आपस का ये झगड़ा कुछ तो उसको भी खलता होगा
बस मैं ही तन्हा थोड़ी हूँ, वो भी तो तन्हा होगा
मैं तो हर मिलने वाले से मिलने से कतराता हूँ
वो भी सबसे मन की बातें करने से बचता होगा
शाम ढले मजबूरी में मैं बेमन से घर जाता हूँ
क्या वो भी घर के रस्ते पर रुक-रुक कर चलता होगा
अपने गम में रो लेने की फुरसत किस कमबख्त को है
मैं यूँ रोता हूँ वो मेरी यादों में रोता होगा
© चिराग़ जैन
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