हरियाणा और हिमाचल के संगम पर एक छोटा सा कस्बा है - काला अम्ब। दोपहर बाद जब यहाँ पहुँचे तो उदासी और वीराने के दर्शन हुए। सूखी हुई पहाड़ी नदी, ट्रैफिक, धूप और बेतरतीब सी शहरी ज़िन्दगी जी रहे लोग। लेकिन ज्यों-ज्यों शाम ढली, त्यों त्यों इस उदासी में उत्सव पैर पसारने लगा। हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज़ के परिसर में रौशनी सिंगरने लगी। पहाड़ से उतरी हुई ठंडी हवाओं ने उमस का तख्ता पलट दिया।
यूकलिप्टस के ऊँचे वृक्षों पर टंगा हुआ आधा चाँद ऐसा लगता था मानो आसमान के गाढ़े अंधेरे ने काले धागे सोने का तावीज पहन रखा हो। शिक्षण संस्थान के वार्षिकोत्सव से निकसित स्वर लहरियाँ हवा के सोर में गुंथकर मटके और बीन का संगीत निर्मित करती थीं।
परिसर के भीतर श्रोतादीर्घा भारत के लोकतंत्र का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करती थी। अध्यात्म के प्रतिनिधित्व में ब्रह्मचारी ब्रह्मस्वरूप जी, न्यायपालिका की ओर से जस्टिस मित्तल और तीन अन्य न्यायाधीश, विधायिका की ओर से कम्बोज जी और असीम गोयल जी, पत्रकारों का विशाल समूह, सशस्त्र सैन्य बल, व्यापारी समूह, अध्यापक वृन्द, विद्यार्थी, कर्मचारी और कवियों में पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा, कर्नल वीपी सिंह, शम्भू शिखर, गजेंद्र प्रियांशु और चिराग़ जैन।
राजनैतिक व्यंग्य, ठहाके, श्रृंगार के मधुर गीत तथा भारत के शौर्य का यशगान। शहीदों की श्रद्धांजलि हेतु दो ढाई हज़ार श्रोताओं का समूह शौर्य की हुंकार के साथ खड़ा हो गया। कवि सम्मेलन में आँसू और मुस्कान का सुयोग देखने को मिला।
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