कई बार ऐसा लगता है कि इस देश की स्थिति किसी कम्प्यूटर जैसी है। आप जो फाइल खोलते हो, पूरी स्क्रीन पर वही दिखाई देती है। फिर आप उसे क्लोज़ या मिनिमाइज़ करके दूसरी फाइल खोल लेते हो, तो पिछली फाइल की छाया तक नहीं बचती स्क्रीन पर।
इस कम्प्यूटर का ऑपरेटर दलित आंदोलन की फाइल खोल के बैठ गया तो पूरा देश फूंक दिया गया। कम्प्यूटर का प्रोसेसर जवाब दे गया। देश की रैम जाम हो गई। देश के हर राजनेता को दलितों की बेचारगी दिखने लगी। दो दिन तक यही फाइल खुली रही। जब फाइल में काम करने को कुछ न बचा, तो अगली फाइल खुलने के इंतज़ार में उसे खोले रखा गया।
तभी अचानक एक फिल्म अभिनेता को जेल हो गई। कम्प्यूटर स्क्रीन अभिनेता के वॉलपेपर्स से भर गई। जमानत याचिका पर सुनवाई न हो सकने के कारण बेचारे अभिनेता को कम से कम एक रात तो जेल में काटनी ही पड़ेगी। अब देश को लगा फिल्मस्टार का दर्द दलितों के दर्द से बड़ा है। हमने जोधपुर जेल का चप्पा-चप्पा छान मारा। इस अनुसंधान में वहाँ पहले से बंद एक बाबाजी मिल गए। हमने फिल्मस्टार और बाबाजी पर सेमी अश्लील चुटकुले गढ़े और अभिनेता के ज़ख़्मों पर मरहम लगाया।
यदि अभिनेता को जमानत मिल गई तो यही फाइल लम्बी चलेगी और जमानत नहीं मिली तो और लम्बी चलेगी।
नीरव मोदी, डाटा लीक, बुलेट ट्रेन, लिंगायत, पद्मावत, करणी सेना, पटेल आंदोलन, गुर्जर आंदोलन, जाट आंदोलन, श्रीदेवी की मृत्यु, बॉल टेम्परिंग, विजय माल्या, केजरीवाल की माफी, रोमियो स्क्वेड, राम मंदिर, तोगड़िया, राज्यसभा चुनाव, नरेश अग्रवाल, शमी की हसीना और मणिशंकर की गाली जैसी हज़ारों फाइलें हैं जो स्क्रीन कैप्चर करती रहीं और फिर अचानक ग़ायब हो गईं। कुछ फाइलें अपनी क्षमता से स्क्रीन पर छा जाती हैं तो कुछ को ऑपरेटर जान-बूझकर देर तक खोले रखता है।
ऑपरेटर जानता है कि यदि ये सारी फाइलें बन्द या मिनिमाइज़ कर दी गईं तो डेस्कटॉप का वॉलपेपर दिखने लगेगा जिस पर ‘प्रियोरिटीज़’ लिखी हुई हैं- रोटी.... कपड़ा... मकान... स्वास्थ्य... शिक्षा.... न्याय.... यातायात.... क़ानून.... सुरक्षा.... साफ़ हवा.... साफ पानी...!
© चिराग़ जैन
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