाँ सामान्य से अधिक है। आम का मौसम है इसलिए आम और लीची बेचने वाले हर सौ कदम पर मिल जाते हैं। थाई महिलाएँ बेहद परिश्रमी होती हैं। समुद्र किनारे रेस्तरां चलाने से लेकर मसाज पार्लर्स में काम करने तक हर जगह उनकी ऊर्जा यथावत है। थाई पुरुष टैक्सी या मोटरबाइक पर सैलानियों की दूरियाँ कम करते हैं। गौतम बुद्ध के प्रति आस्था पूरे देश में अनवरत प्रसारित है। महाराज जनक के समान थाईलैंड का शरीर भी एक ही समय में आधा भोग में रत है और आधा साधना में। एक ओर स्वर्णाभ बुद्ध बिंब और थाई वास्तु से सुसज्जित पैगोडा मन को तृप्त करते हैं वहीं दूसरी ओर वाकिंग स्ट्रीट जैसे बाज़ार तन की थकान दूर करते हैं। भारत की तरह यहां भी अमलतास के कंगूरे खिल उठे हैं। दूर पश्चिम में सूर्यदेव अस्ताचलगामी हो गए हैं। उनकी कांति से स्वर्णदेही तथागत और भी भव्य हो उठे हैं। बाज़ारों में रंगीनियां बढ़ने लगी हैं। दिन भर की ऊमस को पदच्युत कर समुद्री हवाओं ने सत्ता सम्भाल ली है। हमने पटाया को स्वतदिखरप कहा और बैंकाक रवाना हो गए।
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