Friday, April 27, 2018

बारहमासा

मीत! तुम्हारी सुधियों का ये कैसा बारहमासा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है

पल में मुखड़े पर जगमग दीवाली-सी आ जाती है
पल में मन में चैत दुपहरी की वीरानी छाती है
पल में डरकर मन बेचारा पूस निशा-सा कँपता है
पल में आषाढ़ी चातक-सा चंद्रकिरण को तकता है
क्षणिक हताशा, क्षणिक पिपासा, क्षणिक मिलन अभिलाषा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है

जब पुरवा के बहकाने से मन भरमाने लगता है
तब बिन मौसम की बारिश से खेत लजाने लगाता है
दुनियादारी के पचड़ों से आलस करने लगता है
इस बैरागी मन में महुए का रस झरने लगता है
मन संतृप्त हुआ बैठा है पर तन भूखा-प्यासा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है

इधर हृदय के पास अचानक जेठ पिघलने लगता है
उधर पुराने पल से तपकर अन्तस् गलने लगता है
सपनों के कजरारे बादल अम्बर तक बढ़ जाते हैं
धूप चढ़े तो इच्छाओं के मृग काले पड़ जाते हैं
इस पल शांत तथागत है मन, अगले पल दुर्वासा है
अधरों पर मधुमास रखा है आँखों में चौमासा है

© चिराग़ जैन

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