किस पर्वत से पत्थर आया, कैसे रूप धरा पत्थर ने
बस इतने भर से मूरत की, प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी
पूछ लिया यदि उत्सुक होकर, शिल्पी की घायल उंगली से
तो फिर इस पूरे मंदिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
रामकथा लिखना चाहो तो, केवट का किस्सा सुन लेना
कैसे त्याग गए पल भर में, शासन का हिस्सा सुन लेना
सागर से सुनना यश गाथा, जिसको क्रोध दिखा राघव का
शबरी और निषाद कहेंगे, जिनको शोध दिखा राघव का
वह पत्थर गाथा गाएगा परस जिसे इंसान किया था
उन ऋषियों के दल से पूछो जिन सबका कल्याण किया था
लिखना, कैसा युद्ध हुआ था राघव का दम्भी रावण से
पूछ नहीं लेना भूले से, परित्यक्ता सीता के मन से
अगर सिया ने मन खोला तो बहुत प्रतीक्षा करनी होगी
तो फिर इस पूरे मन्दिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
बस यह लिखना कैसे निर्धन ब्राह्मण से संबंध निभाया
बस यह लिखना किस कौशल से कालयवन का अंत कराया
बस यह लिखना उस नटवर का रणकौशल में यश कितना था
बस यह लिखना पूरे युग पर मधुसूदन का वश कितना था
गौवर्द्धन पर्वत बोलेगा जिसको उंगली पर रखा था
भीष्म-धनंजय की सुन लेना, जिनने रूप विराट लखा था
गीता के श्लोकों को पढ़कर, श्रद्धा का लेखा भर देना
राधा के बिरही यौवन को, बिल्कुल अनदेखा कर देना
राधा से उद्धव उलझे तो विस्मृत शिक्षा करनी होगी
फिर इस पूरे ही मंदिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
बोधगया के वन बोलेंगे कितने थे विद्वान तथागत
नालंदा जगकर बोलेगा क्या थे दिव्य महान तथागत
ईश्वर का अवतार वही था, नगरवधू का मन बोलेगा
शांति-अहिंसा का गायक था, धरती का कण-कण बोलेगा
मुख पर कैसी दिव्य प्रभा थी, शिष्यों की टोली बोलेगी
इक दिन यह सारी मानवता उनकी ही बोली बोलेगी
तप की इक अनुपम शैली से युग के पन्ने मोड़ गए थे
राहुल से मत चर्चा करना, उसको सोता छोड़ गए थे
परित्यक्ता के अधर खुले तो खंडित निष्ठा करनी होगी
फिर इस पूरे ही मन्दिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
जो तरु जग को फल देता है उसकी जड़ें उमस सहती है
जो घाटों की प्यास बुझा दे, वह नदिया प्यासी रहती है
अक्सर दीपक के भीतर ही गहन अंधेरा छुप जाता है
तेज दुपहरी की आभा में, मौन सवेरा छुप जाता है
जिस पर्वत में करुणा जागी उसके जल को बहना होगा
अमृत घट उपजाकर भी सागर को खारा रहना होगा
जग की भूख मिटानी है तो हल की चुभन सहन कर लेना
उजियारा फैलाना है तो निज को पूर्ण दहन कर लेना
हर पूजित को दायित्वों की कठिन परीक्षा करनी होगी
इतिहासों को हर मन्दिर की पुनः समीक्षा करनी होगी
© चिराग़ जैन
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