हिंदी कवि सम्मेलनों की अपनी डेढ़ दशकीय यात्रा में हर वरिष्ठ ने कुछ न कुछ सिखाया है। यात्राओं में लगभग सभी के साथ अच्छा समय बिताया है। इस डेढ़ दशक में मुझे ज्ञात हुआ कि हर शख़्स अपनी सीमित बुराइयों और असीमित अच्छाइयों के साथ जीता है। इस डेढ़ दशक में मैंने जाना कि हर बड़ा व्यक्ति भीतर से एक बेहद प्यारा और मासूम बालक ही होता है। जीवन की इस पाठशाला में जिन्होंने मुझे ज़िंदादिली और सकारात्मकता के अध्याय पढ़ाए उनका नाम है - अरुण जैमिनी। बड़ी से बड़ी घटना को हँस कर टाल देना, कठिन से कठिन परिस्थिति में संयत रहना और हर इंसान के अस्तित्व को सम्मान देना उनके व्यक्तित्व की विशेषता है। ठहाके और मस्ती उनकी उपस्थिति का अंश हैं। चिंता करना, घबराना, परेशान हो जाना और विचलित होना उन्होंने जैसे सीखा ही नहीं। स्वयं की सुविधाओं को प्राथमिकता देने के बावजूद वे कभी किसी के सुख में अवरोधक नहीं बनते। बड़े होने का अहंकार और लोकप्रिय होने का दम्भ कम से कम मैंने तो उनके व्यक्तित्व में कभी नहीं देखा। आयु में उनसे लगभग आधा और प्रसिद्धि में उनसे चौथाई होने के बाद भी मैंने उनसे हमेशा एक मित्रता का संबंध ही पाया है। उनका जीवन आज साठ साल पूर्ण कर रहा है। ये साठ वर्ष की अवधि हर उस संघर्ष से सुसज्जित है जो एक सामान्य मनुष्य को झेलना पड़ता है लेकिन इस सब संघर्षों में अपने भीतर के अरुण जैमिनी को बचाए रखना एक असामान्य घटना है।
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