Wednesday, April 4, 2018

सोशल मीडिया पर चरित्र हत्या

हम जिस चीज़ को श्रम करके अर्जित करते हैं, उसका सम्मान करते हैं। यदि हमने संघर्ष किया हो, तो हम दूसरे के संघर्ष का भी सम्मान करते हैं। यदि हमने साधना करके प्रसिद्धि अर्जित की है तो, हम दूसरे की प्रसिद्धि का आदर करते हैं। यह तथ्य विश्व की प्रत्येक उपलब्धि पर लागू होता है। किंतु यदि हम प्रयास करने के बावजूद किसी वैभव से वंचित हैं तो हम उस वैभव के सिद्ध व्यक्ति का उपहास करके अपनी कुंठा निकालते हैं।
धनवान होने की लालसा रखनेवाला निर्धन व्यक्ति, सम्पन्न लोगों की जीवन पद्धति का उपहास करता है। सामाजिक सम्मान से हीन व्यक्ति, सम्मानित व्यक्तित्वों को ढोंगी कहने लगता है। क्रिकेट में विफल हुआ खिलाड़ी टीम इलेवन के हर सदस्य को भ्रष्टाचारी कहने लगता है। यही स्थिति राजनीति, फ़िल्म, साहित्य, पत्रकारिता, व्यापार, व्यवसाय और अन्य क्षेत्रों की है।
इन वंचित लोगों को यदि कोई अस्त्र मिल जाए तो ये उससे अपनी कुंठा निकालने का काम करते हैं। सोशल मीडिया ऐसा ही एक अस्त्र है जिस पर लोगों की चरित्र हत्या के अनगिनत उदाहरण देख चुका हूँ। भारत सरकार भी दोष सिद्ध होने तक आरोपी को अपराधी नहीं मानती किंतु फेसबुक के स्वयंभू न्यायाधीश किसी पर भी आक्षेप लगाकर उसे अपराधी सिद्ध कर देते हैं। चूँकि उसकी प्रोफाइल पर उसके जैसे ही लोगों का जुड़ाव होता है इसलिए समान वेवलेंथ के लोग उसे व्हिसलब्लोअर समझकर उसके शिकार को नोच-नोचकर खाने लगते हैं।
इन लोगों का एक ही सिद्धांत है कि किसी खटारा कार और मर्सिडीज़ की टक्कर होगी तो खटारा की प्रसिद्धि बढ़ेगी। मर्सिडीज़ के साथ उसका फ़ोटो भी अख़बार में छपेगा। इन लोगों को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि इस टक्कर में मर्सिडीज़ का कितना नुक़सान होगा। क्योंकि इनके पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं।
किसी के चरित्र पर प्रश्न उठा देना। किसी के निजी जीवन की कुछ अफ़वाह उड़ा देना, किसी की मौलिकता पर सवाल खड़े करना, किसी की ईमानदारी को कठघरे में घसीटना और किसी की नीयत पर शंका ज़ाहिर करना इस प्रवृत्ति के लोगों का विशेष शौक़ है। और इसमें विशेष बात यह है कि ऐसा करनेवाले लोगों को न तो चरित्र का अर्थ पता, न निजता का, न मौलिकता का, न ईमानदारी का और न ही नीयत का। कुछ भी करके तीन चीजें हासिल करना इनका लक्ष्य होता है - 1) लोगों की संवेदना; 2) बुद्धिमान और निडर होने का भ्रम और 3) प्रसिद्धि। इस प्रयास में विवाद से हासिल होनेवाले कमेंट्स और लाइक्स इनके लिए थर्मामीटर का काम करते हैं।
किसी से इनबॉक्स में चैट करना, फिर उसके रिप्लाई को क्रॉप करके सीधे यह आक्षेप लगाना की अमुक आदमी मेरे इनबॉक्स में अश्लील बातें करता है। इस स्क्रीनशॉट में चाहे बेचारे ने सामान्य शिष्टाचार में आपके अभिवादन का उत्तर मात्र दिया हो किन्तु उसके टेक्स्ट को इनबॉक्स में संपर्क करने का प्रयास सिद्ध कर ही दिया जाता है। और कमेंट करनेवाले भी ‘बेचारी लड़की को दुःखी करने’ के आरोप में गालियों का पिटारा लिए पहुँच जाते हैं।
सत्य जाने बिना सत्य के मसीहा बननेवाले लोग ऐसे प्रकरणों में कमेंट करने में रत्ती भर भी समय नहीं गँवाते। किसी के चरित्र की रक्षा करनी हो तो सोचना भी पड़े, हत्या करने में कैसा सोचना। किसी के ज़ख़्म पर मरहम लगानेवाला ज़ख्म का अध्ययन करेगा, उसके मुताबिक दवा जुटाएगा, उसकी पीड़ा का स्तर देखते हुए दवा लगाएगा ...इस सबमें समय लगना स्वाभाविक है। लेकिन जिसका ध्येय किसी को चोट पहुँचाना हो वह तो पत्थर उठाकर मार देगा। उसे यह क्यों सोचना कि सामनेवाले का सिर फूटेगा या पैर। ध्वंस आसान है और सृजन कठिन। सम्मान अर्जित करने में युग व्यतीत हो जाते हैं, अपमानित होने को तो एक क्षण ही पर्याप्त है।
सोशल मीडिया पर बढ़ रही इन प्रवृत्तियों का और कोई उपाय हो न हो किन्तु इनकी अनदेखी से इनके हौसले ज़रूर पस्त हो सकते हैं। जिसकी फ्रेंडलिस्ट में किसी क्षेत्र के सिद्ध लोग उपस्थित होंगे वह उनका ध्यानाकर्षण करने के लिए उस क्षेत्र के ही किसी व्यक्ति को निशाना बनाएगा।
हमें चाहिए कि इस प्रवृत्ति के लोगों को; चाहे वे किसी की भी चरित्र हत्या का प्रयास करें; उन्हें तुरंत ब्लॉक किया जाना चाहिए। बच्चा तभी इतराता है जब उसे देखने के लिए कोई उपस्थित हो। यदि उनकी श्रोतादीर्घा में कोई बड़ा आदमी होगा ही नहीं तो वे किसको दिखाने के लिए उछल-कूद करेंगे।
कोई भी व्यक्ति किसी भी कारण से किसी भी व्यक्ति के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करे; उसकी निजता में प्रवेश करे; उसे अपमानित करने का कुचक्र रचे; उसके चरित्र की हत्या का प्रयास करे तो ऐसे व्यक्ति की प्रोफाइल पर जाकर तुरंत उसे ब्लॉक किया जाना चाहिए। इससे हमारी ऊर्जा ऐसे नकारात्मक कुकर्मों से अछूती रह पाएगी।

© चिराग़ जैन

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